इंदौर | इस सप्ताह डेली कॉलेज में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में बाल अधिकार आयोग सदस्य ब्रजेश चौहान संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास की वजह से बच्चे चिड़चिड़े हो गए हैं और उनमें काफी परिवर्तन आया है। बच्चे ऑनलाइन गेम के कारण बड़ी घटना को अंजाम दे देते हैं। उन्होंने बताया कि यह कोई मामूली बात नहीं है, यह चिंता का विषय है और सभी को मिलकर बच्चों के सुधार के लिए काम करना है।
बच्चों की चिंता करना काफी अच्छी बात है, लेकिन सरकारी तरीके से बच्चों का ख्याल नहीं रखा जा सकता है। इसके लिए घर से ही सुधार करने की जिम्मेदारी है। इसके लिए खुद को पहले मोबाइल से दूर रखना होगा, क्योंकि जब तक घर के बड़े मोबाइल से मोह नहीं त्यागेंगे, तब तक बच्चे को मना नहीं कर सकते।
गृहणियों को आदत में लाना होगा सुधार
खासकर गृहणियों को आदत में सुधार लाना होगा। अक्सर माताएं मोबाइल पर ही व्यस्त रहती हैं। जब मोबाइल कीपेड वाला था और िजतना बैलेंस उतनी बात हुआ करती थी। धीरे-धीरे मोबाइल अपडेट होते गए और अनलिमिटेड बात करने का प्रलोभन कंपनियों ने दिया तो महिलाएं और पुरुष और लड़कियां दिन-रात सिर्फ बातें करतें नजर आती थीं। इस वजह से कई बार घरों में विवाद हुए और बच्चों ने आत्महत्या तक की थी। अब दौर थोड़ा बदला, अनलिमिटेड बात तो कर ही सकते हैं, अनलिमिटेड डाटा (इंटरनेट) का भी जनरेट हो गया। अब हर हाथ मोबाइल और बच्चों को कोरोनाकाल में मोबाइल की लत भी लग गई, तो पढ़ाई तो रही एक तरफ बच्चे ऑनलाइन गेम और पोर्न साइट देखने लग गए। पांचवीं-छठी क्लास के बच्चों को नामसमझी की उम्र में समझ ज्यादा आ गई है।
एक अवगुण और घर कर गया
दूसरी तरफ घर में एक अवगुण और घर कर गया है। हर किसी का अपना मोबाइल, जितने घर में सदस्य उतने ही मोबाइल। किसी-किसी सदस्य के पास दो-दो मोबाइल एक मोबाइल कॉमन और दूसरे मोबाइल को घर का दूसरा सदस्य हाथ नहीं लगा सकता, क्योंकि प्राइवेसी भंग हो जाएगी। इस तरह के हालात हो चुके हैं। पत्नी के पास भी दो मोबाइल और पति के पास भी दो मोबाइल...। बच्चों को भी समझ में आता है कि उन्हें दूसरे मोबाइल को हाथ क्यों नहीं लगाने दिया जाता।
सरकार कुछ नहीं करने वाली, घर पर ही आदत सुधारना होगी
अनिद्रा की समस्या : आपका स्मार्टफोन ज्यादा इस्तेमाल होने पर आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. स्मार्टफोन का अत्यधिक इस्तेमाल आपके लिए अनिद्रा की समस्या को पैदा करने में बेहद कारगर है। खास तौर पर रात को ज्यादा समय तक स्मार्टफोन का प्रयोग नींद नहीं आने की समस्या को पैदा करता है। जाहिर सी बात है कि अपने सही समय पर अगर नींद नहीं लिया जाए तो नींद पूरी होने में परेशानी होती है और स्मार्टफोन तो आज की जीवनशैली का अभिन्न अंग बन चुका है। इसलिए स्मार्टफोन आपके लिए अनिद्रा की समस्या को उत्पन्न करने में काफी सराहनीय योगदान निभाता है।
चिड़चिड़ापन : कई बार देर रात तक फोन का इस्तेमाल करने से नींद काफी प्रभावित हो जाती है। जिससे जितनी जरूरत होती है नींद की वो पूरी नहीं हो पाती और अगर नींद पूरी नहीं होगी, तो जाहिर सी बात है कि दिमाग को आराम नहीं मिल पाएगा और यह वजह बनता है चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट का।
सिरदर्द की समस्या : स्मार्टफोन से निकलने वाली हानिकारक किरणें सिरदर्द और अन्य दूसरे प्रकार की दिमागी तकलीफों के लिए बेहद जिम्मेदार साबित होती है।
आइए जानते हैं मोबाइल के दुष्परिणाम
मानसिक विकार : नींद पूरी नहीं होने की वजह से हमारे दिमाग को आवश्यकता अनुसार आराम नहीं मिल पाता। जो कई मानसिक विकारों को पैदा करने में कारगर है। इसके अलावा स्मार्ट फोन में उपलब्ध सामग्री भी हमारे दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. जिससे तनाव, उदासीनता और डिप्रेशन जैसी समस्याएं सामने आने लगती है।
आंखों की रोशनी पर बुरा प्रभाव : स्मार्टफोन की रंगीन और अधिक रोशनी वाले स्क्रीन व तकनीकें हमारी आंखों की रौशनी पर काफी बुरा प्रभाव छोड़ती है। इसकी आयरिश अत्यधिक होने और फॉन्ट साइज के कारण हमारे आंखों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है।
शरीर में दर्द : स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते समय हमारे शरीर का पोश्चर सही नहीं रहता। जो हमारे स्वास्थ से रिलेटेड कई तरह की समस्याओं को पैदा करने में सहायक होता है।
इंफेक्शन : स्मार्टफोन के स्क्रीन पर कई तरह के कीटाणु होते हैं, जो हमें दिखाई नहीं देते। लेकिन ये कीटाणु त्वचा संबंधी कई तरह की समस्याओं को उत्पन्न करने में सक्षम है और ये कीटाणु आपको बीमार भी कर सकते हैं।
लत लगना : स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग इसके आदी हो जाते हैं. जो बेहद ही खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में लोग बिना फोन के बेचैनी महसूस करते हैं। यहां तक कि उन्हें कोई अनजाना भय और घबराहट भी महसूस होता है, जो कि एक गंभीर समस्या है।
भ्रम पैदा होना : कई बार फोन बंद या साइलेंट पर होने के बावजूद लोगों को ये एहसास होता है कि उनका फोन बज रहा है। इसे एक तरह का फोबिया कहा जा सकता है, जिसे नोमोफोबिया कहते हैं। ये भी आपके लिए गंभीर समस्या को पैदा कर सकता है।
निर्भरता : आज के जमाने मे लोग अपने स्मार्टफोन पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हो चुके हैं। कई बार तो एक ही घर में बैठे लोग एक दूसरे से मैसेज के जरिए ही बात करते हैं। इससे घर में आपकी छोटी-मोटी एक्सरसाइज से भी आप वंचित रह जाते हैं, जो आपके स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है।
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