इंदौर। कोविड-19 महामारी के चलते जहां लगभग हर घर मे स्मार्ट फोन एवं इंटरनेट तक बच्चों की पहुच बेहद आसान हो गई है, वहीं दूसरी और ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार (ओसीएसईए) जैसे गंभीर अपराधों का खतरा और भी बढ़ गया हैं। क्राई-चाइल्ड राइट्स एंड यू एवं सीएनएलयू (चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी), पटना द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक अध्ययन में शामिल मध्य प्रदेश के शिक्षकों में से 78 प्रतिशत ने यह माना की उन्होंने बच्चों मे कोविड -19 महामारी के बाद ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार की संभावना का संकेत देने वाले व्यवहार परिवर्तन देखे हैं। इन बच्चों मे 95 प्रतिशत से भी अधिक लड़कियां हैं। पॉक्सो यानि प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट, 2012 के लागू होने के 10 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में किए गए इस अध्ययन पॉक्सो एंड बियॉन्ड अंडरस्टैंडिंग ऑन ऑनलाइन सेफ्टी थ्रू कोविड के निष्कर्षों के अनुसार, 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के किशोर एवं किशोरियों ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार (ओसीएसईए) सबसे आसान शिकार होते हैं।

मध्य प्रदेश सहित 4 राज्यों (कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र) में किया गया यह अध्ययन यह दर्शाता है कि कोविड-19 के कारण लागू लॉकडाउन के दौरान स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने और ऑनलाइन शिक्षा के चलन में आने से इंटरनेट तक आसान पहुंच से बच्चों के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉम्र्स पर उपस्थिति तेजी से बढ़ी है। इससे ऑनलाइन अपराधियों के लिए पीडि़तों की पहचान करना, उनके व्यक्तिगत विवरण तक पहुंच प्राप्त करना और पीडि़तों से जुडऩा आसान हो गया है।

चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की क्षेत्रीय निदेशक, सोहा मोईत्रा ने कुछ गंभीर आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए कहा- अध्ययन के दौरान केवल 98 प्रतिशत माता-पिता ने कहा की यदि उनके बच्चों के साथ ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार होता है तो वे पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत दर्ज नहीं करेंगे, जबकि केवल 2 प्रतिशत ने इस विकल्प को अपनाने की बात कही। इसके अलावा, किसी भी माता-पिता ने ऑनलाइन बाल यौन शोषण और दुव्र्यवहार से संबंधित किसी भी कानून के बारे में जानकारी न होने की सूचना दी। इन निष्कर्षों ने माता-पिता के बीच कानूनी और कानून प्रवर्तन संस्थानों के साथ एक बड़ी सूचना की कमी और कम विश्वास का संकेत दिया।

94 प्रतिशत शिक्षकों ने बच्चों द्वारा ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से उनके साथ हुईं संदिग्ध घटनाओं की जानकारी साझा की, इनमे अधिकतम मामले लड़कियों से जुड़े हैं। निष्कर्षों के अनुसार, 94 प्रतिशत शिक्षकों ने बताया कि बच्चों को ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से अजनबियों द्वारा दोस्ती की मांग करने, व्यक्तिगत और पारिवारिक विवरणों के बारे मे जानकारी अर्जित करने और यौन सलाह देने के लिए संपर्क किया गया था। चिंता का विषय यह है की इनमें से 96 प्रतिशत मामले 14-18 वर्ष की बच्चियों के थे।

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