इंदौर | खुद भले दुनिया को अलविदा कह गये, मगर नेत्रदान के बाद वह अपनी आंखों से दूसरों की अंधेरी जिंदगी में हमेशा के लिए उजाला कर गए. दान में मिली आंखों के कार्निया के बाद दृष्टिहीन दिव्यांगों के लिए उनका हर दिन और, हर रात अब दीपावली के दीपों की तरह जगमगा रहा है. इस साल भोपाल में अब तक 1100 से ज्यादा परिजनों ने अपने प्रियजन मृतक की आंखें दान की हैं. इन आंखों से एमवाय हॉस्पिटल और शंकर नेत्र चिकित्सालय में 400 से ज्यादा दृष्टिहीनों को कार्निया ट्रांसप्लांट कर उन्हें नई रोशनी दी गई.
इस साल जनवरी से अभी नवम्बर तक कार्निया ट्रांसप्लांटेशन से एमवाय हॉस्पिटल में 45 तो शंकर नेत्रालय में 420 दृष्टिहीनों को रोशनी मिल चुकी है. इसके अलावा शहर में एमके इंटनेशनल आई बैंक भी है, जो 2010 से आई बैंक चला रहा है. यह आई बैंक इन 13 साल में मरणोपरांत दान में मिली 11 हजार से ज्यादा आंखों से कार्निया निकालकर देश के जरूरतमंद आई हॉस्पिटल को भेजता आ रहा है.
इस तरह इंदौर के आई हॉस्पिटल और आई बैंक दृष्टिहीन दिव्यांग मरीजों की अंधेरी जिंदगी में सूरज की भूमिका निभा रहे हैं तो वहीं मृतक के परिजनों ने अपना बड़ा दिल करके मानवता का धर्म निभाते हुए इस साल इन 11 महीनों में 1153 परिवारों ने अपने मृतक प्रियजनों की आंखें दान में दी है और यह सब कुछ सम्भव हुआ सामाजिक संस्था मुस्कान की वजह से, जिसने पिछले 13 सालों से लगातार जनजागरण अभियान चलाकर समाज की सोच बदलने में अपना अहम रोल अदा किया है.
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