इंदौर: आईआईटी इंदौर ने डीआरडीओ के साथ मिलकर ऐसी हाई स्पीड इमेजिंग तकनीक विकसित की है, जिससे किसी भी प्रकार के धमाकों को देखने और समझने का तौर तरीका बदल सकता है. इसे प्रो. देवेन्द्र देशमुख और उनकी टीम ने डिजिटल इनलाइन होलोग्राफी के सिद्धांतों के आधार पर तैयार किया है. इस तकनीक के जरिए इमेजिंग में 50 नैनो सेकंड तक का न्यूनतम एक्स्पोज़र मिल सकता है. एक सेकंड में 7 लाख फ्रेम कैप्चर हो सकते हैं.
इसमें हाई फ्रीक्वेंसी लेजर लाइट है, जो धूल, धुएं के बादलों के बीच से भी मुख्य ऑब्जेक्ट के इमेज को कैप्चर कर सकती है. इसका उपयोग सबसे ज्यादा किसी भी प्रकार के हथियार से होने वाले धमाकों को समझने के लिए रक्षा के क्षेत्र में किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एक्सप्लोजन के बाद टुकड़ों के व्यवहार को स्पष्ट रूप से देखने और उनका विश्लेषण करने की क्षमता ऑफेंसिव और डिफेंसिव दोनों तकनीकों में सुधार ला सकती है.
यहां भी आएगी ये काम
साथ ही अंतरिक्ष में फ्यूल स्प्रे पैटर्न से लेकर अंतरिक्ष यान पर डेबरिस के प्रभाव तक सब कुछ का अध्ययन करने के लिए उच्च गति इमेजिंग आवश्यक है. उद्योगों में इस तकनीक का इस्तेमाल मैन्युफैक्चरिंग सेटिंग्स में मटेरियल कटिंग, स्प्रे फॉर्मेशन और फ्लूइड मैकेनिक्स जैसी बहुत उच्च गति वाली प्रक्रियाओं का विश्लेषण करने के लिए किया जा सकता है.
ऐसी सफलता पहली बार मिली
आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रो. सुहास जोशी ने बताया कि “इस विधि को जो चीज वास्तव में खास बनाती है, वह है टाइम रिजॉल्यूशन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की क्षमता. जबकि पारंपरिक तरीके से 1 माइक्रो सेकंड एक्सपोज़र समय तक सीमित थे, वहीं यह नई तकनीक 50 नैनो सेकंड से भी कम एक्सपोज़र समय के साथ छवियों को कैप्चर कर सकती है. यह प्रणाली प्रति सेकंड 7 लाख फ्रेम तक रिकॉर्ड करने में सक्षम है. जिससे शोधकर्ताओं को एक्सप्लोजन के दौरान कणों के व्यवहार का वास्तविक समय पता चलता है. टाइम रिजॉल्यूशन में यह प्रभावशाली वृद्धि धूल, धुएं या अन्य दृश्य अवरोधों से भरे वातावरण में भी तेज गति से गतिविधि करने वाली वस्तुओं की अधिक विस्तृत ट्रैकिंग में सहायता करती है.”
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