उस्ताद जाकिर हुसैन की इंदौर से जुड़ी कई यादें हैं। वे लगभग दस बार इंदौर आ चुके थे। तबला वादक हितेंद्र दीक्षित ने बताया कि मेरे गुरु भाई उस्ताद जाकिर हुसैन जिन्हें सभी आदर व स्नेह से जाकिर भाई कहकर बुलाते हैं, मेरी उनसे पहली मुलाकात मुंबई में रवीन्द्र भवन में हुई थी। तब मेरी अब्बाजी से तबले की तालीम की शुरुआत हो गई थी। जाकिर हुसैन सादगी के लिए पहचाने जाते थे।
और मेरे हाथ पर ताली दी
यह बात वर्ष 1994 से 1995 के बीच की है। जब मैं जाकिर भाई से पहली बार मिला तो मैंने कहा की मैं इंदौर से आया हूं और अब्बाजी से सिखता हूं तो बोले बहुत अच्छे मैं भी अब्बाजी से सीख रहा हूं और मेरे हाथ पर ताली दी और प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर थी।
मेरे जीवन के कीमती पल थे वह
एक बार की बात है जब इंदौर में सुहाग होटल हुआ करती थी जहां वर्तमान में CHL अपोलो अस्पताल है। उस समय जाकीर भाई ITC टूर के अंतर्गत पंडित वीजी जोग, पंडित विजय किचलु आदी कलाकारों के साथ इंदौर आए थे। वे सब बस से होटल सुहाग में पहुंचे थे तो मैं उनको रिसीव करने के लिए पहुंचा। बस से सारे कलाकार उतर गए थे और मैं बाहर इंतजार कर रहा था कि जाकिर भाई कहां हैं। मैंने बस के अंदर धीरे से झांका तो देखा बस में आधे में सीट्स थी और आधे में गद्दे लगे थे जिस पर जाकिर भाई सफेद पठानी सूट में लेटे हुए थे। उन्होंने मुझे देखा और पूछा कैसे हो और बोले याने इंदौर आ गया। मैंने कहा जी। मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए उनको उठने में मदद की। हम बस के बाहर आ गए और होटल के लॉन में जाकिर भाई मेरे गले में हाथ डालकर टहल रहे थे। मेरे लिए यह जीवन के कीमती पलों में से थे। वह बोले शाम को घर चलेंगे और घर आए और खूब गपशप की।
सिखाने के लिए हमेशा उत्सुक रहते थे
गायक गौतम काले ने बताया कि इंदौर में उनकी आखिरी परफॉर्मेंस 2019 में हुए 'इंदौर म्यूजिक फेस्टिवल' में थी। हमने उन्हें गुरुकुल बुलाया था। वे इवेंट के बाद देर रात आए। बच्चों से बोले हर शिष्य को अपने गुरु जैसा बनना चाहिए, लेकिन कुछ अपना भी क्रिएट करें, तभी आगे बढ़ पाएंगे। उन्होंने बच्चों के सवाल सुने और उनके साथ समय बिताया। वे बच्चों को सिखाने के लिए हमेशा लालायित रहते थे।
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