भोपाल। मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से आठ चीतों को लाकर छोड़ा गया है। पांच मादा और तीन नर चीतों को एक महीने तक क्वारंटाइन बाड़ों में रखा जाएगा। उसके बाद उन्हें बड़े बाड़ों में छोड़ा जाएगा, जहां वे खुद शिकार कर अपना पेट भर सकेंगे। इससे उन्हें नए माहौल में रचने-बसने का मौका मिलेगा और इसी बात पर प्रोजेक्ट चीता की सफलता निर्भर करती है।
प्रोजेक्ट चीता
पर वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने जनवरी में रिपोर्ट जारी की थी। इसमें चीतों
को कूनो नेशनल पार्क में बसाने से लेकर हर तरह की जांच, निगरानी का जिक्र है। इसका
ही प्रोजेक्ट में पालन किया जा रहा है। रिपोर्ट में प्रोजेक्ट चीता की सफलता के मापदंड
बताए गए हैं। इसके अनुसार प्रोजेक्ट चीता को एक साल पूरा होने पर कम से कम आधे यानी
चार चीते जीवित रहने चाहिए। कोशिश होगी कि कूनो को चीते अपना प्राइमरी आवास बनाएं और
यहां से बढ़ने वाले कुनबे को देशभर में तीन से चार रिजर्व में बसाया जाएगा। कूनो पार्क
से इतनी आमदनी होनी चाहिए कि यह प्रोजेक्ट व्यवहारिक बने। चीतों की जीवित रहने की दर
25 से 40 प्रतिशत शावकों के लिए और 70 प्रतिशत वयस्क चीतों के लिए होती है।
एक्शन प्लान फॉर इंट्रोडक्शन ऑफ चीता इन इंडिया
यह रिपोर्ट वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने जनवरी में जारी की थी। इसमें चीतों के पुनर्वास से जुड़ी पूरी योजना का ब्योरा है। इसे लागू करने की जिम्मेदारी ही पिछले दिनों बनाए टास्कफोर्स को दी गई है। यह टास्कफोर्स रोजाना रिपोर्ट देख रहा है। इस टास्कफोर्स को नियमित बैठकें करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह कमेटी ही तय करेगी कि एक महीने की क्वारंटाइन अवधि खत्म होने के बाद चीतों को छोड़ा जाना है या नहीं। दरअसल, क्वारंटाइन अवधि में यह देखा जाएगा कि नामीबिया से आने के बाद यहां चीतों को कोई नई बीमारी तो नहीं होती है। इसके लिए रिपोर्ट में कुछ रोगों का जिक्र भी किया गया है, जिसका खतरा चीतों को हो सकता है।
दिसंबर के बाद
ही तय होगी चीतों की अगली खेप
इस समय नामीबिया से आठ चीते लाए
गए हैं। दक्षिण अफ्रीका से भी 12 चीतों को लाया जाना है। यह तभी होगा जब नामीबियाई
चीते कूनो के माहौल में घुल-मिल जाते हैं। यह देखने के लिए दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों
की एक टीम भी इस समय कूनो नेशनल पार्क में है। चीतों से ह्यूमन इंटरैक्शन कम से कम
रखने की कोशिश की जा रही है। ताकि उन पर दूर से ही नजर रखी जा सके। उन्हें मानवीय उपस्थिति
कम से कम महसूस हो।
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