उज्जैन। धर्मधानी उज्जयिनी में सिंहपुरी की होली 3000 सालों से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही है। यहां पांच हजार कंडों से होलिका सजाई जाती है। ब्राह्मण यजुर्वेद के मंत्रों के उच्चारण के साथ उपले (कंडे) बनाते हैं। ब्राह्मण होलिका दहन के दिन प्रदोषकाल में अलग-अलग मंत्रों से पूजन करते हैं। रात्रि जागरण के बाद ब्रह्म मुहूर्त में चकमक पत्थर से होलिका दहन किया जाता है।

यहां गुर्जर,गौड़, ब्राह्मण समाज 3000 सालों से सिंहपुरी में कंडा होली का निर्माण करता आ रहा है, जिसका साक्ष्य मौजूद है। सदियों पहले ही इनके पूर्वजों ने पर्यावण संरक्षण के महत्व को समझते हुए अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए पर्यावरण हितैषी होलिका का निर्माण शुरू किया था और यह परंपरा आज भी कायम है। इस बार भी छह मार्च 2023 को 5000 कंडों से होलिका बनाई जाएगी। इस होलिका दहन के लिए एक माह पूर्व से ही ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद के मंत्रों द्वारा कंडे बनाते हैं। कंडा होली का जितना महत्व पर्यावरण संरक्षण के लिए है, उतना ही घर की सुख-समृद्धि के लिए भी है। कंडा होली के निर्माण तथा पूजन से घर-परिवार में व्याप्त समस्त प्रकार की नकारात्मकता नष्ट होती है और सुख-समृद्धि के साथ खुशहाली आती है।

सिंहपुरी की होली में शामिल होने आते थे राजा भृतहरि

भारतीय संस्कृति में मनीषियों ने हजारों साल पहले इस बात को सिद्ध कर दिया था कि पंच तत्वों की शुद्धि के लिए गोबर का विशेष रूप से उपयोग होता है। यही परंपरा यहां तीन हजार साल से स्थापित है। सिंहपुरी की होली का उल्लेश श्रुत परंपरा के साहित्य में तीन हजार साल पुराना है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सिंहपुरी की होली में सम्मिलित होने के लिए राजा भर्तृहरि आते थे। यह काल खंड ढाई हजार साल पुराना है।

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