दमोह। मकर संक्रांति पर्व पर घरों में एक से बढ़कर एक पकवान बनाए जाते हैं। यह त्योहार केवल अपनी मिठास के लिए ही जाना जाता है, लेकिन इस पर्व में सबसे ज्यादा मिठास बुंदेलखंड की गड़िया घुल्ला की मिठाई ही घोलती है। दमोह की खास मिठाई लाइन में शक्कर से बनी यह मिठाई बनकर तैयार हो गई है। मकर संक्रांति पर्व इस मिठाई के बिना बुंदेलखंड अंचल में अधूरा माना जाता है। शक्कर की चासनी से बनी इस मिठाई का निर्माण साल में केवल एक बार संक्रांति पर्व पर ही होता है, जिसे कई प्रकार के सांचों में ढालकर बनाया जाता है।
मिठाई का महत्व
65 वर्षीय लक्ष्मीनारायण
नेमा ने बताया कि गड़िया घुल्ला की मिठाई को हाथी, घोड़े, ऊंट, गहने और कई प्रकार की
आकृति में बनाया जाता है। क्योंकि राजा, महाराजा के समय में वह हाथी, घोड़े, ऊंट और
गहनों के शौकीन होते थे। साथ ही उस समय में जब मेला भरता था, तो उसमें यही हाथी, घोड़े,
ऊंट बिक्री के लिए आते थे। इसलिए इस मिठाई को इसी प्रकार की आकृति में बनाया जाता है।
उसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा है कि जब किसी दुल्हन की शादी के बाद उसकी
ससुराल से पहली विदाई होती है और मायके वाले जब बेटी को लेने आते हैं तो वे स्टील की
मटकी में इसी तरह यह गड़िया घुल्ला की मिठाई लेकर जाते हैं। यह पुरानी परंपरा है, जिसे
आज भी निभाया जा रहा है।
ऐसे बनती है मिठाई
मिठाई को बनाने वाले प्रसन्न
नेमा ने बताया कि कई पीढ़ियों से उनके परिवार में मिठाई बनाने का काम किया जा रहा है।
साल भर उनके यहां मिठाइयों का निर्माण होता है, लेकिन मकर संक्रांति पर्व पर गड़िया
घुल्ला की मिठाई का विशेष महत्व है। शक्कर की चासनी बनाकर सांचों में डाली जाती है
तब कई आकृतियों में यह मिठाई बनती है। मकर संक्रांति पर्व पर दमोह जिले के कोने कोने
से लोग यह मिठाई खरीदने आते हैं। 100 क्विंटल तक शक्कर की चासनी से यह मिठाई बनाई जाती
है, जो ज्यादा महंगी तो नही रहती, लेकिन रिश्तों की डोर को निभाने के लिए यह काफी महंगी
है।
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