उज्जैन। धार्मिक और पौराणिक नगरी उज्जैन में द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक बाबा महाकाल विराजित हैं। बाबा महाकाल, महाकाल वन के मध्य में विराजित हैं, जिनके चारों और चारों दिशाओं में चार द्वारपाल भी शिवलिंग के रूप में विराजित हैं। कहा जाता है कि जो भी महाकाल वन में भ्रमण के साथ इनकी भक्ति करता है उसे न केवल महाकाल की कृपा प्राप्त होती हैं। बल्कि व्यक्ति स्वास्थ्य, यौवन, धन, ऐश्वर्य और चिरकालिक परमानंद को भी प्राप्त करता हैं। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर उज्जैन में प्रतिवर्ष अनादिकाल से पंचक्रोसी या पंचकोशी यात्रा की जाती है।
स्कंदपुराण
में है जिक्र
पंचकोशी यात्रा
का वर्णन स्कंदपुराण में भी हैं। जिसमें कहा गया हैं, कि काशी में जीवनभर रहनें से
जितना पुण्य अर्जित होता हैं, उतना पुण्य वैशाख मास में मात्र पांच दिन महाकाल वन में
प्रवास करने पर ही मिल जाता हैं। इस यात्रा को पंचकोशी इसलिए कहा जाता हैं, क्योंकि
यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को प्रत्येक पांच कोस पर विश्राम करना पड़ता हैं। एक कोस
चार किलोमीटर के बराबर माना जाता हैं, इस हिसाब से श्रद्धालुओं को 20 किलोमीटर रोज
चलकर आराम करना होता हैं। किंतु शहरी विस्तार एवं उज्जैन के आसपास बढ़ती आबादी ने इस
यात्रा को 118 किमी के करीब कर दिया हैं।
15 अप्रैल से
शुरू होगी पंचकोशी यात्रा
यह यात्रा प्रतिवर्ष की तरह इस
वर्ष भी वैशाख कृष्ण पक्ष की दशमी यानी 15 अप्रैल 2023 शनिवार से शुरू होकर वैशाख अमावस्या
20 अप्रैल 2023 को समाप्त होगी। यात्रा पटनी बाजार उज्जैन स्थित नागचन्द्रेश्वर भगवान
के दर्शन कर आरंभ की जाती हैं। यहाँ श्रद्धालु भगवान नागचन्द्रेश्वर को नारियल अर्पित
करते हैं। ऐसी मान्यता हैं,कि भगवान नागचन्द्रेश्वर के दर्शन से श्रद्धालुओं को बल
की प्राप्ति होती हैं। जिससे यात्रा सुगमता पूर्वक संपन्न होने में मदद मिलती हैं।
एक अन्य मान्यता यह भी प्रचलित हैं, कि महाकाल वन में यात्रा के दौरान सांप तथा अन्य
विषैले जीव-जंतु श्रद्धालुओं को परेशान न करें इस कामना से भगवान नागचन्द्रेश्वर से
प्रार्थना की जाती हैं।
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