धार। धार जिले में इन दिनों एक शराब माफिया चर्चा का विषय बना हुआ है। आखिर ऐसा हो भी क्यों ना, भैया के सपने ही चर्चा लायक है..। आखिर कोई यूं ही विधायकी के ख्वाब नहीं देखने लगता है, वह भी जन नेताओं के चुनावी क्षेत्र से, जिनकी चिलम भरते ही भिया का अब तक का गोल्डन कार्यकाल कट रहा है। वैसे नेताओं के जन्मदिन और अन्य आयोजनों पर अपने (?) रुपयों से बड़ी संख्या में बैनर, पोस्टर लगवाने और विज्ञापन देने का काम कोई बिना मतलब तो करता नहीं। यह बात अलग है कि भिया ऐसा उन नेताओं के लिए ही करते हैं, जो पावरफुल होने के साथ उनके काम आ सके, वरना भिया की प्रोफेशनल नीति तो उनके चाहने वालों को सर्वविदित है ही कि जिसके नाम में बचा नहीं हो दम, उसके लिए बेकार में क्यों खर्च करें हम। भिया (पैसा और पावर) के मामले में पूरे (प्रोफेशनल) है और (दम और दाम) पर विश्वास रखते हैं
चर्चित (नन्हे) से भिया की (विजय) के (बहादुरी) के कई किस्से उनके निकटवर्ती लोग चर्चा किया करते हैं। अब यह चर्चा भी जोरों पर है कि भिया अब दूसरों के लिए खर्च कर कर के परेशान हो गए हैं। अब खुद ही अपने आप को (बुलंद) करने की (जुगत) कर ली है। इसलिए भिया ने अपनी कर्मस्थली धार जिले (धार या बदनावर) विधानसभा में ही अपने आप को पावर के साथ स्थापित करने का मन बना लिया है। पैसा तो वह बना ही चुके हैं। दो-ढाई दशक में फर्श से अर्श पर यूं ही नहीं आ जाता है कोई। इसके लिए (अ) वैध धंधों को भी तवज्जो देना पड़ती है, तब कहीं जाकर इतना रुपया और संपत्ति इकट्ठा हो पाती है कि आदमी चुनाव लड़ने के बारे में सोच सके। भिया की ऊंची सोच है, जिसके कारण वह जल्द ऊंचाई पर पहुंचेंगे। इसलिए ऊंची पहुंच के लिए भिया ने कई सीढ़ियों को साथ रखा है।
भैया के कारनामों का बखान करने वाले सूत्रों की बातों को माना जाए तो भिया है बड़े खिलाड़ी। बहुत सारे खेलों के जादूगर। शराब का धंधा वैध हो या (अ)वैध हो उसमें तो पकड़ रखते ही है, जमीनों के मामले में भी इनकी नन्ही सी पकड़ भी मजबूत होती है। यही कारण है कि धार शहर में ही भैया और इनके रिश्तेदारों के नाम कई जमीन मकान और दुकान हो चुके हैं। भिया के गुणगान करने वाले सूत्रों का कहना है कि भिया बंटवारा बहुत अच्छा करते हैं, बिल्कुल पंचतंत्र की कहानियों की तरह।
पंचतंत्र की दो बिल्लियां और एक बंदर की कहानी तो सभी ने पढ़ी होगी फिर भी याद दिलाने के लिए बताते चलते हैं कि रोटी को लेकर दो बिल्लियों में विवाद हो जाता है और वह बंटवारा करवाने के लिए बंदर के पास पहुंच जाती है। दोनों का बंटवारा करने के लिए बंदर तराजू में रोटी के टुकड़े कर दोनों ओर रखता है, जिस ओर का पलड़ा झुकने लगता है, बराबर करने के लिए बंदर उसमें से बड़े टुकड़े से एक टुकड़ा कम कर देता है और अपने मुंह में रख लेता है। इसी तरह दोनों पल्ले बराबर तो नहीं होते पर उनमें से बार-बार काटकर रोटी के टुकड़े को बंदर जरूर अपने मुंह में रखता जाता है। रोटी के टुकड़े लगातार छोटे होते देख दोनों बिल्लियां बंदर से निवेदन करती है कि वह अपना फैसला खुद कर लेगी। दोनों को बराबर ना करें। इस पर बंदर अब तक के बंटवारे की फीस कहकर बचे हुए टुकड़े भी अपने मुंह में डाल लेता है..., यह तो हुई पंचतंत्र की कहानी।
पंचतंत्र की इस कहानी की तर्ज पर भिया के बंटवारे भी बड़े प्रसिद्ध है। बंटवारा विवादित भूमि या भवन का हो तो भिया को जमीन और मकान के हिस्से-बांटे करवाने की भी महारत हासिल है। भिया की ऐसी ही न्यायप्रियता का धार बजाजखाना का एक किस्सा बहुत मशहूर है? धार में बजाजखाना किसे कहा जाता है, इस सोच में दिमाग पर जोर लगाने की आवश्यकता नहीं है। वर्तमान में जो जवाहर मार्ग है, उसी को पुराने समय में बजाजखाना कहा जाता था।
बताया जाता है कि बजाजखाना (जवाहर मार्ग)पर बिडवाल वाले सेठ गेंदालाल जी का बड़ा मकान था, जिसका बाद में उनके वारिसों में बटवारा हो गया। जो वर्तमान में नगर पालिका के वार्ड क्रमांक 22 में स्थित है, जिसका मकान नंबर नगर पालिका में पुराना क्रमांक 19 तथा नया क्रमांक 75 बताया जाता है। पांच हिस्सों में बंटे इस मकान का एक भाग अभी भी बंद पड़ा है। एक में कपड़े की दुकान है और एक में रेडीमेड की दुकान है। यह तीनों दुकान और मकान बिड़वाल वाले सेठ के वारिसों के पास ही है किंतु दो अन्य शेष बचे दुकान- मकान के मालिकों ने अपने हिस्सों को अन्य लोगों को बेचा है। दो दुकानों में से एक दुकान दिलीप सेठ के पास थी, जो उन्होंने शंकर पिता गुरमुखदास मेरवानी को बेच दी। इसी के पास एक और अन्य दुकान सेठ सरदारमल की थी, जिसमें 1990 से एक जैन व्यापारी की इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान थी, सेठ जी और और इलेक्ट्रॉनिक के व्यापारी में पारिवारिक संबंध थे। आवश्यकता होने पर सेठ जी और उनके परिवार वालों ने किराएदार श्री जैन को दुकान, मकान का सौदा वर्ष 1999 में कर दिया। लगभग 10:30 लाख रुपए में एडवांस राशि के लेन-देन के बाद पेंच फंस गया और विक्रेता सेठ जी और क्रेता श्री जैन के बीच विवाद हो गया और मामला कोर्ट तक जा पहुंचा। वर्षों कोर्ट-कचहरी होती रही।
सूत्र बताते हैं कि इसी बीच सेठ जी के परिजनों ने ज्वेलरी का व्यवसाय करने वाले श्री कमल गुप्ता के साथ भी सौदा कर लिया। बताया जाता है कि यह सौदा 14 लाख में किया था, चूंकि श्री जैन और सेठ जी के सौदे का विवाद कोर्ट में था और जैन के पास स्टे था। ऐसे में मामला दो पक्षों के बीच उलझा हुआ था। विवादित संपत्ति में सदा से ही रुचि रखने वाले फकरु से गबरु हुए भिया की विवाद को देखते हुए यहां एंट्री हुई और उन्होंने भी सौदे में अपना हाथ डाल दिया। अब एक अनार तीन बीमार की स्थिति बन गई थी। स्वास्थ्य कारणों से सेठ जी के परिजनों को राशि की आवश्यकता थी। भिया ने यहां अपनी पंचतंत्र जादूगरी का सहारा लिया और एक नेता जी की मदद से सुंदर वादे कर साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग कर श्री जैन को ताबे में लिया और कमल ज्वेलर्स को भी अपनी स्टाइल दिखाई, जिससे भिया की स्टाइल (दगाबाजी) के चलते श्री जैन और कमल गुप्ता दोनों ही पक्षों को सौदे से हटना पड़ा और दोनों को खासा नुकसान हुआ। दोनों के सौदे से हटने के बावजूद भी भिया ने इस संपत्ति को नहीं खरीदते हुए लाखों के वारे न्यारे करते हुए अपने सौदे का उतारा 2015 में मनीष सुभाष गुप्ता को करवा दिया। जहां फिलहाल (ज्वेलर्स का संगम) हो रहा है। बताया जाता है कि इस संपत्ति में कुछ दस्तावेज ऐसे फंसे हुए थे कि भिया को अपनी गर्दन फंसती नजर आ रही थी। ऐसे में भिया ने इसका उतारा दूसरों (गुप्ता जी) को करना ही मुनासिब समझा। बताया जाता है कि इस पूरे सौदे के पूर्व ही दिलीप सेठ वाला मकान, जिसे शंकर मेहरवानी ने खरीदा था, उस 1292 वर्ग फीट दुकान और मकान को शंकर मेरवानी से नन्हे भिया ने 2010 में ही खरीद लिया था, जहां बड़ा भवन बनाया गया, जिसमें अब साड़ी का शोरूम डाला जा रहा है। भिया द्वारा इस संपत्ति से लगी हुई संपत्ति को जिसमें उन्होंने सौदा किया था किसी और को परभारे बिकवा दिया, जो चर्चा का विषय बना हुआ है
यह तो भिया के संपत्ति के मामले की खिचड़ी का एक चावल मात्र है, वरना विवादित जमीन, मकान, दुकानों को लेकर भिया के इससे भी बड़े कई जादूगरी दांव कैलाश नगर, बख्तावर मार्ग, कलेक्टोरेट रोड, जैतपुरा सहित कई जगह फैले हुए हैं, जिनके बारे में पाठक संकल्प सूत्र के माध्यम से रूबरू होते रहेंगे।
ऐसा ही नहीं है कि भिया जमीन में ही जादूगरी दिखा दगा दे जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि शराब माफियाओं के सिंडिकेट में भी भिया का पंचतंत्र का बंटवारा बहुत प्रसिद्ध है। यहां छोटे इन्वेस्टर हो या बड़े, सभी को पुलिस-प्रशासन, नेता और मीडिया के नाम पर भिया की जादूगरी के चलते खर्च के नाम पर लंबा फटका लगाया जाता है, खर्च सिंडीकेट के
माथे मढ़ा जाता है और जय-जयकार भिया अपनी करवाते है? धार से गुजरात भेजी जा रही अवैध शराब, आरोपी बोला अल्केश बकालिया को भलीभांति जानता हूं
इंदौर। धार जिले से गुजरात राज्य में बड़ी मात्रा में अवैध शराब का परिवहन किया जा रहा है। ऐसे में वहां की पुलिस ने 27 मार्च को अवैध शराब से भरी (एक्सयूपी - जीजे-1 केआर 3331) को पकड़ा और 28 मार्च को धारा 154 के तहत प्रकरण दर्ज किया। गुजरात पुलिस ने युनूस खान, अब्दुलसुबन पठान, चंद्रशेखर मार्ग राजगढ़, जिला धार को पकड़ा और इनसे भारी मात्रा में अवैध विदेशी शराब पकड़ी। इनसे जब पुलिस ने पूछताछ की तो इनके पास भारतीय निर्मित विदेशी शराब को बाहर निकालने का कोई परमिट नहीं था। जो शराब पकड़ी गई, उसे जेके इंटरप्राइजेस 482/ए, पीथमपुर, जिला धारा द्वारा बनाया जाना पाया गया। इसके अलावा माउंट की सुपर स्ट्रांग बीयर भी पकड़ी जो माउंट एवरेस्ट ब्रुअरीज लिमिटेड ग्राम मेमाडी पोस्ट सिमरोल जिला इंदौर की पाई गई। आरोपी ने पूछताछ में बताया कि वह परेश उर्फ चाको शानाभाई के साथ लंबे समय से काम कर रहा है। लंबे समय से विदेशी शराब गुजरात के पंचमहल जिले के आसपास खपाई जा रही है। उसने बताया कि मध्यप्रदेश के आलीराजपुर जिले के छटकलां गांव का रहने वाला सचीभाई शराब देता है और उस स्थान का मालिक अलकेश बकलिया है, जिसे वह भलीभांति जानता है, लेकिन अलकेश का मोबाइल नंबर उसके पास नहीं है। लेकिन यहां के मैनेजर सचीभाई और अल्केशभाई बकालिया नंबरों को पायलट कर रहे हैं। पुिलस जांच में पता चला कि आलीराजपुर जिले के चटकला गांव के ठेका प्रबंधक सचीभाई और ठेके के मालिक अलकेश बकलिया हैं। शिकायत की जांच अधिनियम की धारा 3 (ए) (ई), 21, 2, 114 (बी), 3 (2) के अनुसार की जानी है।
(साभार-संकल्प सूत्र)
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