जवाबदेही @ इंदौर
हर सप्ताह रिश्तों को तार-तार करने वाली खबरें सामने आ रही है। गत मंगलवार को हो रही जनसुनवाई में कुछ ऐसी ही बातें सामने आ रही है। ज्यादातर मामले प्रॉपर्टी से ही जुड़े हैं, जिसमें बच्चे मां-बाप की संपत्ति हथियाना चाह रहे हैं। फिर चाहे बेटे के पास करोड़ों की संपत्ति ही क्यों न हो। ऐसी ही फरियाद इंदौर के सुदामा नगर में रहने वाले 72 वर्षीय रिटायर्ड हेड कांस्टेबल महेश कुमार वर्मा (सेन) और उनकी पत्नी सिंधु की है। उनका कहना है कि करोड़ों रुपए की संपत्ति का मालिक होने के बाद भी बिजनेसमैन बेटा हमारे स्वामित्व के मकान पर कब्जा करना चाहता है। इसके लिए वह गोली मारने और छत से फेंकने की धमकी देता है। परेशान करने के लिए तीसरी मंजिल तक जाने वाली लिफ्ट में करंट भी फैला रखा है। सुदामा नगर के मकान में तीन किराएदार थे, जिनसे हमारा गुजर-बसर होता है। ये मकान वर्ष 1982 में हमने बनाया था। इसका स्वामित्व भी हमसे छीनना चाहता है। मामले में अन्नपूर्णा सीएसपी को जांच कर बेटे के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।
ऐसी घटनाएं निंदनीय
ऐसा नहीं है कि सभी परिवारों में ऐसी घटनाएं हो रही है, लेकिन जिन भी परिवारों में बुजुर्गों को सताया जा रहा है, वह निंदनीय है। बेटे-बहू और बेटियां वह सारे दिन भूला चुकी हैं, जिन दिनों उनके मां-बाप ही उनका सहारा थे। बचपन से लेकर ब्याह करने तक की जिम्मेदारी ये माता-पिता पूरी तरह से निभाते हैं, बदले में बहू आने के बाद बेटा मां-बाप का नहीं रह जाता। यहां यह भी बात उल्लेखनीय है िक बेटे पर भी उसके परिवार की जिम्मेदारी रहती है, लेकिन मां-बाप के प्रति भी उसका दायित्व रहता है। आज-नहीं तो कल मां-बाप की संपत्ति तो बेटे-बेटी की ही होना है तो फिर क्यों उन्हें परेशान किया जाता है। इंदौर में पुिलस ने परामर्श केंद्र बना रखे हैं, जहां बुजुर्ग आकर अपने बेटों की िशकायत करते हैं। यहां बच्चे ध्यान नहीं दे रहे हैं कि उनके द्वारा किए गए ऐसे कृत्य से समाज में ही उनका मान-सम्मान घट रहा है।
सीनियर सिटीजन्स एक्ट लागू
आंकड़े बताते हैं कि देश में बुजुर्गों की आबादी 10 करोड़ से अधिक हो चुकी है। लेकिन इनकी आबादी बढ़ने से एक नई समस्या खड़ी हो गई है। युवा पीढ़ी न तो इनका ध्यान रख पा रही है और न ही इनका इतना आदर कर पा रही है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें बुजुर्गों से मार-पीट, प्रताड़ना और यहां तक कि उनकी हत्या भी की गई है। कुछ समय पहले की ही बात है। 50 साल के एक प्रौढ़ ने अपनी मां की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि वह उनका चिकित्सा खर्च वहन नहीं कर पा रहा था। भारत सरकार ने बुजुर्गों की सुरक्षा को देखते हुए मैंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट 2007 लागू किया। बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिक आत्मसम्मान से जीवन जी सकें, इसी के लिए यह कानून बनाया गया है। कानून बच्चों और परिजनों पर कानूनी जिम्मेदारी डालता है, ताकि वे अपने माता-पिता और बुजुर्गों को सम्मानजनक तरीके से सामान्य जीवन बसर करने दें। इसमें राज्य सरकारों को हर जिले में वृद्धाश्रम खोलने को कहा गया है।
बुजुर्गों को 10 हजार रु. हर माह देना पड़ेगा
यहां वरिष्ठ नागरिक से मतलब है देश का ऐसा कोई भी नागरिक जो 60 वर्ष की उम्र पूर्ण कर चुका है। इसके अलावा परिजन वे कहलाते हैं, जो कानूनी रूप से उन वरिष्ठ नागरिकों के उत्तराधिकारी हों, जिनके बच्चे नहीं हैं। कानूनी अधिकार प्राप्त वारिस नाबालिग हो और बुजुर्ग के गुजर जाने के बाद वही उनकी संपत्ति का हकदार हो। जो माता-पिता अपनी आय से अपना पालन-पोषण करने के काबिल नहीं है, वे मेंटेनेंस के लिए अपने वयस्क बच्चों से कह सकते हैं। इस मेंटेनेंस में उचित आहार, आश्रय, कपड़ा और चिकित्सा उपचार आता है, ताकि वे पालक सामान्य जीवन जी सकें।
पालक या तो वास्तविक हो, या उन्होंने बच्चे को गोद ले रखा हो, या सौतेले माता या पिता हों। फिर भले ही वे वरिष्ठ नागरिक हों या नहीं, लेकिन उनकी देखरेख का जिम्मा बच्चों पर होता है। ऐसे बुजर्ग जिनके बच्चे नहीं हैं और जो साठ वर्ष या इससे अधिक के हैं, वे भी मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं। वे परिजनों से मेंटेनेंस की अपील कर सकते हैं। वे उन लोगों से कह सकते हैं, जिनको उत्तराधिकार के रूप में उनकी संपत्ति मिलने वाली हो। इसका आवेदन उक्त बुजुर्ग को खुद ही देना होता है। इसके लिए वे किसी व्यक्ति को भी अधिकृत कर सकते हैं। इस कानून के तहत बनाए गए न्यायाधिकरण या ट्रिब्यूनल तभी बनते हैं, जब यह स्पष्ट हो कि बच्चों या परिजनों ने उक्त बुजुर्ग की अनदेखी की या फिर उनकी देखरेख करने से इंकार कर दिया। ये न्यायाधिकरण इन बच्चों या परिजनों को 10,000 रु. महीना गुजारे के लिए देने को कह सकता है।
तब संपत्ति हस्तांतरण निष्प्रभावी
यदि कोई वरिष्ठ नागरिक, जो गिफ्ट या किसी अन्य तरीके से अपनी संपत्ति का हस्तांतरण किसी को करता है। जिसके नाम संपत्ति की गई है, यदि वह उक्त बुजुर्ग व्यक्ति की देखरेख नहीं कर पाता है या करने से इंकार करता है तो यह माना जाता है कि संपत्ति हस्तांतरण धोखाधड़ी से किया गया है। या फिर यह माना जा सकता है कि किसी के प्रभाव में संपत्ति हस्तांतरण करा लिया गया है। किसी रियासत के एवज में भी वरिष्ठ नागरिक को मेंटेनेंस लेने का हक रहता है। या फिर यह रियासत या जमीन आदि किसी को हस्तांतरित की हो या तो आधी की हो या पूरी, तब भी मेंटेनेंस पाने का हक उक्त बुजुर्ग का रहता है।
पर्सनल लॉ
मुस्लिम लॉ के अनुसार बेटा और बेटी का यह दायित्व बनता है कि वे अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखरेख करें। हिंदू दत्तक एवं देखभाल कानून 1956 में उल्लेख है कि बच्चों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे माता-पिता की देखरेख करें। ईसाई और पारसियों में इस तरह का कोई पर्सनल लॉ नहीं है। इनमें जो माता-पिता मेंटेनेंस चाहते हैं, उनको आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत आवेदन करना होता है। इस संहिता में सभी धर्म और समुदाय आते हैं। यदि किसी मजिस्ट्रेट ने किसी वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता की जिम्मेदारी वहन करने का आदेश दिया है और कोई बच्चा या दत्तक या परिजन उसका पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ प्रकरण चलाया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के पास अपने माता-पिता की देखभाल करने के पर्याप्त कारण रहते हैं तो प्रथम श्रेणी के न्यायाधीश उसे माता-पिता को मासिक भत्ता देने को कह सकते हैं।
बुजुर्गोंके लिए सरकारी नीतियां
1999 में केंद्र सरकार ने बुजुर्गों के लिए राष्ट्रीय नीति घोषित की। इसमें उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और उनके सुचारू जीवन का ध्यान रखा गया। इस नीति में परिजनों को बुजुर्गों की देखरेख के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इसके अलावा हमारे देश में वरिष्ठ नागरिकों को कई सुविधा है।
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