पूरे देश में ग्लोबल समिट आयोजित की जा रही है। कारण सिर्फ यह कि देश में निवेश आए और रोजगार बढ़े...। लेकिन, रोजगार को दृष्टिगत रखते हुए देश की खेती को नजरअंदाज किया जा रहा है, ये कहां तक उचित है। जिस तरह से कहा जा रहा है कि देश में जनसंख्या चीन से ज्यादा होने वाली है तो क्या इसके गंभीर परिणामों को लेकर हमारा देश तैयार है...। देश में सबसे ज्यादा जरूरी है अनाज.., जिसके बगैर किसी भी विकास की कल्पना करना बेमानी होगा। जवाबदेही ने सामाजिक सरोकार के तहत इस अंक में अपनी बात रखी है कि यदि जमीन का बड़ा रकबा इंडस्ट्री लगाने और आईटी कंपनियों को दे देंगे तो खेती कहां करोगे? और जब खेती ही नहीं हो पाएगी तो क्या हम कम्प्यूटर, डेटा खाएंगे? ये बड़ा गंभीर मुद्दा है। आज कई देशों में भारत से अनाज निर्यात होता हैं, क्योंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है.., यदि खेती सिमटती जाएगी तो क्या विदेशों से आयात करेंगे अनाज और देश की जनता को महंगा खिलाओगे? यह एक विचारणीय प्रश्न है। भारत में 60 प्रतिशत खेती बारिश पर निर्भर है। और 40 प्रतिशत खेती के लिए सिंचाई के साधन उपलब्ध है। यदि एक-दो साल तक बारिश पर्याप्त न हो तो हमारे देश के हालात भी बिगड़ सकते हैं...। अनाज के लिए जिस तरह से पाकिस्तान और ब्लूचिस्तान में हालात बने हैं, वैसे ही हालात हमारे देश में हो सकते हैं! अभी हालात यह है कि खराब चावल, गेहूं, मक्का और वह अनाज जिसमें स्टार्च ज्यादा होता है को एथेनॉल बनाने में उपयोग किया जा रहा है... वहीं, विडंबना यह भी है कि अच्छे अनाज का भी उपयोग एथेनॉल बनाने में किया जाने लगा है, जबकि अच्छे अनाज को बचाने की आवश्यकता है...। दूसरी ओर, सरकार को देशहित में मुफ्त देने वाली योजनाओं को बंद भी कर देना चाहिए..., क्योंकि इसके दुष्परिणाम ही सामने आ रहे हैं। लोग आलसी हो रहे हैं, अपराध बढ़ रहे हैं, नशाखोरी भी बढ़ते जा रही है...। जब मुफ्त देने की योजना बंद होगी तो लोग काम करने लगेंगे...। इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण जहां जरूरी है, वहीं किया जाना चाहिए...। साथ ही जिस तरह से ग्लोबल समिट में दावे किए जाते हैं कि कितनी जमीन चाहिए बोलो, उतनी दे देंगे..., ऐसी बातों पर विराम लगाना चाहिए, क्योंकि कंपनियां हजारों हेक्टेयर जमीन ले रही है और भवन और मॉल बनाए जा रहे हैं... कुछेक लोगों को रोजगार मिलता है, दुष्परिणाम यह कि देशभर में खेती का रकबा घटता जा रहा है, जो चिंता की बात है।
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