इंदौर | इंदौर मैं फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर फर्जी पुलिसकर्मी सत्यनारायण पिता राम वैष्णव का मामला सामने आया है। सत्यनारायण का लक्ष्मीपुरी कॉलोनी इंदौर मैं निवास है, उसका जन्म 7 जून 1964 को हुआ। 19 साल की उम्र में 4 अगस्त 1983 को सत्यनारायण पुलिस में आरक्षक के पद पर भर्ती हो गया। भर्ती के 23 साल बाद 6 मई 2006 को थाना छोटी ग्वालटोली के थाना प्रभारी को पुलिस अधीक्षक ऑफिस से आरोपी आरक्षक सत्यनारायण बैज नं.1273 की एक शिकायत मिली, जो आरक्षक सत्यनारायण द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र देकर पुलिस में नौकरी प्राप्त करने से संबंधित थी।

शिकायत के साथ एक जांच प्रतिवेदन भी था, जिसमें जांच के संबंध में सत्यनारायण की शिकायत करने वाली वर्षा साधू, आरोपी सत्यनारायण, ऋषि कुमार अग्निहोत्री और ईश्वर वैष्णव के बयान थे। बयान में कहा गया कि आरोपी सत्यनारायण वैष्णव ने कोरी समाज का जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर नौकरी प्राप्त की है। आरोपी के पिता रामचरण वैष्णव, उसका बडा भाई श्यामलाल वैष्णव और छोटा भाई ईश्वर वैष्णव सभी वैष्णव ब्राह्मण हैं। इसके बावजूद सत्यनारायण ने कोरी जाति का सर्टिफिकेट लगाया और नौकरी हासिल कर ली थी केस दर्ज होने के बाद पुलिस 7 साल तक पुलिस जांच करती रही विवादित जाति का प्रमाण पत्र जो सत्यनारायण ने लगाया था, उसकी फोटोकॉपी लेकर जांच की गई।

ये जाति प्रमाण पत्र सत्यनारायण के शपथ पत्र देने पर तहसील कार्यालय दण्डाधिकारी और अपर तहसीलदार इंदौर से जारी हुआ है। उसमें आरोपी की जाति कोरी दर्शायी गई है। इस तरह जांच में गवाह और बयानों के आधार पर ये पाया गया कि जाति प्रमाण पत्र सत्‍यनारायण ने फर्जी आधार पर नौकरी पाने के उद्देश्य से बनावाया था इस पर आरोपी सत्यनारायण के खिलाफ थाना छोटी ग्वालटोली में साल 2006 में धारा 420, 467, 468, 471 के तहत केस दर्ज हुआ। छानबीन समिति ने भी ये पाया कि जाति प्रमाण पत्र फर्जी है। पुलिस करीब 7 साल तक मामले की जांच करती रही और 18 दिसंबर 2013 को जांच पूरी कर कोर्ट में चालान पेश किया। कोर्ट में ट्रायल चला और अब जाकर मामले में कोर्ट का फैसला आया है।

आरोपी वर्तमान में भी पुलिस विभाग में नौकरी कर रहा है पूरे मामले में 3 दिन पहले ही कोर्ट का फैसला आया है। जिला लोक अभियोजन अधिकारी श्री संजीव श्रीवास्‍तव ने बताया कि मामले में माननीय न्‍यायालयचतुर्थ अपर सत्र न्‍यायालय जयदीप सिंह ने धारा 467 सहपठित धारा 471 भादंवि में 10 साल की सजा और धारा 420 व 468 में 7-7 साल की सजा सहित कुल 4 हजार रुपए के अर्थदण्ड से दंडित किया है।

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