जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक
विश्वभर में प्रतिवर्ष 25 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ मनाया गया। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने के प्रयास की आवश्यकता को रेखांकित करनेवाले कार्यक्रम इस दिन आयोजित किए जाते हैं। लेकिन हकीकत में ऐसा होता दिखाई नहीं देता। सार्वजनिक मंचों से तो भले ही महिलाओं का आदर-सत्कार करने की बातें कही जाती रही हो, लेकिन महिलाओं का शोषण होना कम नहीं हो रहा है। महिलाओं के प्रति हिंसा विश्व में सबसे भयंकर, निरंतर और व्यापक मानव अधिकार उल्लंघनों में शामिल है। इसका दंश विश्व में हर तीन में से एक महिला को भोगना पड़ता है। खास बात यह कि वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ का गठन किया गया था। आंकड़ों के अनुसार विश्वभर में 15-19 आयु वर्ग की करीब डेढ़ करोड़ किशोरियां जीवन में कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं, करीब 35 फीसदी महिलाओं और लड़कियों को अपने जीवनकाल में शारीरिक एवं यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। हिंसा की शिकार 50 फीसदी फीसदी से अधिक महिलाओं की हत्या उनके परिजनों द्वारा ही की जाती है। वैश्विक स्तर पर मानव तस्करी के शिकार लोगों में 50 फीसदी वयस्क महिलाएं हैं। प्रतिदिन तीन में से एक महिला शारीरिक हिंसा का शिकार होती है। भारत में भी स्थिति काफी चिंताजनक है। अभी हाल ही में इंदौर में बांग्लादेश की लड़कियों को दलालों के चंगुल से छुड़ाया गया। इन लड़कियों से देह व्यापार कराया जाता था। लड़कियों की दास्तां पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, कि िकस तरह इनके परिवारों को मार दिया गया और जालसाजी कर इन्हें उलझाकर देह व्यापार के धंधे में धकेल दिया गया। वहीं, एक बात और सामने आती है कि कई जगह पुिलस की मिलीभगत के कारण अवैध धंधे फलफूल जाते हैं और जब बात सामने से वाले से नहीं बनती तो कार्रवाई कर मामले का भंडाफोड़ किया जाता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, 2020 में कोरोनाकाल के दौरान महिलाओं और बच्चों के खिलाफ पारंपरिक अपराधों में कुछ कमी देखी गई, लेकिन देश में अपराध के मामले 28 प्रतिशत बढ़ गए। देशभर में 2020 में बलात्कार के प्रतिदिन औसतन 77 मामले दर्ज किए गए और कुल 28046 मामले सामने आए। वर्षभर में पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज हुए, जो 2019 में 4,05,326 और 2018 में 3,78,236 थे. वर्ष 2019 में महिलाओं के खिलाफ 4,05,326 मामले सामने आये थे, जिनमें प्रतिदिन औसतन 87 मामले बलात्कार के दर्ज किए गए। इस तरह के तमाम मामलों से स्पष्ट है कि केवल कानून कड़े कर देने से ही महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध थमने वाले नहीं हैं।
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