उज्जैन। उज्जैन में रविवार को 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चली हवाओं के कारण महाकाल लोक में लगी 10 से 25 फीट की सप्तऋषि की सात में से 6 मूर्तियां गिर गई। एक मूर्ति का तो सिर धड़ से अलग हो गया। दो मूर्तियों के हाथ टूटे हैं। तीन मूर्तियां ऐसी भी हैं, जो सिर के बल गिरी और खंडित हो गई। यह घटना होते ही प्रशासन ने श्रद्धालुओं को बाहर निकाला। टूटी मूर्तियों को क्रेन की मदद से अलग रखवाया।

इस घटना के बाद महाकाल महालोक के निर्माण की प्रक्रिया सवालों से घिर गई है। कलेक्टर एवं श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति के अध्यक्ष कुमार पुरुषोत्तम ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि यह मूर्तियां तो एफआरपी यानी फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक की बनी है। गुजरात की एमपी बावरिया फर्म से जुड़े गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के कलाकारों ने इसे बनाया था। यही कलाकार जल्द इन मूर्तियों को फिर से ठीक कर देंगे। इस मामले में जांच जैसी कोई बात ही नहीं है। कलेक्टर ने तो इन मूर्तियों को एफआरपी का बताकर किसी प्रकार की भी जांच से इंकार कर दिया। हालांकि, महाकाल लोक के निर्माण की शुरुआत से ही भ्रष्टाचार और गोलमाल के आरोप लगते रहे हैं। अब तक तो यह आरोप दबे रहे। सप्तऋषि की प्रतिमाओं के टूटने के बाद कांग्रेस हमलावर हो चुकी है। उसने पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करवाने के साथ ही दोषियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है।

विधानसभा में दिया था गोलमाल जवाब

धरमपुरी के कांग्रेस विधायक पांचीलाल मेड़ा ने विधानसभा में सवाल पूछा था कि महाकाल लोक पर कुल कितनी राशि व्यय हुई? अनुबंध किस एजेंसी व फर्म से किया गया? उसमें क्या-क्या शर्तें रखी गई थी? क्या कॉरिडोर में बनाई गई मूर्तियां अनुबंध के अनुसार नहीं हैं? फाइबर व अन्य धातु की मूर्ति लगाई हैं, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं? इसके लिए कौन-कौन दोषी हैं और उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई? इस पर नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने जवाब में कहा था कि नवनिर्मित महाकाल कॉरिडोर में (उस समय तक) 161 करोड़ 83 लाख 890 रुपए व (जीएसटी का अतिरिक्त) व्यय हुआ है। इस कार्य का अनुबंध ज्वाइंट वेंचर एमपी बावरिया, डीएच पटेल व गायत्री इलेक्ट्रिकल नामक फर्म व एजेंसी से किया गया था। कॉरिडोर में बनी मूर्तियां अनुबंध के अनुसार ही हैं। श्री महाकाल मंदिर प्रबंध समिति, संस्कृति विभाग तथा सभी हितग्राहियों के परामर्श के अनुसार ही कॉरिडोर का काम, मूर्तियों का चयन व प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन किया गया। उन्होंने यह नहीं बताया था कि अनुबंध के तहत महाकाल लोक मे मूर्तियों का निर्माण फाइबर से होना था, धातु से या फिर पत्थरों से?

विधायक की शिकायत पर लोकायुक्त की जांच

कांग्रेस विधायक महेश परमार ने लोकायुक्त उज्जैन को शिकायत कर कहा था किठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए स्मार्ट सिटी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अंशुल गुप्ता ने टेंडर में न्यूनतम निविदाकार होने के बाद भी एमपी बावरिया को काम दिया। टेंडर में जीआई शीट लगानी थी, जिस पर 22 लाख रुपये का खर्च होना था। ठेकेदार ने इसकी जगह पोली-काबोर्नेट शीट लगाई। यह अतिरिक्त आइटम जोड़ा गया। इससे ठेकेदार को एक करोड़ रुपये का आर्थिक लाभ पहुंचाया है। लोकायुक्त ने कांग्रेस विधायक महेश परमार की शिकायत पर तीन आईएएस अफसरों (तत्कालीन उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह, उज्जैन स्मार्ट सिटी के तत्कालीन कार्यपालक निदेशक क्षितिज सिंघल और तत्कालीन नगर निगम आयुक्त अंशुल गुप्ता) को नोटिस भेजे थे। इनके अलावा उज्जैन स्मार्ट सिटी लिमिटेड के मनोनीत निदेशक सोजन सिंह रावत और दीपक रत्नावत, स्वतंत्र निदेशक श्रीनिवास नरसिंह राव पांडुरंगी, स्मार्ट सिटी उज्जैन के सीईओ आशीष पाठक, तत्कालीन सीईओ जितेंद्र सिंह चौहान, मुख्य वित्तीय अधिकारी जुवान सिंह तोमर, तत्कालीन अधीक्षण यंत्री धर्मेंद्र वर्मा, तत्कालीन कार्यपालन यंत्री फरीदुद्दीन कुरैशी, सहायक यंत्री कमल सक्सेना, उपयंत्री आकाश सिंह, पीडीएमसी उज्जैन स्मार्ट सिटी के टीम लीडर संजय शाक्या और जूनियर इंजीनियर तरुण सोनी को भी नोटिस भेजा था। इसके बाद कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

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