आभासी दुनिया
जीवन को सिमटा देगी
जवाबदेही @ इंदौर
एक आभासी दुनिया (जिसे वर्चुअल स्पेस भी कहा जाता है ) एक कंप्यूटर-सिम्युलेटेड वातावरण है, जो कई उपयोगकर्ताओं द्वारा आबाद हो सकता है जो एक व्यक्तिगत अवतार बना सकते हैं और साथ ही और स्वतंत्र रूप से आभासी दुनिया का पता लगा सकते हैं, इसकी गतिविधियों में भाग ले सकते हैं और दूसरों के साथ संवाद कर सकते हैं। ये अवतार पाठ्य हो सकते हैं, चित्रमय प्रतिनिधित्व, या श्रवण और स्पर्श संवेदनाओं के साथ लाइव वीडियो अवतार। सामान्य तौर पर, आभासी दुनिया कई उपयोगकर्ताओं के लिए अनुमति देती है, लेकिन एकल खिलाड़ी कंप्यूटर गेम, जैसे कि द एल्डर स्क्रॉल वी: स्किरिम, को एक प्रकार की आभासी दुनिया भी माना जा सकता है।
आप शायद ये सोच रहे होंगे कि हम काफी स्मार्ट हो चुके (मोबाइल फोन और इंटरनेट की बदौलत) हैं, आधुनिक हो चुके हैं और घर बैठे वह सब काम कर रहे हैं, जिनके लिए कभी बाजारों या ऑफिस, बैंक आिद जाना पड़ता था। तो बात समय बचाकर काम कुशलतापूर्वक करने और बचे हुए समय में कुछ नया करने के लिए ठीक है। लेकिन यदि यही स्मार्टता आज युवाओं को अंधेरी दुनिया और आभासी दुिनया में ले जाने वाला है या यूं भी कहे कि इसकी तैयारी भी पूरी हो चुकी है। समय को देखते हुए और लोगों की पड़ चुकी इस गंदी आदतों की वजह से ऐसा सब कुछ होने वाला है और होगा ही। अब पूरी दुनिया को आप उंगलियों के माध्यम से टटोलकर वहां तक पहुंच रहे हैं, जहां तक जाना असंभव सा है। और इस आभासी दुनिया के दुरगामी परिणामों की ओर किसी का ध्यान नहीं है या फिर यूं भी कहा जा सकता है कि सब कुछ जानकर भी हम अनजान बनते जा रहे हैं।
स्मार्ट फोन और इंटरनेट को लेकर कई बार लेख, शोध और न जाने कितनी रिपोर्ट आ गई होंगी कि इससे लोग आलसी, तनावग्रस्त और कामचोरी की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन शोधीकर्ता, लिखने वाले और जानने वाले बुिद्धजीवी तक इसके आदी हो चुके हैं और खुद भी चाहकर इन सुविधा देने वाली इन दुविधाओं को अपने आपको दूर नहीं रख पा रहे हैं।
खेलकूद पर नहीं ध्यान
आपको याद होगा कि पहले गली-मोहल्ले में बच्चे दौड़-भाग करते थे। मैदानों पर रस्सी कूद, कबड्डी और सितोलिया जैसे पारंपरिक कई खेल खेले जाते थे। इन खेलों से बच्चों की फिटनेस बनी रहती थी। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता था तो उसकी रुचि जिस खेल के प्रति होती थी, उसके लिए ट्रैनिंग आदि की व्यवस्था कर दी जाती थी। लेकिन आज के समय में बच्चे को बच्चा न रखकर उसे जल्दी बड़ा करने की होड़ माता-पिताओं में लग गई है। 4-5 साल के बच्चे पर पढ़ाई का बोझ भी डाल दिया जा रहा है... और आप सब जानते हैं कि बीते दो सालों में स्कूल बंद रहे, ऐसे में इन 4-5 साल के बच्चे को मोबाइल की लत लग गई। ऑनलाइन पढ़ाई ने इनका बचपन छीन लिया।
घर में टीवी देखना भी हो गया बंद
किसी जमाने में जब टीवी आया तो बुद्धु बक्सा कहकर इसे संबोधित किया जाने लगा और कहा गया कि बच्चे इसके आदी हो रहे हैं और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अब स्मार्ट टीवी का जमाना है और टीवी भी लोग देखना भूल गए हैं। कई घरों में लगभग अब टीवी नहीं देखा जाता, क्योंकि गृहणियां भी स्मार्ट फोन पर सोशल मीडिया पर व्यस्त रहती हैं। उनके बच्चे, दादा-दादी सब अपने-अपने कमरों में मोबाइल की आभासी दुनिया में खो चुके हैं।
विलासिता और आराम और मनोरंजन से जोड़ लिया
लोगों ने इंटरनेट और स्मार्ट फोन को विलासिता और आराम और मनोरंजन से जोड़ लिया है। स्मार्ट फोन में मनोरंजन वाले एप्स की वजह से इस तरह के हालात बनते जा रहे हैं। सोशल मीडिया की चर्चा अब फायदों से ज्यादा नुकसान के लिए होने लगी है। हाल ही में हुए कई अध्ययन बताते हैं कि शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टि से सोशल मीडिया एक आम व्यक्ति की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है।
स्ट्रेस की वजह
सोशल मीडिया न केवल मानसिक रूप से स्ट्रेस की वजह बन रहा है, बल्कि अब उसके शारीरिक दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। साल 2003 से लेकर 2018 के बीच सोशल मीडिया के संबंध में हुए 50 से अधिक शोध पत्रों का रिव्यू कर सिडनी की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने के लगभग चार दर्जन नुकसान गिनाए हैं। इस शोध के अनुसार सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव को मुख्य रूप से 6 प्रकारों में बांटा जा सकता है। इनमें निजता की चिंता, सुरक्षा संबंधी खतरे, प्रदर्शन यानी परफॉर्मेंस में कमी, सामाजिक लेनदेन के नुकसान, परेशान करने वाला कंटेंट और साइबर बुलीइंग जैसे जोखिम शामिल हैं।
जिंदगी ‘परफेक्ट’ नहीं
प्यू रिसर्च की एक स्टडी के अनुसार सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल अवसाद की सबसे बड़ी वजह बन रहा है। कई मनोविशेषज्ञों की स्टडी के आधार पर तैयार रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार कई लोगों को सोशल मीडिया पर मौजूद अपने ही वर्ग के लोगों की तुलना करने मंे लगता है कि उनकी जिंदगी ‘परफेक्ट’ नहीं है। इससे ऐसे लोगों में एक खास किस्म की मानसिक बीमारी ‘सोशल मीडिया एंग्जायटी डिसऑर्डर’ पनपने लगती है जो जाने-अनजाने में उन्हें अवसाद की ओर ले जाती है।
आभासी दुनिया की ओर कदम
हाल ही में फेसबुक ने अपना नाम बदलकर मेटाइंक कर दिया है। जकरबर्ग की योजना फेसबुक यूजर्स को मेटावर्स की उस आभासी दुनिया में ले जाने की है जहां होम, वर्क, प्ले एंड शॉप सभी कुछ आगे यानी नेक्स्ट जेनरेशन होगा। इस नई तकनीक में वर्चुअल रियलिटी और अन्य तकनीकों के मिश्रण से संवाद यानी एक दूसरे से बातचीत, एक अलग स्तर पर पहुंच जाएगी। आप यह मान सकते हैं कि इंटरनेट सजीव हो उठेगा और आप अपने आपको स्क्रीन के अंदर प्रवेश करता हुआ महसूस कर सकेंगे। मेटावर्स में आप वीडियो कॉल के जरिए घर, दफ्तर आदि में आभासी रूप से मौजूद रह सकेंगे। किसी नाटक, संगीत कंसर्ट या अन्य कार्यक्रम में सम्मिलित हो सकेंगे, किसी टूरिस्ट स्पॉट की ऑनलाइन सैर अपनी सुविधा अनुसार कर सकेंगे, कलाकृतियां देख सकेंगे और स्वयं बना भी सकेंगे। मॉल तथा शोरूम में आभासी तौर पर पहुंच कर कपड़े भी ट्राई करके खरीद पाएंगे। लेकिन इसका मतलब यह होगा कि हम जीवंत के बजाय और भी आभासी दुनिया में जीने लगेंगे। यानी आभासी दुनिया के और भी अधिक दुष्प्रभावों के साथ हमें जीना होगा।
जीवित रहने के लिए एक चुनौती पैदा कर सकते हैं
वयस्कों पर अधिक ध्यान केंद्रित अन्य शोध आभासी दुनिया के उपयोगकर्ताओं की भावनाओं और भावनाओं के कारणों की पड़ताल करते हैं। कई उपयोगकर्ता इन आभासी दुनिया में प्रवेश करने के साथ-साथ स्वीकृति और स्वतंत्रता की भावना से बचने या आराम क्षेत्र की तलाश करते हैं। आभासी दुनिया उपयोगकर्ताओं को अपने व्यक्तित्व के कई पहलुओं को उन तरीकों से स्वतंत्र रूप से तलाशने की अनुमति देती है जो वास्तविक जीवन में उनके लिए आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं।
हालांकि, उपयोगकर्ता इस नई जानकारी को आभासी दुनिया के बाहर लागू करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। इस प्रकार, आभासी दुनिया उपयोगकर्ताओं को दुनिया के भीतर फलने-फूलने की अनुमति देती है और संभवतः उनके नए आभासी जीवन के आदी हो जाते हैं जो दूसरों के साथ व्यवहार करने और उनके वास्तविक जीवन में भावनात्मक रूप से जीवित रहने के लिए एक चुनौती पैदा कर सकते हैं।
अभी ध्यान नहीं दिया गया तो दूरगामी परिणाम बहुत खतरनाक होंगे
अन्वेषण की इस स्वतंत्रता का एक कारण गुमनामी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जो आभासी दुनिया प्रदान करती है। यह व्यक्ति को सामाजिक मानदंडों, पारिवारिक दबावों या अपेक्षाओं से मुक्त होने की क्षमता देता है जिसका वे अपने व्यक्तिगत वास्तविक जीवन में सामना कर सकते हैं। अवतार व्यक्तित्व को वास्तविकता से बचने के समान अनुभव का अनुभव होता है जैसे दर्द को सुन्न करने या उसके पीछे छिपने के लिए नशीली दवाओं या शराब का उपयोग। अवतार अब साइबर स्पेस में हेरफेर किए गए एक साधारण उपकरण या तंत्र का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। इसके बजाय, यह भौतिक और आभासी दुनिया के बीच व्यक्ति का सेतु बन गया है, एक ऐसा माध्यम जिसके माध्यम से अन्य सामाजिक अभिनेताओं के बीच स्वयं को व्यक्त किया जा सकता है। अवतार व्यक्ति का परिवर्तनशील अहंकार बन जाता है; वह वाहन जिसका उपयोग अन्य लोगों के बीच मौजूद है जो सभी समान संतुष्टि चाहते हैं।
विकलांग लोगों के लिए संतोषजनक
किसी भी उम्र के विकलांग या कालानुक्रमिक रूप से विकलांग लोगों को मानसिक और भावनात्मक स्वतंत्रता का अनुभव करने से अत्यधिक लाभ हो सकता है, जो अस्थायी रूप से अपनी अक्षमताओं को पीछे छोड़कर, अपने अवतार के माध्यम से, चलने, दौड़ने जैसे सक्षम, स्वस्थ लोगों के लिए सरल और संभावित रूप से सुलभ चीजें कर सकते हैं। नृत्य, नौकायन, मछली पकड़ना, तैरना, सर्फिंग, उड़ान, स्कीइंग, बागवानी, खोज और अन्य शारीरिक गतिविधियाँ जो उनकी बीमारियाँ या अक्षमताएँ उन्हें वास्तविक जीवन में करने से रोकती हैं। वे अधिक आसानी से मेलजोल, दोस्ती और संबंध बनाने में सक्षम हो सकते हैं और कलंक और अन्य बाधाओं से बच सकते हैं जो आमतौर पर उनकी अक्षमताओं से जुड़ी होती हैं। यह निष्क्रिय शगल जैसे टेलीविजन देखना, कंप्यूटर गेम खेलना, पढ़ना या अधिक पारंपरिक प्रकार के इंटरनेट उपयोग की तुलना में बहुत अधिक रचनात्मक, भावनात्मक रूप से संतोषजनक और मानसिक रूप से संतोषजनक हो सकता है।
एकांकी जीवन होगा
जिस प्रकार से स्मार्ट फोन ने लोगों कोे अकेला कर दिया है, ठीक उसी तरह यह आभासी दुनिया में लोग अकेले होकर अवसाद का शिकार होंगे। इसके दूरगामी गंभीर परिणाम होंगे। आप वर्तमान के हालातों पर नजर डालें कि लोग आलस्य जीवन जीने लग गए हैं। घर बैठे ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं। कहीं आना नहीं, जाना नहीं। किसी से मिलना नहीं, वाट्सएप पर हाय-हैलो, गुड मॉर्निंग, गुड नाइट तक रिश्ते रह गए हैं। आदमी की दिनचर्या बदल चुकी है। अब अगर इस तरह से सोशल मीडिया पर आभासी दुनिया का चलन बढ़ेगा तो आप सोच सकते हैं कि जो लोग सालभर में एकाध बार कहीं घूमने-फिरने के लिए या माहौल बदलने के लिए निकलते रहे हैं, वो भी अब घर में ही कैद हो जाएंगे। इसका परिणाम यह होगा कि पर्यटन का व्यापार भी खत्म हो जाएगा। उदाहरण के लिए मान लो कि किसी आदमी को िकसी हिल स्टेशन पर जाना है तो वह इसी आभासी दुनिया में रहकर उस हिल स्टेशन पर पहुंचेगा, जिसमें कुछ डाटा ही खर्च करने के पैसे लगेंगे।
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