ग्वालियर | सन 1990 में राम मंदिर आंदोलन के लिए आत्मदाह करने वाले शहीद कारसेवक दिनेश कुशवाहा की मां की तमन्ना भी अधूरी रह गई. 105 साल की छम्मो बाई कुशवाहा रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की खबर से खुश थी, लेकिन श्री राम के दर्शन करने से पहले ही उनका निधन हो गया. ग्वालियर के गांधी नगर इलाके में रहने वाली 105 साल की छम्मो बाई का 13 जनवरी तड़के निधन हो गया. उनके जीवन से जुड़ी कहानी भी अनोखी दास्तां है. अक्टूबर 1990 में राम मंदिर का अभियान सफल नहीं होने पर उनके बेटे दिनेश कुशवाहा ने आत्मदाह कर लिया था. बेटे की मौत के सदमें में दो साल बाद उनके पिता की भी मौत हो गई.
तब से ही छम्मो बाई अपने बेटे की तस्वीर सीने से लगाए रखती थी. दिनेश कुशवाह ने जिस वक्त आत्मदाह किया था उस वक्त उसकी उम्र 18 साल थी. वह बजरंग दल का सदस्य होने के साथ ही पक्का कारसेवक था. वह हर हालत में अयोध्या में राम मंदिर बनते देखना चाहता था. सन 1990 में विवादित ढांचे को गिराने पहुंचे कारसेवक की टुकड़ी जब अयोध्या जा रही थी तो दिनेश कुशवाह भी जाना चाहता था. लेकिन, परिजनों ने उसे कसम देकर किसी तरह रोक लिया. जबकि उसके सारे दोस्त अयोध्या गए थे. जब अयोध्या पहुंची टोली राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में सफल नहीं को सकी तो यह खबर रामभक्त दिनेश के पास पहुंची.
संघ कार्यालय के सामने किया था आत्मदाह
इससे वह व्यथित हो गया. उसने संघ कार्यालय के सामने खुद पर मिट्टी का तेल डालकर आत्मदाह कर लिया था. दिनेश की मौत के गम में दो साल बाद पिता की भी मौत हो गई थी. इसके बाद उनकी मां भी सदमे में चली गई थीं. तभी से वह बीमार रहने लगी थीं. बेटे की मौत के 33 साल बाद भी उनको इंतजार था कि एक दिन अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा. 22 जनवरी को अयोध्या में राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने का समाचार मिलने से 105 साल की बुजुर्ग छम्मो बाई काफी खुश थी.
वे इशारों में हाथ जोड़कर अपनी खुशी का इजहार करती थीं. लेकिन प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही उनका निधन हो गया. सभी रिश्तेदार और परिवार को भी अफसोस है कि अम्मा अयोध्या के भव्य मंदिर में रामलला के दर्शन नहीं कर सकीं. परिजनों की मांग है कि दिनेश कुशवाहा को शहीद का दर्जा दिया जाए और अयोध्या में बन रहे शहीद स्मारक पर उनका नाम भी अंकित किया जाए.
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