प्रधान संपादक
देश हित, देश प्रेम और लोकतंत्र जैसी बातें सिर्फ शब्द बनकर रह गए हैं। बात जरूर कड़वी है, लेकिन सच भी है। ये तीनों शब्द आम आदमी से लेकर नेता और अफसरों पर लागू नहीं होते या यूं भी कहा जा सकता है कि अब लोगों के जीवन में इन शब्दों के कोई मायने नहीं रहे। इनके लिए सबकुछ सिर्फ पैसा है। पढ़ाई जो हर इंसान को इस काबिल बनाती है, कि वह अच्छे-बुरे की परिभाषा को समझ सके। पढ़ाई के मायने भी अब अलग-अलग निकाल लिए हैं..., अब जो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं वो गरीब परिवारों से ज्यादा ताल्लुक रखते हैं। उस बच्चे को यह बात समझ आ गई है कि वह अगर पढ़-लिखकर अफसर बन गया तो फिर चांदी ही चांदी है, इसलिए वह सरकारी नौकरी में जाना चाहता है, क्योंकि यहीं पर भ्रष्टाचार की नदी बहती है, जिसमें वह हाथ धोकर अपनी गरीबी को हमेशा के लिए खत्म कर देगा। दूसरे वह बच्चे जो अमीर परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, उनके जीवन में पढ़ाई कोई मायना नहीं रखती। उनके मां-बाप पैसों के दम डिग्री खरीदकर उसे पढ़ा-लिखा बना रहे हैं। रईस घर के बच्चे सिर्फ घूम-फिरकर टाइम पास कर रहे हैं, उन्हें कोई नौकरी तो करनी नहीं, आगे-पीछे परिवार का ही बिजनेस उन्हें संभालना है। अफसर सुबह से लेकर शाम तक भ्रष्टाचार कहां करना है, इस साजिश पर काम करते हैं। नेता, जिन पर ये जिम्मेदारी है कि वह सरकारी पैसों का कहीं अफसर दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हैं, उस पर निगाह रखें..., लेकिन नेता अपने कमीशन पर ध्यान देता है। वहीं, जिन बच्चों को विरासत में बिजनेस मिला है, वो गलत कामों को रिश्वत देकर कर रहे हैं, क्योंकि डिग्री भी तो खरीदी हुई है और जिसने पढ़ाई करके अफसरी हासिल की है, उसे पता है कि कैसे माल छापना है...।
देश की किसी को कोई चिंता नहीं है, लोग सिर्फ काली कमाई कैसे करनी है, उसकी तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि समाज में लड़के ही दोषी हैं, लड़कियां भी लड़कों से ज्यादा गलतियां कर रही हैं। लड़कियां फिल्म नगरी मुंबई की तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित होती है, वहां की चकाचौंध देखकर हीरोइन बनने के सपने लिए जाती है और एक-दो फिल्म में यदि काम मिल गया तो ठीक, वरना सेक्स रैकेट का हिस्सा बन जाती है और कुछ समय बाद उनकी लाश या तो सड़क किनारे मिलती है या फिर कचरे के ढेर में। ऐसी लड़कियों के साथ परिवार भी तब तक साथ रहता है, जब तक वह पैसा पहुंचाती है। हमारे देश का सेंसर बोर्ड अंधा-बहरा हो चुका है, क्योंकि उसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रीलीज होने वाली फिल्मों के संवाद न तो सुनाई देते हैं और अश्लील दृश्य तो दिखाई ही नहीं देते। इसके अलावा वेब सीरीज में शुरुआत ही गंदी बातों से होती है और अंत भी। आप ताज्जुब करोगे कि अच्छे कामों के लिए कोई पैसा नहीं खर्च कर रहा और ना ही कमा रहा है। पैसा कमाया और खर्च किया जा रहा है तो सिर्फ गलत धंधों के लिए।
अब एक उदाहरण जुएं का देख लो, अगर कहीं कोई ताश पत्ती का जुआ खेल रहा है तो पुलिस उठाकर उसे थाने में बंद कर देती है। थोड़ी बहुत उस जुआरी की इज्जत मीडिया में फोटो छापकर पूरी कर दी जाती है। ये तो हुई ताश पत्ती पर जुआ खेलने वालों की बात। लेकिन जो ऑनलाइन जुआ खेलकर लड़के-लड़कियों को बिगाड़ रहे हैं, उस तरफ सरकार ने मौन साथ रखा है, क्योंकि ऑनलाइन जुआ खिलाने से सरकार को राजस्व मिल रहा है, यूथ बिगड़े तो बिगड़े। अब क्रिप्टो करेंसी को लेकर सरकार 30 प्रतिशत की दर से कर लगाएगी और भारत भी जल्द ही अपनी डिजिटल करेंसी जारी करेगा। लोगों का अगर पैसा डूब जाएगा तो इसमें सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं रहेगी, सरकार को सिर्फ अपने प्रतिशत से मतलब है, अर्थात राजस्व सरकार के खजाने में आना चाहिए। अब क्या सरकार को ये नहीं पता कि ऑनलाइन गेम खेलने की वजह से कई लोगों की जान जा चुकी हैं, बच्चों ने ऐसे अपघाती कदम उठाए हैं कि घटनाओं को पढ़कर रुह कांप जाती है, लेकिन लोगों की जानमाल की सरकार में बैठे लोगों को कोई परवाह नहीं है। इस साल जारी बजट में कहा गया कि ऑनलाइन गेम को लेकर बढ़ावा देने पर सरकार काम कर रही है। सरकार का तर्क है कि इससे रोजगार के क्षेत्र में अवसर बढ़ेंगे, लेकिन इसके विपरीत आ रहे परिणामों की तरफ सरकार का ध्यान नहीं है कि बच्चे पढ़ाई नहीं करेंगे, युवा काम नहीं करेंगे और काम करने वाला व्यक्ति दफ्तर में काम करने की बजाए ऑनलाइन गेम खेलता रहेगा...., क्या ऐसा आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है।
Bahut hi sundar lekh thankyou. Jababdehi
ReplyDeletewellcome
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