गत माह भोपाल में भाजपा नेत्री द्वारा संचालित की जा रही गौशाला में गायों की मौत हुई थी, इस पर प्रदेश की राजनीति में खलबली मच गई थी। इसके बाद अब इंदौर के पेडमी में गायों की मरने की खबर पर फिर राजनीति चरम पर है और खासा विवाद चल रहा है। खास बात यह भी कि प्रदेश भर में चलने वाली 1392 गौशालाओं की बदहाल स्थिति भी सामने आ गई है। गौशालाएं प्रदेश सरकार के लिए गले की हड्डी बन गई हैं। वहीं, इन गौशाला की आड़ में जो भ्रष्टाचार हो रहा है, उस पर सवाल तो उठ रहे हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है।
उज्जैन, शाजापुर, आगर-मालवा तरफ सड़क पर गायें विचरण कर रही हैं। लोग एक्सीडेंट में मर जाते हैं। जो लोग एक्सीडेंट में हताहत होते हैं, उनके परिजनों की चिंता किसी भी पार्टी को नहीं हो रही है, बस गाय नहीं मरनी चाहिए, इंसान मर जाए तो चलेगा, उसका परिवार बेघर हो जाए चलेगा...। हम मानते हैं कि गाय पूजनीय है, लेकिन उसका इस तरह से राजनीतिकरण करना ठीक बात नहीं है।
मध्य प्रदेश 200 से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़े प्रदेशभर में अलग-अलग जगहों पर चलने वाली गौशालाओं से हैं। इन मौतों की वजहों में भूख से लेकर ठंड में बढ़ोत्तरी तक शामिल है। इसके चलते सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के बीच वाकयुद्ध भी शुरू हो गया है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा गायों की सुरक्षा को लेकर फर्जी चिंता करती है।
फसल होती है बर्बाद
उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। किसान परेशान हैं कि उनकी फसल को आवारा जानवर चौपट कर जाते हैं। इसी तरह के हालात मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले सहित तमाम जगह के हैं, जहां गायें किसानों की फसल बर्बाद कर रही है।
कुल 1392 गौशालाएं
मध्य प्रदेश में कुल 1392 गौशालाएं रजिस्टर्ड हैं। इन जगहों पर कुल मिलाकर 1 लाख 80 हजार गायों को रखा गया है। प्रदेश सरकार ने इसके लिए बजट में 60 करोड़ रुपए और अनुपूरक आवंटन में 30 करोड़ रुपए जारी किए। इस हिसाब से प्रति गाय के लिए 13 रुपए का हिसाब बैठता है। जबकि सरकारी प्रावधान में एक गाय के ऊपर हर दिन सात रुपए तक खर्च किए जा सकते हैं। अधिकारियों के मुताबिक गौ संवर्धन बोर्ड ने गायों की देखभाल के लिए डोनेशन कैंपेन शुरू किया है। इसमें चंदा देने वालों को टैक्स में छूट का भी प्रावधान भी है। इस मद में दो साल में बोर्ड को केवल 2.09 लाख रुपए की आय हुई है। पशुपालन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार आम लोगों को गौ सेवा में कोई रुचि नहीं है। वहीं प्रदेश सरकार घाटे में चल रही है इसके चलते बोर्ड पैसे की तंगी से जूझ रहा है। मध्यप्रदेश में 9 मार्च को पेश होने जा रहा वित्त वर्ष 2022-2023 का बजट पूरी तरह से चुनावी होगा। सरकार गायों की सेवा के लिए अलग गो-संवर्धन पर 90 करोड़ की नई योजना लाने की तैयारी है।
मध्यप्रदेश में गर्माएगा मामला
मध्यप्रदेश में आने वाले दिनों में जब चुनाव होंगे, तब सबसे बड़ा मुद्दा गायों को लेकर ही उठने वाला है, क्योंकि राजनीतिक पार्टियां इंसानों की चिंता छोड़, पशुओं की चिंता ज्यादा करने लगी है, क्योंकि राजनीतिक दल जानते हैं इंसानी प्रेम, आस्था और उसका लगाव, धर्म की आड़ में राजनीति अच्छी बात नहीं है। उपाय ढूंढना चाहिए कि आखिर गौशालाओं में जो बीमार गायें हो रही हैं या फिर जो पशुपालक बूढ़ी हो चुकी गायों को गौशाला छोड़ रहे हैं तो वह कब तक जीवित रहेगी या बीमार है तो डॉक्टरों से सलाह-मशविरा कर उसे गौैशाला में रखें या फिर तुरंत पशुपालक को लौटा दे, जो व्यवस्थाएं चली आ रही थी, उस पर प्रतिबंध लगाने से हालात काफी चिंताजनक हो गए हैं। पशुओं की संख्या में एकदम बढ़ोतरी हो गई है।
पूरा प्रतिबंध
गो-हत्या पर पूरे प्रतिबंध के मायने हैं कि गाय, बछड़ा, बैल और सांड की हत्या पर रोक।
निर्यात होता है भारत से
भारत की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी हिंदू हैं। इनमें से ज्यादातर लोग गाय को पूजते हैं। लेकिन ये भी सच है कि दुनियाभर में ‘बीफ’ का सबसे ज्यादा निर्यात करनेवाले देशों में से एक भारत है। दरअसल ‘बीफ’, बकरे, मुर्गेे और मछली के गोश्त से सस्ता होता है। इसी वजह से ये गरीब तबकों में रोज के भोजन का हिस्सा है। खास तौर पर कई मुस्लिम, ईसाई, दलित और आदिवासी जनजातियों के बीच बीफ खाने का चलन है। गो-हत्या पर कोई केंद्रीय कानून नहीं है पर अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर की रोक दशकों से लागू है। तो सबसे पहले ये जान लें कि देश के किन हिस्सों में ‘बीफ’ परोसा जा सकता है।
गो-हत्या कानून के उल्लंघन पर सबसे कड़ी सजा भी इन्हीं राज्यों में तय की गई है। हरियाणा में सबसे ज्यादा एक लाख रुपए का जुर्माना और 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान है।
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