यह पहली बार हुआ है जब किसी नीति को कैबिनेट में दूसरी बार मंजूरी के लिए प्रस्तुत करना पड़ा। पिछली कैबिनेट बैठक में आबकारी नीति को स्वीकृति दी गई थी, लेकिन कई प्रावधान छूट गए थे, जिन्हें अब संशोधित करके शामिल कर लिया गया है। शासन ने इस संबंध में कल ही नोटिफिकेशन जारी कर दिया है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह किया गया है कि पवित्र शहरों में शराबबंदी लागू होगी। इस फैसले के कारण अनुमानित 500 करोड़ रुपए के राजस्व घाटे की भरपाई के लिए इंदौर जैसे बड़े शहरों में शराब की दुकानों की लाइसेंस फीस 20% बढ़ा दी जाएगी। इस वृद्धि के कारण इंदौर जिले में स्थित 174 शराब दुकानों का आरक्षित मूल्य बढ़कर लगभग 1800 करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है।
मोहन सरकार की नई आबकारी नीति 1 अप्रैल से प्रभावी होगी, जिसमें शराब के मिनी बार को भी अनुमति दी जाएगी, जहां रेडी टू ड्रिंक उत्पाद उपलब्ध होंगे। इंदौर जैसे जिले में बीते वर्षों में शराब की दुकानों की नीलामी अत्यधिक महंगी हो गई है, और कई मामलों में यह प्रक्रिया आखिरी तक जारी रहती है। पिछले वर्ष भी इस क्षेत्र में 13.7% राजस्व वृद्धि दर्ज की गई थी, जबकि सरकार का लक्ष्य 20% रखा गया था। आबकारी विभाग को शराब की दुकानों से मिलने वाला राजस्व बीते वर्ष 1485 करोड़ रुपए रहा, जो कि उसके पूर्व वर्ष के 1312 करोड़ रुपए से अधिक था।
गत वर्ष आबकारी विभाग ने 64 समूह बनाकर शराब दुकानों की टेंडर प्रक्रिया संपन्न कराई थी। इस बार भी सरकार ने 20% राजस्व वृद्धि का लक्ष्य तय किया है, जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इंदौर जिले में शराब ठेकों का कुल मूल्य 1800 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। हालांकि, इस लक्ष्य को पूरा करना आसान नहीं होगा। इंदौर जिले में कुल 174 देसी और विदेशी शराब की दुकानें हैं, जिनमें से कुछ अत्यधिक महंगी हैं। योजना क्रमांक 54, भमोरी सहित कई शराब की दुकानें ऐसी हैं जिनकी नीलामी सबसे ऊंची दरों पर होती है और इनकी लाइसेंस फीस 55 से 60 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी है।
नई नीति के तहत, यदि मौजूदा ठेकेदार 20% अधिक शुल्क चुकाने को तैयार होते हैं, तो उनकी दुकान का नवीनीकरण किया जा सकता है। साथ ही, जिले के लिए तय कुल आरक्षित मूल्य का 80% तक नवीनीकरण होना अनिवार्य होगा। यदि यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ तो ई-टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाएगी, ताकि सरकार को अधिकतम राजस्व प्राप्त हो सके।
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