18 जून को हर साल विश्व पिकनिक दिवस मनाया जाता है। प्रकृति, बाग बगीचों में परिजनों के साथ बैठकर मनोरंजन करना सामान्य रूप से पिकनिक का ही रूप है। हमारे देश में संयुक्त परिवार की परंपरा रही है और परिवार के सभी स्व-जनों के साथ आना–जाना, बैठना और चर्चा करना एक परंपरा रही है। जब पूरा परिवार एकत्र हो जाए तो वह भी एक तरह से मनोरंजन और पिकनिक का अवसर बन जाता है। 1799 में जब फ्रांसिसी क्रांति का समापन हुआ था। इस क्रांति के दौराना फ्रांसिसी नागरिक घरों के बाहर बैठकर खाना खाया करते थे। फिर प्राकृतिक स्थलों पर जाने का प्रचलन हो गया, लेकिन भारत में पिकनिक या सैर की परंपरा अति प्राचीन है। पिकनिक दिवस का मुख्य उद्देश्य प्रकृति से जुड़ने, प्रियजनों से साथ भोजन करना और समय बिताना है।
इंदौर मालवा के साथ ही देशभर में अपने खान-पान के लिए जाना जाता है। इंदौर का नमकीन, पोहा और कचोरी का सारा देश दीवाना है। पिछले दिनों प्रवासी भारतीय सम्मलेन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इंदौर के खानपान की तारीफ की थी। विश्व के प्रसिद्ध नगर नियोजक पैट्रिक गिडीज 1916 में इंदौर आए थे। उन्होंने नगर का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट 1918 में इंदौर के होलकर दरबार में प्रस्तुत की थी। उस रिपोर्ट में बाग-बगीचों का उल्लेख है। इंदौर में पिकनिक मनाने की परंपरा काफी पुरानी है।
इंदौर में सिरपुर तालाब 1890 में, बिलावली 1914 में और यशवंत सागर तालाब 1928 में निर्मित हो गए थे, इन स्थलों पर बने उद्यानों के अतिरिक्त नगर में लालबाग के समीप बारहमत्था और केसरबाग के मंदिर पर दाल बाफले बनाने का चलन रहा है। इस कार्य के लिए इंदौर नगर निगम सुविधा प्रदान करता था। इंदौर नगर पालिका निगम के लगभग सात-आठ दशक पुराने सूचना पत्र में इस बात का उल्लेख है कि पिपलिया पाला और सिरपुर पर मनोरंजन के साथ भोजन बनाने के लिए सुविधाओं का निगम द्वारा इंतजाम कर रखा है, यदि कोई व्यक्ति परिवार के साथ यहां पर भोजन बनाना चाहे तो उसे दोनों तालाबों पर 10 रुपये डिपॉजिट करना होगा, 1 रुपया बर्तनों की साफ सफाई का शुल्क दरोगा को देना होगा, डिपॉजिट राशि बर्तन वापस देने पर लौटा दी जाएगी। बर्तनों का किराया भी प्रति सेट एक रुपया था जाहिर है हमारी पिकनिक मनाने की परंपरा अति प्राचीन रही है। मालवा का प्रसिद्ध भोजन दाल-बाफले बाग-बगीचों में बनाने का चलन अति प्राचीन है।
हमारे धार्मिक रीति-रिवाजों में देवी देवता पूजन के लिए नगर के बाहर या दूरी के स्थानों पर जाने पर वहीं परिवार के साथ भोजन बनाने की परंपरा है। गांवों में भी बाग रसोई की परंपरा रही। लेकिन समय के साथ मनोरंजन और पिकनिक के तौर-तरीके बदल गए हैं, अब तालाबों पर पिकनिक मनाने के बजाय होटलों में जाने का प्रचलन आरंभ हो गया है। इसलिए तालाब और बाग-बगीचे घूमने-फिरने के स्थान बन कर रह गए हैं। देखा जाए तो फ्रांस की क्रांति से आरंभ हुई पिकनिक की प्रथा हमारे यहां और भी प्राचीन समय से चली आ रही एक मनोरंजन की प्रथा है।
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