बेतूके बयानबाजी करने वाले नेता एक महीना मुस्लिम क्षेत्र में परिवार सहित रहकर बताए...?
दंगा शब्द सुनकर ही लोगों के मन में सिहरन पैदा हो जाती है। वो परिवार..., जिसके घर पर हमला हुआ हो, वह महिला जो उस वक्त घर में अकेली रहती है और बच्चों को कैसे बचाना है, उस चिंता में रहती है और उसके सामने मौत, आबरू लूटने का डर और न जाने कौन-कौन से विचार उस वक्त उसके मन में कौंध रहे होते हैं...., और दंगाइयों को सिर्फ मार-काट, लूट करना ही नजर आता है...। वहीं, कुछ कांग्रेस के नेता जो जानते हैं कि दंगे की असली वजह क्या है, लेकिन पार्टी से जुड़े होने के कारण पीड़ितों की दुर्दशा को नजरअंदाज कर बेवजह की बयानबाजी जारी कर सूर्खियां बटोरने में लगे हैं। खरगोन 1992 के बाद फिर दंगों की आग में झुलस गया और हमेशा-हमेशा के लिए यहां हिंदू और मुस्लिमों में खाई पैदा कर गया।
खरगोन दंगे की जो बातें सामने आ रही है, वो दर्द कश्मीर के दर्द से कम नहीं है। जो लोग यहां बरसों से रह रहे हैं, उन्हें मजबूरन अपना मकान तक बेचना पड़ेगा। हमारे देश में ही हिंदू सुरक्षित नहीं है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश सरकार उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है, लेकिन इन उपद्रवियों के हौसले मकान-दुकानें टूटने से भी कम नहीं होंगे, क्योंकि ये जेल से छूटने के बाद कहीं भी झोपड़े बनाकर रह लेंगे...और फिर कुछ दिनों बाद फिर ऐसे ही हालात पैदा करेंगे। प्रदेश सरकार को अब उपद्रवियों को कठोर सजा का भी प्रावधान करना चाहिए, जिससे ये उपद्रवी 10-20 साल के लिए जेल में सजा काटे।
घर में घुसे 20-25 लोग, बचकर निकलना नामुकिन था, पेट्रोल बम फेंका तो लगा जिंदा नहीं बचेंगे, जो कहते रहे कि आपको कुछ नहीं होने देंगे, उन्होंने ही घर पर हमला कर दिया
खरगोन के दंगे का दर्द आंखों में लिए ये कहानी उस महिला की है, जिसने कभी सपने में भी सोचा नहीं होगा कि उनके साथ ऐसा होगा। पीड़िता अर्चना पवार की दो बेटियां बड़ी बेटी प्रियांशी 15 साल और छोटी बेटी 9 साल की है। महिला ने मीडिया को बताया कि दंगाई इतने गुस्से में थे कि उनके आंखों में केवल खून सवार था। पति अकेले पड़ गए थे। वे लगातार लूटपाट कर रहे थे। हमें ऐसा लग रहा था कि अब जिंदा नहीं बचेंगे। बस गूंज रही थीं तो सिर्फ डराने वाली आवाजें। चारों ओर से गोलाबारी और पत्थरबाजी हो रही थी। अनगिनत लोग नजर आ रहे थे। 20 से 25 लोग तो हमारे घर में घुस चुके थे। खिड़की, दरवाजे और दीवारों से पत्थर लगातार मार रहे थे। उस डर के बीच मैं बच्चों को संभालने में लगी हुई थी। वहां से निकलना तो नामुकिन था, क्योंकि दोनों गेट पर उपद्रवी खड़े हुए थे। बस यही सोच रही थी कि खुद को बचाऊं या बच्चों को...। जैसे-तैसे पुलिस को कॉल किया करीब एक घंटे बाद आई। इस दौरान उपद्रवियों ने बिस्तर जलाया, गाड़ी को आग लगाई। उन्हें देखकर हम ऊपर से नीचे की ओर भागे। हम गेट खोलने लगे तो इन्होंने आग लगा दी। भगवान जानता है कैसे निकले, हमें तो नया जन्म मिला है। उनसे बचने चढ़ाव के पास एक जगह में बच्चे और महिलाओं को छिपा दिया। बच्चों और हमारे पैर में कांच घुस गए थे, इसलिए हम भाग भी नहीं सकते थे। मदद करने वाला कोई नहीं था, पुलिस के आने के बाद हम भागकर अपने पिता के घर कुंदानगर आ गए।
अर्चना के अनुसार शाम को अचानक चिलाने की आवाजें आने लगीं। बड़ी संख्या में लोग हमारे घर को घेर चुके थे। पत्थर, पेट्रोल बम, गोलाबारी होने लगी। 20 से 25 लोग घर में घुस गए। गाड़ी जलाई, कपड़े जलाए। 30 मिनट में सब कुछ तहस-नहस हो चुका था। वे लगातार बाहर निकलने के लिए ललकार रहे थे। एक पेट्रोल बम मेरे पास आकर गिरा, मैं कुछ दूरी से बच गई, नहीं तो कुछ भी हो सकता था। पहले जो हमें कह रहे थे कुछ नहीं होने देंगे, बाद में वे ही हम पर पत्थर और बम फेंकने लगे।
1992 से अब तक 4 बार दंगाइयों ने घर फूंका
पहने कपड़ों को छोड़कर सबकुछ जला दिया
संजय नगर इलाके में रहने वाले पन्नालाल चांदौर परिवार ने चार बार दंगों का दर्द झेला है। 1992 के दंगे में दंगाइयों ने जहां पूरा घर जलाकर राख कर दिया था। वहीं, 2015 और 2018 में इसी घर को आग के हवाले कर दिया गया था। कमलाबाई के अनुसार हमेशा से उसके घर को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि इलाके में हिंदुओं का सबसे पहला घर हमारा ही है। सैकड़ों दंगाई क्षेत्र में घूम रहे थे। 20 से अधिक तो उनके घर में ही घुसे हुए थे। उनके हाथ में पेट्रोल बम और हथियार थे। घर में घुसते ही सबसे पहले तोड़फोड़ की। फिर सबकुछ जलाकर राख कर दिया। घर में खाने के लिए अन्न का एक दाना नहीं है। गैस टंकी अपने साथ लेकर चले गए। पूजाघर वाले स्थान तक को तहस-नहस कर दिया। कमलाबाई का कहना है कि 1992 में जब दंगे हुए उस समय मेरा बेटा भूपेंद्र सवा महीने का था। उस समय दंगाइयाें ने सिर्फ हमें एक जोड़ कपड़े में छोड़ा था। तब 80 बोरे ज्वार की उपज हुई थी। इसके अलावा दाल, गेहूं सहित अन्य पैदावार भी खूब हुई थी। तब भी सब कुछ लूट ले गए थे। इस बार भी...।
खरगोन दंगे में बिखरे परिवारों के पलायन का दर्द
इस दर्दभरी दास्तां पढ़कर शायद नेताओं को शर्म आ जाए...!
खरगोन दंगे का दर्द यहां के जले हुए मकानों के बिखरे परिवारों से पूछिए। हम संजय नगर में हैं। अब यहां किसी की पत्नी-बेटी लौटना नहीं चाहता तो कोई घर को बेचना चाहता है। महेश मुछाल का घर पूरी तरह जल गया है। पत्नी और बेटी खरगोन में ही रिश्तेदारों के यहां शरण लिए हुए हैं। महेश कहते हैं कि मेरी पत्नी ने मेरे आगे हाथ जोड़ लिए… कहती है मर जाऊंगी, लेकिन इस घर में नहीं लौटूंगी।
उन्होंने मुझे अकेला छोड़ दिया है। महेश की आंखें डबडबा गईं। रुआंसी आवाज में बोले- ये पहली बार नहीं है, जब मेरा घर जला है। 2012 और 2015 में भी जला था, लेकिन इस बार तो कुछ नहीं बचा। पत्नी-बेटी भी यहां आने के लिए तैयार नहीं हैं। अब मुझमें भी इतनी हिम्मत नहीं है कि नए सिरे से गृहस्थी बसा सकूं।
संगीता की भी पूरी गृहस्थी जलकर खाक हो चुकी है। बेटे-बेटी उनके रिश्तेदारों के घर शरण लिए हुए हैं। संगीता कहती हैं कि 2012 में होली और 2015 में दशहरे पर भी हमारे घर जले थे। इस बार तो सबकुछ खत्म कर दिया। घर में कुछ नहीं बचा। रामनवमी के दिन जब शाम को तालाब चौक में धांधल (दंगे) शुरू हुए तो बेटा, मेरी बेटी को लेकर रिश्तेदार के घर चला गया। हम तो काम पर गए थे। हम अगले दिन सुबह लौट पाए। देखा तो सबकुछ खत्म हो चुका था। संगीता के पड़ोस में रहने वाले पवन काले भी अब यहां रहना नहीं चाहते। कहते हैं कि बार-बार होने वाले दंगों से परेशान हो गए हैं। वे तो 6 महीने पहले ही मकान बेचने के लिए निकाल चुके हैं। दंगे वाले दिन भी वे शाम को परिवार सहित अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए थे।
दंगाइयों ने खाने-पीने का सामान तक लूट लिया
कर्फ्यू के बीच यहां की गलियों से गुजरे तो पता चला कि दंगों का सबसे ज्यादा दर्द भी यहीं हैं। यहां नफरत की आग की लपटें कितनी तेज थीं, ये इन घरों के अवशेष बताते हैं। दंगाइयों ने घर से खाने-पीने का सामान भी लूट लिया। किचन के बर्तन से लेकर बाथरूम की बाल्टी तक सबकुछ जलकर खाक हो गया। इस गली में ऐसी एक नहीं अनगिनत कहानियां हैं। दंगे ने इनकी जिंदगी तबाह कर दी।
मेरी पत्नी कहती है मर जाऊंगी, पर यहां नहीं लौटूंगी, अब दंगे नहीं सहेंगे, मकान बेच देंगे
दंगों में जिन घरों में नुकसान पहुंचा है, वहां नगर पालिका खाना बांट रही है। कई गरीब बस्तियों में खाना बांटा जा रहा है। रोजाना 1500 से अधिक घरों में खाना पहुंचाया जा रहा है। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि खरगोन में पूरी तरह शांति है। दंगे में पूरी तरह 10 मकानों को नुकसान हुआ है। इन्हें सरकार फिर से बनाएगी। आंशिक रूप से 70 मकानों को नुकसान हुआ है, इनकी भी मरम्मत सरकार कराएगी। घायलों का फ्री इलाज हो रहा है। ऐसे 16 लोग हैं, जिनकी आजीविका छिन गई। सरकार इनकी भी मदद करेगी। अभी सरकार इसकी भरपाई करेगी, बाद में दंगाइयों से वसूलेगी।
खरगोन का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें मुस्लिम कह रहे हैं
कि रेप करेंगे..., रेप करेंगे...।
नेताओं को देश की खातिर ऐसे अपराधियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के प्रयास करने चाहिए, चाहे फिर वह किसी भी पार्टी के हो। जिन नेताओं को ऐसा लगता है कि हिंदू परिवार मुस्लिम क्षेत्रों में सुरक्षित है और उनके परिवारों के साथ कोई घटना नहीं होती है तो एेसे नेताओं से जवाबदेही अपील करता है कि एक महीना परिवार के साथ मुस्लिम बस्तियों में रहकर आ जाओ, आपको पता चल जाएगा कि वो आपसे कितनी मोहब्बत करते हैं।
हर आदमी घर जीवन में एक ही बार बनाता है, जहां वह चैन से रह सके, लेकिन जब इस तरह मुस्लिम दंगे की आड़ में घरों में लूट कर आग के हवाले कर रहे हैं तो समझा जा सकता है कि उनके मन में देश के प्रति कितनी नफरत है। सब मिलकर रहते हैं, लेकिन जब मुस्लिमों की आबादी बढ़ने लगती है तो वह हिंदू परिवारों को परेशान करने लग जाते हैं। ऐसा पूरे देशभर में चल रहा है। तो क्या प्रशासन लोगों का साथ नहीं दे, खरगोन में जिला प्रशासन ने व्यवस्था बनाए रखी है और वह लोगों को ढांढस बंधा रहा है कि वो घर छोड़कर नहीं जाए। उनके मोहल्ले और कॉलोनियों में पुलिस चौकी बनाई जाएगी, ताकि आगे इस तरह के उन्माद पैदा न हो। लेकिन पुलिस प्रशासन और कानून पर भी विपक्ष के नेताओं के भरोसा नहीं है। सिर्फ एक ही आरोप कि भाजपा ने दंगे कराए।
राजस्थान करौली : करौली में दंगा शुरू होने के पहले बाजार में एक हिंदू परिवार की करीब 7-8 दुकानें थी और इनकी दुकानों से लगी तीन मुस्लिम परिवार की दुकानें थी। अचानक मुस्लिम परिवार दोपहर में दुकानें बंद कर देता है। हिंदू परिवार के लोग पूछते हैं कि क्यों क्या हुआ आज दुकान बंद कर जा रहे हो, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता। ये ही दुकानदार शाम को भीड़ में आकर इन हिंदू परिवारों को दुकान से बाहर निकालते हैं और नकदी लूटकर पूरी दुकानों में आग लगा देते हैं और कहते हैं कि दोबारा यहां मत दिखना।
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