इंदौर। ढाई माह पहले इंदौर में हुए बेलेश्वर बावड़ी हादसे से भी नगर निगम ने सबक नहीं लिया। खतरनाक बावड़ी के धंसने से 36 लोगों की मौत हो गई, लेकिन शहर के खतरनाक मकानों को हटाने काम निगम ने शुरू नहीं किया, जबकि हर साल मानसून केे पहले मकानों के खतरनाक मकानों के हिस्सों को हटाया जाता है। शहर में डेढ़ सौ से ज्यादा मकान खतरनाक मकानों की सूची में शामिल है।
निजी मकान तो
ठीक खतरनाक हो चुके सरकारी भवनों पर भी हथौड़े नहीं चलाए जा रहे है। नगर निगम मुख्यालय
में ही खतरनाक हो चुके हिस्से में दफ्तर संचालित हो रहे है। उस बल्डिंग के छत का प्लास्टर
गिर चुका है और सरिए नजर आ रहे है। इसके बावजूद उसे खाली नहीं कराया जा रहा है।
दस पद्रंह रुपये किराए के चक्कर में जान खतरे में
इंदौर में सबसे ज्यादा खतरनाक मकान, नंदलालपुरा, कोयला बाखल, जवाहर मार्ग, सराफा, छावनी इलाके में है। 30-40 साल पुराने किराएदार दस-पद्रंह रुपये प्रतिमाह किराए के चक्कर में जान दांव पर लगा रहे है। कई मकानों के केस प्रकरण कोर्ट में लंबित है, इसलिए भी नगर निगम उन्हें तोड़ने से बचता है। आश्चर्य की बात यह है कि लोग भी खतरनाक मकानों में रहने से नहीं डरते हैै। निगम की जनकार्य समिति के प्रभारी राजेंद्र राठौर का कहना है कि ज्यादातर अति खतरनाक मकानों को हटाया जा रहा है। हर साल हम नोटिस भी जारी करते है। इस बार भी मकानों के खतरनाक हिस्से हटाए जाएंगे।
300 से ज्यादा
का स्टाॅफ खतरनाक भवन मेें
नगर निगम मुख्यालय
में 40 साल पहले बनी बिल्डिंग में संपति्तकर और जलकर का विभाग संचालित हो रहा है। कुछ
समय पहले दूसरी मंजिल की सीढियों का हिस्सा गिर पड़ा। इसके बाद छत पर जाने का रास्ता
रोक दिया गया, लेकिन पहली व दूसरी मंजिल पर 300 से ज्यादा कर्मचारियों का स्टाॅफ रोज
बैठता है। इस बल्डिंग की गैैलरी की छत का एक हिस्सा टूट चुका है। पिलरों में भी दरारें
आ गई हैै।
उधर हाऊसिंग बोर्ड की जनता क्ववाटर्स
के मकान भी खतरनाक श्रेणी में है, लेकिन उनका सर्वे ही नहीं हुआ है। यह मकान 40 साल
से ज्यादा पुराने है। उनका रखरखाव भी नहीं किया जा रहा है। इंदौर विकास प्राधिकरण के
विजय नगर क्षेत्र के मांगलिक भवन के पास बने मकान भी खतरनाक हो चुके है, लेकिन उन्हें
भी नहीं हटाया जा रहा है।
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