सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के बारे में सुनवाई चल रही है। देशभर के बुद्धिजीवी अपनी-अपनी राय इस विषय पर दे रहे हैं। सबसे बड़ी बात की जब इस विषय को लेकर याचिका दायर की गई थी, तभी इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए था। प्रकृति ने नर-मादा की उत्पत्ति की है और प्रकृति के खिलाफ जाकर यदि लोग कुछ घृणित कार्य कर रहे हैं और ऐसे मामलों को मान्यता देने के लिए जो लोग सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं तो ये समाज के लिए घातक ही है। इस विषय पर बहस करने के बजाए इस पर तत्काल सख्ती करनी चाहिए, लेकिन मामले को तूल दिया जा रहा है। वैसे ही हमारे देश में लिव इन जैसी कुप्रथा से समाज शर्मिंदा हो रहा है। अदालतों में बेफिजुल के विषय पर चर्चा करने के लिए सभी के पास समय है। वहीं, कई मामले पेंडिंग हैं, जिनका फैसला नहीं हो पाया। 2022 के आखिरी दिन देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि देश के ज्यूडिशियल सिस्टम को तारीख पे तारीख वाली छवि बदलने की जरूरत है। सीजेआई के इस कमेंट की वजह है- देश की अदालतों में करोड़ों पेंडिंग केस। सामाजिक परिवेश की बात करें तो विवाह मानव जीवन के संस्कारों से एक है। विवाह के बाद होने वाली संतान का पालन, उसकी शिक्षा और कई ऐसी सामाजिक जिम्मेदारियां होती हैं, जिन्हें पति-पत्नी निभाते हुए चलते हैं और बच्चों को इस योग्य बनाते हैं, जिससे कि समाज चलता रहता है। .... और सब कुछ जानकर भी यदि कुछ लोग समाज को बिगाड़ने पर तुले हैं तो फिर ऐसे लोगों का कुछ किया नहीं जा सकता। वैसे ही हमारे देश में कई समस्याएं हैं, जिन्हें लेकर कोई हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट नहीं जाता। देश के कई ग्रामीण इलाकों में आज भी साफ पेयजल लोगों को नहीं मिल रहा है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे स्कूल नहीं है और ना ही कोई शिक्षक गांवों में पढ़ाने जाना चाहता। ऐसी ही हालत स्वास्थ्य सेवाओं के लेकर भई है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे अस्पताल नहीं है। डॉक्टर गांवों में नहीं जाना चाहते। कई बार बारिश में ऐसे दृश्य सामने आते हैं कि प्रसूताओं को खाट पर लेटाकर कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर डिलीवरी के लिए अस्पताल पहुंचाया जाता है..., बच्चे बारिश में कीचड़ की वजह से स्कूल नहीं जा पाते..., कारण वहां सड़कों का कच्ची होना है... और भी ऐसी कई समस्याएं हैं, जिन्हें लेकर कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाता...।
- जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक
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