कलाकार भावनात्मक भी होते है और रचनात्मक भी। बुधवार को दोनों ही बातें उनके काम में नजर आई। चिलचिलाती धूप में वे कलाकृतियां उकेर रहे थे, लेकिन सामने न तो कैनवास था और न ही कोई कलात्मक दीवार। जिस पर उनकी ब्रश रंंग भर रहे थे, वे उनके काॅलेज भवन के टूटे के पत्थर, ईटें थी, जो जमीन पर बिखरी पड़ी है। उन पर रंगों से कलाकार अपनी भावनाएं अभिव्यक्त करते रहे।
शहर के ख्यात शासकीय ललित कला संस्थान से एमएफ हुसैन, एनएस बेंद्रे, डीजे जोशी, श्रेणिक जैन जैसे ख्यात चित्रकार निकले है। अब वहां नगर निगम कला संकुल बना रहा है। पुराने काॅलेज का भवन अब काॅलेज के पूर्व छात्रों के लिए सिर्फ यादें बनकर रह गया। पुराना भवन टूट चुका है और उसके मलबा वहीं पड़ा है।
काॅलेज को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया है। अब सिर्फ आर्ट गैलरी बची है, लेकिन काॅलेज के पुराने भवन से छात्रों का भावनात्मक लगाव रहा है। इस कारण उन्हें काॅलेज बिल्डिंग टूटने का दुख भी है। बस इसी वजह से काॅलेज के पूर्व छात्रों ने अपने काॅलेज भवन को श्रद्धाजंलि देने के लिए उसके मलबे पर कलाकृतियां बनाने का फैसला लिया। 19 अप्रैल तक कलाकार मलबे पर कलाकृतियां बनाएंगे। इस अनूठे आयोजन में 100 से ज्यादा कलाकार एकत्र होंगे।
इस काॅलेज के संस्थापक डीडी देवलालीकर रहे है। काॅलेज का नामकरण भी उन्हें के नाम से है। काॅलेज की स्थापना 1927 में होलकर शासनकाल में हुई थी। 18 अप्रैल को उनका जन्मदिन है। जन्मदिन की पूर्व संध्या पर काॅलेज के पूर्व छात्र परिसर में एकत्र हुए थे। तीन साल बाद काॅलेज के 100 साल पुरे हो जाएंगे। पूर्व छात्रों का कहना है कि कम से कम तीन सालों में नई बिल्डिंग काॅलेज के लिए उसी स्थान पर नगर निगम बनाकर दे, तो हम परिसर में बड़ा समारोह आयोजित कर सके।
इस काॅलेज की पहली बैच में एमएफ हुसैन, रामकृष्ण खोत, नारायण श्रीधर बेंद्रे जैसे छात्र थे। जिन्होंने विश्व में अपना नाम कमाया। इस संस्थान की ख्याती देशभर में थी। बाद में अन्य कई छात्र इस काॅलेज से निकले और देशभर में उनके कामों की पहचान है। हुसैन जब भी इंदौर आया करते थे तो वे अपने काॅलेज को देखने भी जाते थे।
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