टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता छिन गई है। उन्हें कैश फॉर क्वेरी कांड में निष्कासित कर दिया गया है। इस कार्रवाई पर टीएमसी नेता की पहली प्रतिक्रिया भी आ गई है। उनकी तरफ से जोर देकर कहा गया है कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। उन्होंने बस अडानी का मुद्दा उठाया था जो वे आगे भी उठाती रहेंगी। गिफ्ट्स या नकदी का कोई सबूत जांच टीम को नहीं मिला।
महुआ का पहला रिएक्शन
जारी बयान में टीएमसी नेता ने कहा कि मेरा निष्कासन तो बस इस आधार पर हुआ है कि मैंने अपना पोर्टल लॉगिन दूसरे के साथ शेयर किया। लेकिन सच्चाई तो ये है कि अभी तक इसे नियंत्रित करने के लिए कोई नियम नहीं है। एथिक्स कमेटी के पास निष्कासित करने का कोई सबूत या आधार नहीं है। मैं साफ कर दूं कि ये बीजेपी के अंत की शुरुआत है।
इसके अलावा भी महुआ ने तल्ख अंदाज में एथिक्स कमेटी पर भी कई आरोप जड़ दिए हैं। उनकी तरफ से बोला गया कि एथिक्स कमेटी की जांच पूरी तरह से दो व्यक्तियों की लिखित गवाही पर आधारित हैं, जिनके कथन असल में एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं। मैं बताना चाहती हूं कि दो शिकायतकर्ताओं में से एक मेरा पूर्व प्रेमी है जो गलत इरादे से आचार समिति के सामने आम नागरिक के रूप में पेश हुआ था।
ममता ने क्या बोला?
महुआ ने ये भी आरोप लगाया कि एक अवैध अदालत ने गलत तरह से उन्हें फंसा दिया और उनके खिलाफ एक्शन लिया गया। उनका कहना रहा कि सांसद आम जनता के सवालों को संसद तक पहुंचाने में सेतु की भूमिका निभाते हैं, लेकिन यहां तो ‘कंगारू अदालत’ ने बिना सबूत के मुझे सजा दी है। अभी के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस कार्रवाई से खासा नाराज हैं। उनकी तरफ से इसे लोकतंत्र की हत्या बता दिया गया है।
ममता ने जोर देकर कहा है कि स्पीकर द्वारा जल्दबाजी में इस प्रकार का फैसला दिया गया। उनके मुताबिक पीएम मोदी को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं किया। हम इस कार्रवाई के खिलाफ मजबूती से लड़ेंगे और महुआ के साथ खड़े रहेंगे। अब इस एक्शन पर सियासत तो हो रही है, लेकिन ये विवाद काफी पुराना है जिसकी शुरुआत बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की एक शिकायत से शुरू हुई थी।
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