सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2017 से अब तक 10 जंगली हाथियों को पकड़ा गया है, जिनमें से दो हाथी वर्ष 2024 में पकड़े गए थे। इनमें से एक 10 वर्षीय हाथी को शीघ्र जंगल में छोड़ दिया जाएगा। दूसरा हाथी, जिसकी उम्र लगभग 25 साल है, उसकी ट्रेनिंग में कुछ समय लग सकता है। जबलपुर हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देव नारायण मिश्रा ने याचिका पर अगली सुनवाई की तारीख 14 अक्टूबर को निर्धारित की है।

रायपुर निवासी नितिन सिंघवी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ से जंगली हाथियों के झुंड मध्य प्रदेश के जंगलों में प्रवेश करते हैं, जो भोजन की तलाश में किसानों की फसलें बर्बाद कर देते हैं और घरों में तोड़फोड़ मचाते हैं। कई घटनाओं में जंगली हाथियों ने लोगों पर हमला किया है, जिससे कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है। प्रिंसिपल चीफ कंज़र्वेटर फॉरेस्ट (पीसीसीएफ) वाइल्डलाइफ के आदेश पर ही हाथियों को पकड़ा जा सकता है। जंगली हाथी संरक्षित वन्य प्राणियों की प्रथम सूची में आते हैं, और पकड़े जाने के बाद इन्हें टाइगर रिज़र्व में भेजकर ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान इन हाथियों को यातनाओं का सामना करना पड़ता है, जबकि केंद्रीय पर्यावरण विभाग की गाइडलाइन्स के अनुसार जंगली हाथियों को पकड़ना अंतिम विकल्प होना चाहिए।

मध्य प्रदेश में जंगली हाथियों को पकड़कर टाइगर रिज़र्व में भेजा जाता है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि अंतिम विकल्प को पहले विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। याचिका की सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने सरकार को 30 साल में पकड़े गए हाथियों का ब्यौरा प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने बताया कि याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से यह जानकारी प्रस्तुत की गई।

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