धर्मनगरी उज्जैन में आज भैरव अष्टमी धूमधाम से मनाई जा रही है। उज्जैन में विराजमान अष्ट भैरव की अलग-अलग महिमा है। भैरव अष्टमी पर मंदिरों में विशेष अनुष्ठान, पूजन, रुद्राभिषेक, हवन, भोग तथा महा-आरती का आयोजन हो रहा है। खास बात यह है कि अष्ट भैरव में से एक, 56 भैरव नामक स्थान उज्जैन के भागसीपुरा में स्थित है; यहाँ 56 भैरव को विशेष भोग की परंपरा है। शुरुआत में यहाँ भगवान को 56 प्रकार के भोग लगाए जाते थे, जो बढ़कर अब 1500 से अधिक प्रकार के हो गए हैं। इनमें शराब के कई ब्रांड, बीड़ी-सिगरेट के कई ब्रांड, तम्बाकू, अफीम, गांजा, पान, सब्जी-पूड़ी, नमकीन, बिस्किट, सॉफ्ट ड्रिंक और अन्य अनेक आइटम शामिल हैं।
भागसीपुरा में 56 भैरव का अतिप्राचीन मंदिर है। मंदिर के पुजारी चंद्रशेखर बताते हैं कि इस मंदिर में भैरव की 56 प्रतिमाएँ एक साथ विराजमान हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर सम्राट विक्रमादित्य के समय का बताया जाता है। 56 भैरव मंदिर में सम्राट विक्रमादित्य और राजा भर्तहरि आते थे और पूजन-पाठ करते थे। यह मंदिर 'चमत्कारी भैरव' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ 1500 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। भोग लगाने वाले श्रद्धालु नीरज हैं, जो इंदौर के रहने वाले हैं; यह परंपरा वर्ष 2004 से जारी है। नीरज बताते हैं कि उनकी मां कला और पत्नी संतोष को भगवान ने सपने में दर्शन दिए थे और उन्होंने 56 भोग की शुरुआत की, जो आज 1500 से अधिक प्रकार तक पहुँच चुकी है।
20 प्रकार की मदिरा, गांजा-चिलम से लेकर विदेशी फल तक
इस महाभोग की खासियत इसमें शामिल विविध सामग्री है। भगवान को 20 प्रकार की देसी-विदेशी शराब, गांजा, चिलम, भांग, अफीम, 60 से अधिक प्रकार की बीड़ी-सिगरेट, 30 प्रकार के तम्बाकू पाउच और कुल मिलाकर 1500 से अधिक सामग्रियाँ अर्पित की गईं। साथ ही 200 प्रकार के इत्र, 400 प्रकार की अगरबत्तियाँ, 180 प्रकार के मुखवास, 130 प्रकार के नमकीन, 80 प्रकार की मिठाइयां, 64 प्रकार की चॉकलेट और 75 प्रकार के ड्राई फ्रूट्स जैसे व्यंजन भी शामिल हैं।
साल 2004 से काल भैरव को शराब का भोग
मंदिर के पुजारी चंद्रशेखर बताते हैं कि वर्ष 2004 से पहले कभी बाबा भैरव को शराब का भोग नहीं लगाया जाता था, लेकिन श्रद्धालु नीरज के परिवार को भगवान ने दर्शन दिए और उनकी सलाह पर 2004 से शराब का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई। आज यहाँ लगभग 60 प्रकार की शराब — जिनमें वोडका, व्हिस्की, रम, बियर आदि शामिल हैं — के साथ गांजा, अफीम और भांग भी चढ़ाये जाते हैं। साथ ही बेकरी उत्पादों, फलों, सॉफ्ट ड्रिंक, नमकीन, चॉकलेट, मिठाई, पान, और पारंपरिक व्यंजन भी भोग में शामिल होते हैं।
काल भैरव की विशिष्ट साधना उच्च पद प्रदान करती है
पंडित एवं ज्योतिषाचार्य अमर के अनुसार पौराणिक मान्यताओं व भैरव-तंत्र के ग्रंथों में मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि विशेष मानी गई है। देवी व शिव ग्रंथों में भी भैरव के प्राकट्य और संबंधित क्षेत्र के अधिपति होने का वर्णन मिलता है। इस बार भैरव अष्टमी 12 नवंबर, बुधवार को ब्रह्म-योग में है; बुधवार का दिन भैरव साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। ब्रह्म-योग में विशिष्ट साधना उच्च-स्थान प्रदान करने वाली मानी जाती है। इसलिए इस दिन अष्ट भैरव का पूजन करने की मान्यता है।
काल भैरव की सवारी निकलेगी कल
भैरव अष्टमी के बाद 13 नवंबर को भगवान महाकाल के कोतवाल, विश्व-प्रसिद्ध कालभैरव, की सवारी कालभैरव मंदिर से शाम 4 बजे निकाली जाती है। सवारी में बाबा कालभैरव नगर भ्रमण के लिए रवाना होते हैं। इससे पहले मंदिर के सभा-मंडप में भगवान कालभैरव की रजत प्रतिमा का पूजन होता है। सवारी मंदिर से केंद्रीय जेल-भैरवगढ़ के मुख्य द्वार के बाहर से होती हुई, जहाँ गार्ड-ऑफ-ऑनर होता है, सिद्धवट-क्षीप्रा नदी पर पहुंचकर पूजन के बाद फिर कालभैरव मंदिर लौटती है।
यहाँ विराजमान हैं अष्ट भैरव
उज्जैन में अष्ट भैरव के स्थानों में सबसे प्रसिद्ध कालभैरव का धाम है, जो भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित है। यहाँ कहा जाता है कि भगवान भैरव शराब ग्रहण करते हैं — इसे आज तक मापने या प्रमाणित करने वाला कोई नहीं मिला है। ओखलेश्वर शमशान में विक्रांत भैरव हैं, जिन्हें शहर का संरक्षक माना जाता है; यह स्थान अघोर परंपरा व तांत्रिकों के लिए विशेष माना जाता है। सिंहपुरी क्षेत्र में 'आताल-पाताल भैरव' बालस्वरूप में विराजमान हैं। आनंद भैरव श्री राम घाट के पास हैं, जो भक्तों को आनंद और शांति का आशीर्वाद देते हैं। बटुक भैरव अभय-दायक, दंडपाणी भैरव दुष्टों को दंडित करने वाले माने जाते हैं; गढ़कालिका माता मंदिर के पास काला गौरा भैरव दो भाई के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कालिदास उद्यान में चक्रपाणि भैरव भी विद्यमान हैं।

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