आजादी का जश्न पूरा देश मना रहा है..., हमारे महापुरुषों और देश की खातिर मर मिटने वालों ने क्या ऐसी आजादी के सपने देखे थे। कुछेक नहीं, लाखों देशप्रेमियों ने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं आजादी के लिए, लेकिन आजाद भारत के बाशिंदों ने आजादी के महत्व नहीं समझा और देश को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं। एक दिन आजादी जश्न मनाकर 365 दिन भ्रष्टाचार हमारे देश में हो रहा है। देश में भ्रष्टाचार चरम पर है, वैसे 15 अगस्त के दिन भी भ्रष्टाचारियों ने राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित करने के नाम पर भी भ्रष्टाचार किया ही होगा। असल में देश को भ्रष्टाचार से आजादी चाहिए, क्योंकि इस दानव की वजह से देश में ईमानदारी खत्म-सी हो गई है। भ्रष्टाचारियों की वजह से ही आज देश की युवा पीढ़ी बिगड़ रही है, वो भी यही मानकर चल रहे हैं कि सरकारी नौकरी में जाना और भ्रष्टाचार करना ही है, इस वजह से यह भ्रष्टाचाररूपी दानव कभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं, धर्म और मजहब की आड़ में देश में जो अराजकता और पाखंडता फैल रही है, उससे भी हमें आजादी चाहिए, क्योंकि कभी हमारा देश ऐसा था ही नहीं, चंद राजनीतिज्ञों ने भारतीयों में मतभेद जातिवाद के नाम पर पैदा कर दिए और देश घर में ही झुलस रहा है, हमें ऐसे पाखंड से आजादी चाहिए। देश के कई राज्यों के दूरस्थ गांवों में शिक्षा का अभाव है, स्कूलों की हालत खराब, शिक्षक पढ़ाने नहीं जाते..., हमें ऐसी असाक्षरता से आजादी चाहिए। गरीबी खत्म करने का दावा तो किया जाता है, लेकिन गरीबी खत्म हो नहीं रही है...। हमें गरीबी से आजादी चाहिए...। दिलों में एक-दूसरे के प्रति स्नेह, आदर की भावना वाली आजादी चाहिए। नफरत हमारे देश में नेता ही फैला रहे हैं..., सही को सही नहीं बताते और गलत को गलत नहीं मानते..., यही वजह है कि देश में लोग एक-दूसरे को दुर्भावना की दृष्टि से देख रहे हैं। 15 अगस्त को हमें आजादी के उल्लास के साथ मनाना चाहिए, लेकिन इस दिन को घूमने-फिरने का दिन और छुट्टी मनाकर एंजॉय करने का दिन मनाने लग गए हैं। आजादी के मायने ही युवाओं ने बदलकर रख दिए हैं। दुख इस बात का भी है कि भ्रष्टाचार खत्म करने की दुहाई देकर शपथ और संकल्प तो लिए जाते हैं, लेकिन जो शपथ लेते हैं, संकल्प लेते हैं, वो ही भ्रष्टाचार करते नजर आते हैं...। काश! आजादी का अर्थ और महत्व बेईमान समझ सके!
जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक
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