भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान इंदौर (आईआईटी इंदौर) और भारतीय वन प्रबंध संस्थान (आईआईएफएम) द्वारा किए गए एक महत्वपूर्ण शोध अध्ययन ने मध्य प्रदेश के होशंगाबाद वन प्रभाग में गैर-लकड़ी वन उत्पादों (एनटीएफपी) पर जंगल की आग के गंभीर प्रभावों को उजागर किया है। इस अध्ययन को साउथ एशियन नेटवर्क फ़ॉर डेवलपमेंट एंड एनवायरनमेंटल इकोनॉमिक्स (एसएएनडीईई-आईसीआईएमओडी), काठमांडू, नेपाल द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी। अध्ययन का उद्देश्य जंगल की आग के कारणों का पता करना, वन-आश्रित समुदायों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करना और राहत के लिए आवश्यक नीतिगत कदम सुझाना था।
इस शोध की मुख्य अन्वेषक, आईआईटी इंदौर की डॉ. मोहनासुंदरी ने बताया कि जंगल की आग और एनटीएफपी पर इसके प्रभावों को लेकर तीन मुख्य निष्कर्ष सामने आए हैं। पहला, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में बार-बार और अधिक भीषण आग लगती है, जिससे पारिस्थितिक क्षति के साथ-साथ आर्थिक हानि भी होती है। हालांकि, इस प्रक्रिया से लाभ केवल कुछ ही लोगों को मिलता है। दूसरा, नियंत्रित और छोटे पैमाने की आग से एनटीएफपी के पुनर्जनन को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे इनके सतत संग्रहण की संभावना बढ़ जाती है। तीसरा, कृषि के बावजूद, छोटे भूमि धारकों के लिए एनटीएफपी एक महत्वपूर्ण आय स्रोत बने हुए हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से अधिक लचीले बनते हैं।
इन समस्याओं से निपटने के लिए, शोध में तीन महत्वपूर्ण नीतिगत उपाय सुझाए गए हैं। सबसे पहले, जंगल की आग को रोकने के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में अग्नि निगरानी कार्यक्रमों को विस्तारित किया जाना चाहिए। इससे न केवल आग की रोकथाम होगी, बल्कि ग्रामीणों के लिए नए रोजगार अवसर भी पैदा होंगे। दूसरा, महुआ लड्डू, कुकीज और प्राकृतिक साबुन जैसे उत्पादों के माध्यम से एनटीएफपी के मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे स्थानीय समुदायों की आय में बढ़ोतरी हो और जंगलों से सतत फसल उपजाई जा सके। तीसरा, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को मजबूत करने के लिए बेहतर प्रवर्तन, अधिक खरीद केंद्रों और डिजिटल प्लेटफॉर्म की सुविधा दी जानी चाहिए। इससे फसल उगाने वालों को उचित मूल्य मिल सकेगा और वे बिचौलियों के शोषण से बच सकेंगे।
आईआईटी इंदौर के निदेशक, प्रोफेसर सुहास जोशी ने इस पर जोर देते हुए कहा कि ये नीतिगत उपाय जंगल की आग के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने, वन प्रबंधन को बेहतर बनाने और वन-आश्रित समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए बेहद आवश्यक हैं। जंगल की आग केवल जैव विविधता को नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका पर भी गहरा असर डालती है। यह शोध दिखाता है कि प्रभावी नीतियों और सतत प्रबंधन पद्धतियों के माध्यम से इन प्रभावों को कम किया जा सकता है।
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