साजिश 9/13

जवाबदेही @ इंदौर

...तो शुरुआत हम कर रहे हैं उस खबर की जिसने पूरे मध्यप्रदेश में सनसनी फैला दी और ये सनसनी क्यों फैलाई गई इसकी सच्चाई भी हम आपको बता रहे हैं, क्योंकि ये खबर समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से जुड़ी हुई है और जिसे बदनाम करने के लिए सुनियोजित साजिश रचकर ये खेल किया गया...।  मीडिया के सामने सच्चाई को छुपाने के लिए ये प्रपंच रचा और एक व्यवसायी और सिख समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति को बदनाम किया गया...। 

पूरी सच्चाई जवाबदेही आपके सामने रख रहा है....। वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को धोखे में रखकर अफसर एकजुट होकर खुद पर कार्रवाई न हो इसलिए खुद का दोष व्यवसायी के सिर पर मढ़ने की मंशा पाले हुए हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री ने अभी लगातार दो-तीन कार्रवाई  वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ की, जिसकी वजह से अधिकारियों में खलबली मची हुई है कि यदि उनकी सच्चाई सामने आ गई तो रायता ढुलना तय है..। और हकीकत भी यही है कि समय आने पर दूध का दूध और पानी का पानी 13 सितंबर वाली खबर को लेकर हो जाएगा....।

तो... अब चलिए विस्तार से जवाबदेही आपको बता रहा है कि खबर की पटकथा कैसे बनी और इस खबर का टर्निंग प्वाइंट कैसे मंजीतसिंह भाटिया उर्फ रिंकू भाटिया पर आकर ठहर गया और अफसरों ने उन पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया..., ताकि उनकी छवि समाज में खराब हो, क्योंकि रिंकू भाटिया गुरु सिंघ सभा के अध्यक्ष भी हैं। (जबकि बड़े-बड़े अपराधियों पर इनाम घोषित करने में सालों लग जाते है)

अब मामले पर नजर

दरअसल, 13 सितंबर  को अल सुबह कुक्षी के ढोल्या घाटी से अवैध शराब का परिवहन ट्रक (क्रमांक एमपी-69 एच-0112) के माध्यम से होने की सूचना एसडीएम को मिली। इसके बाद नायब तहसीलदार को साथ में लेकर एसडीएम ने उक्त वाहन का पीछा किया और ग्राम हल्दी में ढाबे के सामने ट्रक को रोक लिया। जबकि रात 3 बजे पुलिस पार्टी द्वारा एसडीएम साहब से आधी रात को घूमने की वजह भी पूछी थी तो उन्होंने बात को टाल दिया और पुलिस की मदद नहीं ली आिखर क्यों?

अब यहां से शुरू होती है कहानी

खबर प्रकाशित कराई गई कि अधिकारी वाहन चालक से ट्रक को लेकर चर्चा कर रहे थे.....सूत्र बता रहे हैं कि ( सच्चाई यह है कि चर्चा नहीं, रुपयों की मांग की जा रही थी) इसी दौरान पीछे से शराब तस्कर अपने साथियों को लेकर पहुंचा और अधिकारियों से मारपीट की और जानलेवा हमला कर दिया। इसके बाद नायब तहसीलदार को बंधक बनाकर भी आरोपी लेकर गए। 

ब्रांड : गोवा और लंडन प्राइड की शराब पकड़ाई

सच्चाई

बड़वानी की दुकान पर कभी यह माल वेयरहाउस से खरीदा ही नहीं गया...

चालू वित्तीय वर्ष अप्रैल 2022 से अब तक कभी भी इस ब्रांड की शराब वेयर हाउस से दुकान पर नहीं खरीदी गई...

धार, झाबुआ और आलीराजपुर जिले में पिछले 10 वर्षों में सैकड़ों गाड़ियांं अवैध शराब की पकड़ी गई लेकिन आज तक किसी का निराकरण नहीं हो पाया कि शराब कहां से आई थी, कहां जा रही थी और इसके पीछे कौन है, क्योंकि यह काम एक संगठित गिरोह का है जो कि हर साल सैकड़ों करोड़ रूपए के राजस्व का नुकसान शासन को पहुंचाता है, क्योंकि ये जिले गुजरात से लगे हुए है और गुजरात में शराबबंदी है।

खबर लगने पर सब दौड़े

इस घटनाक्रम के बाद प्रशासन हरकत में आया व इंदौर से भी अधिकारी जांच के लिए पहुंचे थे। पहले पुलिस ने इस मामले में पांच मुख्य आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया। वहीं, जिला प्रशासन की ओर से मजिस्ट्रियल जांच एडीएम के द्वारा शुरू की गई, जिसके आधार पर ही कमेटी के अध्यक्ष एडीएम के समक्ष आबकारी अधिकारी अपना रिकॉर्ड लेकर पहुंचे थे। एडीएम के अनुसार जांच प्रक्रिया अभी जारी हैं, आबकारी विभाग के अधिकारियों से भी रिकॉर्ड लिया गया है। जिसका अध्ययन जारी हैं, जांच पूरी होने के बाद ही रिपोर्ट वरिष्ठ अधिकारियों को सौंपी जाएगी।

उलझाने के लिए रचि साजिश

जैसा कि खबर प्रचारित की गई है कि जो ट्रक पकड़ाया उसमें जो शराब मिली वह बड़वानी जिले की दुकान से भरी गई थी। संभावना है कि ट्रक (क्रमांक एमपी-69 एच-0112) में शराब कहीं ओर से लोड की गई लेकिन जिला बड़वानी से रवाना किया। ताकि यह समझा जाए कि ट्रक में भरी शराब बड़वानी जिले की ही दुकान से लोड की गई है। दूसरी बात यह कि ट्रक से जो शराब बरामद की गई वह गोवा और लंडन प्राइड ब्रांड है, जबकि इस दुकान पर इस ब्रांड की शराब अप्रैल 2022 से लेकर सितंबर 2022 तक वेयर हाउस से मंगवाई ही नहीं गई है। इसके अलावा यह माल इस दुकान से बेचा ही नहीं जाता। सबसे बड़ा सवाल यह कि फिर अफसरों ने यह कैसे तय कर दिया कि ट्रक में भरी शराब इसी दुकान से लोड की गई है।

13 सितंबर से लेकर 24 सितंबर तक जांच अधिकारी खाली हाथ है, क्योंकि उन्हें कुछ सुराग नहीं मिल रहा, क्योंकि जो अिधकारी कार्रवाई के लिए गए थे उन्हें आबकारी विभाग की कार्रवाई को करने का अधिकार ही नहीं था।

सवाल?

कुक्षी कांड में बिना पुलिस बल के एसडीएम और तहसीलदार मौके पर क्यों गए..., क्या यह प्रक्रिया ठीक थी?

सच्चाई यही है कि आतंक का दूसरा नाम शासन माफिया ही है, क्योंकि अफसरी के नशे में चूर होने की वजह से शिवराज सिंह सरकार की बदनाम हो रही है। कई घोटाले अफसरों की वजह से हो रहे हैं और यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि कुक्षी कांड में बिना पुलिस बल के एसडीएम और तहसीलदार मौके पर क्यों गए..., क्या यह प्रक्रिया ठीक थी?

विश्वसनीय सूत्रों की माने तो खबर है कि अधिकारी वहां पर पैसे की उगाही करने गए थे और जब सेटिंग नहीं हो पाई तो इन्होंने केस बनाने की कोशिश की, जिसके कारण मारपीट भी हुई। पूर्व में आबकारी विभाग से संबंध न रखने वाले कई अधिकारी क्षेत्र में कई बार अवैध शराब पकड़ने में रुचि दिखाते रहे हैं। वह भी बिना बल के, क्योंकि इससे अवैध शराब वालों से खास सेटिंग में आसानी होती है। अपना मूल जनकल्याणकारी काम छोड़कर शराब पकड़ने में हमेशा अन्य अधिकारी लोग रुचि रखते नजर आए।

खैर अच्छी पुलिसिंग में हमेशा यह बात सामने आती है कि यदि बिना बल के या बिना तैयारी के पुलिस तो आबकारी वाले दबिश करते हैं और इन पर आक्रमण या हमला होने की संभावना रहती हैं, परंतु सवाल तो उक्त सभी बिंदुओं की जांच का है।

अफसर की भी जांच होना जरूरी, क्योंकि प्रशासन की छवि खराब हुई

कई बार देखने में आया कि पुलिस अधिकारियों कई बार बिना तैयारी और बल के अवैध जुए-सट्टे के अड्डे, अवैध माइनिंग व खदानों पर छापा, खूंखार अपराधियों को अरेस्ट करने, शराब पर रेड आदि करने पर असॉल्ट होने पर शासन की छवि धूमिल होने पर जांच और कार्रवाई हुई है। पर कुक्षी धार के मामले में एसडीएम, क्योंकि आईएएस अधिकारी है तो क्या उसकी इस बारे में कोई जांच नहीं होगी कि वह बिना फोर्स दल बल के क्यों गया ? क्या उसको आईएएस में ट्रेनिंग नहीं मिली थी कि ऐसी कार्रवाई बिना फोर्स के नहीं की जाती है ? क्या इस तरह बिना तैयारी के  एसडीएम के जाने से और उसके व तहसीलदार के पिटने से शासन प्रशासन  की छवि धूमिल नहीं हुई? क्या अन्य अधिकारियों का मनोबल इससे कम नहीं होगा कि उनकी भी पिटाई हो सकती है ? अक्सर आदिवासी एवं कंजर बाहुल्य जिलों में ऐसा होता रहता है।

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