जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक 

भ्रष्टाचार जो कभी न खत्म होने वाला दानव है, क्योंकि इस मारने वाले ही पोषणकर्ता है..., सिस्टम ही ऐसा बना है कि भ्रष्टाचारी न मरता और न उसे मरने दिया जाता है। भ्रष्टाचारियों को बचाने वाले नियम ही पूरे सिस्टम पर सवाल उठाते हैं? वहीं, हकीकत भी है कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधेंगा कौन? क्योंकि सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। भ्रष्टाचारियों को कानून ही बचाता आ रहा है। आदेश ऐसा है कि सिर्फ चार्जशीट पेश होने पर रिश्वतखोर अफसर (आरोपी) को सिर्फ निलंबित कर सकते हैं। केस दर्ज होने के बाद तबादला, जांच में डेढ़-दो साल लगना। मजेदार बात तो यह है कि जब अफसर नौकरी कर रहे होते हैं तो मुंह नहीं खोलते और जब रिटायर हो जाते हैं तो बयानबाजी करना शुरू कर देते हैं..., ऐसा ही उदाहरण मप्र के रिटायर्ड लोकायुक्त डीजी अनिल कुमार का है, जिन्होंने मीडिया को बयान दिया है कि भ्रष्टाचार के केस में सरकार जानबूझकर परमिशन नहीं देती है तो अफसर को बचाने की नीयत है। इन्वेस्टिगेशन के बाद अभियोजन स्वीकृति मिलती है। इसके बाद कोर्ट सजा कर करता है। ऐसे में परमिशन जल्दी दी जानी चाहिए, ताकि चालान में देरी ना हो। ...और ऐसी बयानबाजी कई अफसर रिटायर होने के बाद करते आए हैं। हमारे देश उच्च न्यायालय में बैठकर फैसला लेने वाले जज भी जब रिटायर हुए हैं तो रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते रहे हैं, लेकिन जब वह ओहदे पर रहते हैं और उनके एक फैसले पर बहुत कुछ बदलाव हो सकता है, तब उनके मुंह में दही जमा हुआ होता है...। या यूं भी कह सकते हैं कि जब अफसर नौकरी पर होता है तो उसे अपनी नौकरी की चिंता होती है... और डर लगता है।

    अब इंदौर नगर निगम की बात करते हैं कि आखिर नगर निगम के कामों को लेकर निजी ठेकेदार रुचि क्यों नहीं दिखाते, क्योंकि सर्वविदित है कि जब तक नगर निगम के अफसरों को ‘भेंट’ नहीं मिलेगी वो किसी काम को सही तरीके से नहीं होने देंगे। नगर निगम ने जलूद में 287 करोड़ रुपए की लागत से सोलर प्लांट लगाने की तैयारी कर रखी है और ग्रीन बांड जारी कर लोगों से भारी निवेश करा लिया, लेकिन नगर निगम के प्रस्तावित इस प्रोजेक्ट पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और यह बात इसलिए कही जा रही है कि नगर निगम ने इसके लिए तीन बार टेंडर जारी किए, लेकिन किसी भी ठेकेदार ने इस कार्य को करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई..., इसके पीछे के कारणों को सब समझते हैं, लेकिन अनजान है। कहा जा रहा है कि कोई भी निजी ठेकेदार कंपनी यह सोलर प्लांट लगाने को इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि ठेकेदार कंपनियों को पता है कि इस ठेके को लेने के बाद  10 साल तक न जाने कितने भ्रष्ट अफसरों की मांगों को पूरा करना होगा..।  कुल मिलाकर भ्रष्टाचारियों का जो चक्रव्यूह भ्रष्टाचार को लेकर बना है, उसे तोड़ पाना किसी के बस में नहीं है..। मंचों से जब बोला जाता है कि प्रदेश में भ्रष्टाचारियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे..., तो ऐसी बातों को सुनकर भ्रष्ट अफसर मखौल उड़ाते हैं, क्योंकि उन्हें भी पता है कि मंच पर जो बोल रहा है...वह भी भ्रष्ट है...।

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