कानून व्यवस्था यदि गड़बड़ा जाए तो दोष राजा के सिर आता है और ऐसा ही मध्यप्रदेश में हो रहा है। मध्यप्रदेश की कानून व्यवस्था चरमराई हुई है और शांत प्रदेश की जनता को अराजकता का सामना करना पड़ रहा है। अभी हाल ही में कर्नाटक में जनता ने भाजपा के खिलाफ जो अपना फैसला दिया और चौकाने वाले नतीजे आए, वैसे ही नतीजे मध्यप्रदेश में आने की संभावना बनती दिखाई दे रही है। मध्यप्रदेश शांत टापू रहा है, लेकिन यहां बढ़ती अराजकता ने जनता को पूरी तरह से अशांत कर दिया है और प्रदेश का जनमानस बन चुका है और जनता अभी कुछ कह नहीं रही है, सिर्फ चुनाव का का इंतजार कर रही है। इसके पीछे का कारण मध्यप्रदेश में कानून व्यवस्था से होता खिलवाड़ है। गुंडा राज बढ़ता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के डर से वहां के गुंडे मध्यप्रदेश में मनमानी कर रहे हैं और कानून व्यवस्था हाथ बांधे खड़ी नजर आ रही है। क्या कानून के रखवाले राजनीतिवश इतने कमजोर हो चले हैं कि उन्हें प्रदेश की जनता का दर्द दिखाई नहीं देता या फिर खाकी पर जो सवाल उठते रहे है वो सही है?  इस सप्ताह खाकी की बड़ी किरकिरी हुई...., इंदौर का एक मामला सामने आया, जिसमें राजनीतिक दबाव में रात दो बजे एसीपी कोर्ट खोली गई और आरोपियों को जमानत दी गई। कुल मिलाकर गुंडे-बदमाशों के आगे आला अफसर तक नतमस्तक दिखाई दिए। मजेदार बात तो यह कि जिन बदमाशों ने थाना प्रभारी से अभद्रता की थी और उनके खिलाफ एफआईआर तक दर्ज हो गई थी, उन बदमाशों को राजनेताओं के कहने पर देर रात जमानत देना पड़ी। आरोपियों पर कई मामले दर्ज है। व्यापारी वर्ग जिन्हें पुलिस पर पूरा भरोसा था, वह टूट चुका है, क्योंकि जनता की सुरक्षा करने वाली पुलिस ने मंत्री की सुनी और जो व्यक्ति मंत्री बना है, उसे उस योग्य बनाने में व्यापारियों के मताधिकार का भी योगदान है और यह सब जनता देख रही है, समझ रही  है कि जब गुंडों की ही पैरोकारी हो रही है तो फिर आदमी को क्या न्याय मिलेगा। नेताओं पर अब लोग भरोसा नहीं कर रहे हैं।

प्रदेश में रिश्वतखोरी कम नहीं हो रही

मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि लोग त्रस्त हो चुके हैं। दिन-ब-दिन रिश्वत का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। गत दिनों  गत दिनों भोपाल में लोकायुक्त टीम ने संविदा पर सहायक इंजीनियर हेमा मीणा पर कार्रवाई की, जिसने 7 साल में 7 करोड़ रुपए की संपत्ति जमा की। जांच चल रही है और इस लड़की को यहां तक पहुंचाने वाले अफसरों पर भी कार्रवाई हो चुकी है, क्योंकि सवाल उठा था कि इस लड़की ने करीब तीन बार नौकरी छोड़ी उसके बावजूद उसे नौकरी मिलती गई..., तो जरूर उस पर बड़ों की ही मेहरबानी होगी।

 विकास के नाम पर मध्यप्रदेश में जितने भी काम किए जा रहे हैं, उसमें अफसरों का कमीशन इतना तगड़ा है कि ठेकेदारों को गैरकानूनी काम करना पड़ रहे हैं। सरकारी विभागों में जहां भी खरीदी का काम होता है, वहां जमकर भ्रष्टाचार है। हर नेता को पैसा चाहिए, क्योंकि चुनाव में उसने भी माल लगाया है। अफसरों को भी पैसा चाहिए, क्योंकि पोस्टिंग के लिए उसने ऊपर माल पहुंचाया है। सारा खेल अवैध रूप से रुपया कमाने के लिए किया जा रहा है। सड़कें घटिया बनाई जा रही है, न चाहते हुए ब्लॉक पैवर्स शहरों में बदल दिए जाते हैं।

मध्यप्रदेश में भले ही जीरो करप्शन का दावा किया जाता हो मगर हकीकत बिल्कुल अलग है। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। अगर आम आदमी पैसे न दे तो उसका काम नहीं बनता। मजबूरी में मेहनत की कमाई घूसखोर अफसरों को देनी पड़ती है। रिश्वतखोरी ये एक ऐसा दीमक है जो लगातार सरकारी सिस्टम को खोखला कर रहा है। मध्यप्रदेश के कई विभागों में घूसखोरी क खुला खेल चल रहा है। आलम ये है कि रिश्वतखोर 50 रुपए के काम के लिए 500 रुपए तक रिश्वत मांगते हैं। कुछ ने तो रिश्वत के लिए अपना कमीशन फिक्स कर रखा है। 10%, 15% और 20% के हिसाब से रिश्वत का क्राइटेरिया बना रखा है।  रिश्वतखोरी में मध्यप्रदेश के कई विभाग टॉप पर हैं। सबसे ज्यादा मामले राजस्व, पंचायत और पुलिस विभाग के हैं। रिश्वत आड़ में काले कारनामे और अवैध धंधे लगातार फलफूल रहे है। रिश्वत के खेल में सबसे ज्यादा बदनाम राजस्व विभाग है। यहां जमीन सीमांकन, नामांतरण, रजिस्ट्री हो या दूसरा कोई भी काम बिना रिश्वत के संभव नहीं, जहां भोले-भाले ग्रामीणों, किसानों को परेशान किया जाता है। छोटे-छोटे काम के लिए भी पैसे लिए जाते हैं। ऐसे में बार-बार यही सवाल उठ रहा कि प्रदेश में रिश्वतखोरी पर कब लगाम लगेगी?

घटिया निर्माण का उदाहरण

अभी हाल ही में उज्जैन में शिप्रा नदी में हजारों गैलन गंदा पानी मिल गया। यहां स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत मुख्य सीवेज लाइन को पास की लाइन से मिला जाया रहा था, इस दौरान यहां की लाइन डैमेज हो गई। कुल मिलाकर शिप्रा शुद्धिकरण, कान्ह-सरस्वती शुद्धिकरण को लेकर बरसों से करोड़ों रुपया लगाया जा रहा है, लेकिन सार्थक परिणाम न इंदौर में देखने को मिले और ना ही उज्जैन में...और ऐसा भी नहीं है कि एक-दो वर्षों में इन नदियों को लेकर काम शुरू हुआ है। 30-35 सालों से इन्हें संवारने का काम किया जा रहा है, लेकिन नदियां कभी कल-कल बहते नहीं दिखी... (बारिश के दिनों को छोड़कर)। दो-तीन पीढ़ी गुजर चुकी है, नदी तो बह नहीं रही हर दो-चार सालों में रुपयों का आंकड़ों करोड़ों पार कर चुका है...। काम करना और अवैध तरीके से रुपया कमाने की आदत पड़ गई है प्रदेश के अफसरों और नेताओं को।

प्रदेश सरकार की गलत नीति

प्रदेश सरकार ने इस साल आबकारी नीति के तहत जो अहाते बंद किए है, उससे लोगों में काफी नाराजगी है, क्योंकि प्रदेशभर में लोग खुले में शराब पी रहे हैं, विवाद हो रहे हैं। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ गई हैं, इसके साथ-साथ जो लोग पहले अहातों पर शराब पीते थे वो घर में लाकर शराब पीने लगे हैं, जिसका असर बच्चों पर हो रहा है। प्रदेश की जनता जानती है कि महिलाओं में आक्रोश पैदा ना हो, इसलिए उनकी मानसिकता को योजनाओं के माध्यम से बदल दिया है, लेकिन अहाते बंद करने का गुस्सा भी चुनाव के दौरान दिखाई देगा।

- जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक

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