बुरहानपुर। महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील धारणी के रहवासियों ने शुक्रवार शाम मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर नारेबाजी कर मांग उठाई कि धारणी को मध्यप्रदेश में शामिल किया जाए। इसे लेकर उन्होंने मप्र महाराष्ट्र की बॉर्डर पर नारेबाजी की।
रहवासियों का
कहना है कि यहां किसी प्रकार की सुविधाएं नहीं हैं। सारा व्यापार भी मध्यप्रदेश के
बुरहानपुर, खंडवा और बैतूल जिले से जुड़ा है। रोड की स्थिति खराब है। आवागमन के साधन
बेहतर नहीं है। रहवासियों को उद्योग आदि की सुविधाएं नहीं है। धारणी में 154 गांव है।
यह करीब 150 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसके करीब 70 गांव मध्य प्रदेश से लगे हैं।
धारणी से अमरावती की दूरी करीब 190 किलोमीटर है। यह अति दुर्गम क्षेत्र है। धारणी से
अमरावती तक जाने के लिए 70 किलोमीटर का रास्ता रास्ता कहलाने के लायक नहीं है। स्वास्थ्य
सुविधाओं की दृष्टि से यहां कोई व्यवस्था नहीं है। यहां से अगर बीमार मरीज को अमरावती
भेजा जाता है तो कई मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। ऐसे में लोग यहां से मरीज
को बैतूल, खंडवा या बुरहानपुर ले जाना पसंद करते हैं।
सड़क की है परेशानी
धारणी से इन
जिलों की दूरी करीब 40 से 50 किलोमीटर है। अति दुर्गम क्षेत्र होने के कारण यहां किसी
प्रकार की सुविधा नहीं है। सरकारी योजनाएं भी यहां तक नहीं पहुंच पाती। यही कारण है
कि पिछले करीब 30 साल से यह क्षेत्र कुपोषण से मुक्त भी नहीं हो पाया है। लोगों का
कहना है कि यहां सड़क नाम की कोई चीज ही नहीं है। यहां का पूरा बाजार मध्य प्रदेश पर
निर्भर है। लोग व्यक्तिगत लाभ से वंचित हैं।
धारणी में भाषा
भी एक समस्या बनी हुई है। यहां के लोग हिंदी में बात करते हैं। जबकि, अफसर मराठी में
ऐसे में आपस में समन्वय भी नहीं बन पाता। रहवासियों ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजकर
मांग की है कि धारणी को मध्यप्रदेश में शामिल किया जाए। अमरावती जिले के जिला परिषद
सदस्य श्रीपाल राम प्रसाद पाल ने कहा कि 63 ग्राम पंचायतों के लोग इस मांग को लेकर
एकजुट हैं। ज्ञापन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को भी भेजा गया है।
यह भी है समस्या
100 गांव में अब तक पक्की सड़कें
नहीं बनी है। करीब 24 गांवों में बिजली नहीं है। कुपोषण खत्म नहीं हुआ है जबकि 30 साल
में यहां करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं यहां रहने वाले लोगों को मराठी नहीं आती है
जबकि अधिकारियों को हिंदी नहीं आती। ऐसे में भाषा की समस्या भी आ रही है। क्षेत्र वन
विभाग में आता है, लेकिन वन विभाग की कोई सुविधाएं भी इनको नहीं मिलती है।
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