असामाजिक तत्व कांवड़ यात्रा को कर रहे बदनाम

हथियार लेकर चलते हैं

जवाबदेही @ इंदौर

सावन मास शुरु होते ही कांवड़िए भगवान शिव को जल चढ़ाने निकल पड़ते हैं। कांवड़ियों की आस्था पर सवाल नहीं उठ रहे हैं, लेकिन असामाजिक तत्व कांवड़ यात्रा में शामिल होकर इस पवित्र यात्रा को बदनाम कर रहे हैं और उग्र होकर उपद्रव करते हैं। इसेे लेकर प्रशासन को भी सख्त होना होगा। कांवड़यात्री रास्तेभर नशा करते हुए चलते हैं। अब हर हाथ मोबाइल आ चुका है, ऐसे में उन्हें रास्तेभर नशा आसानी से उपलब्ध हो रहा है। उनकी गाड़ियों में लट्ठ, बैस-बॉल के डंडे तक रहते हैं। पूरी तैयारी के साथ ये लोग निकलते हैं, क्या ये आस्था से खिलवाड़ नहीं है। मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में कांवड़यात्रा निकालने की परंपरा रही है और इस सावन माह पुलिस प्रशासन को काफी अलर्ट मोड़ पर रहना होता है, क्योंकि कांवड़यात्रियों को कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए। 

रास्ते में बोलबम के जयकारे लगाने की आड़ में नशे में इन कांवड़यात्रियों द्वारा महिलाओं से भी अभद्रता की शिकायतें पुलिस प्रशासन को मिलती है। इस वजह से उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान महिलाओं की सुरक्षा पर पुलिस की विशेष नजर रहती है। जब आप सब भगवान शिव की आराधना करने के लिए निकले हो, पवित्र नदियों का जल मटकियों में भरकर निकले हो तो रास्तेभर तांडव क्यों? भांग का नशे के साथ शराब, अफीम, गांजा, चरस जैसे कई नशे का उपयोग करते हुए कांवड़यात्री निकलते हैं। रही सही कसर अब बीच रास्ते में डीजे बजाने का प्रचलन बढ़ गया है। सड़कों पर जाम लगता है और नशे में कांवड़िये शिव भजनों पर थिरकते रहते हैं एवं कारों और ट्रकों, बसों को डंडों के जोर पर रोक देते हैं और यदि कोई गलती से आगे आ जाता है उनके साथ मारपीट कर गाडि़यां फोड़ देते हैं।

जनता की परेशानियों से इन्हें कोई सरोकार नहीं रहा। जैसे ही शहरों या गांव की सीमाएं खत्म होती है, ये कांवड़िए खुले रूप में रास्ते पर चिलम पीते चलते हैं। वहीं, जहां कोई मंदिर दिख गया वहां झुंड का झंुंड नशा करते दिख जाता है। 

2018 में सुप्रीम कोर्ट को टिप्पणी करना पड़ी

उत्तर प्रदेश में 2018 में कांवड़ियों ने उपद्रव किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर कड़ी टिप्पणी की थी और पुलिस को आदेश दिया था कि कानून हाथ में लेने वाले कांवड़ियों के खिलाफ पुलिस सख्ती से निपटे। कारण यह था कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में कांवडि़यों ने कोहराम मचाया था। मुजफ्फरनगर में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में कहासुनी के बाद आपा खो बैठे कांवड़ियों ने कार में तोड़फोड़ की थी। इसमें कार सवार एक युवक और दो बच्चे घायल हो गए थे। इसके अलावा बुलंदशहर में एक छोटी सी बात को लेकर पुलिस की जीप पर हमला कर किया था। इसके बाद पुलिस वालों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। हालात ऐसे बन गए कि जान बचाने के लिए पुलिस वालों को मौके से भागना पड़ा।

कांवड़ियों को वारकरियों से सीखना चाहिए

महाराष्ट्र में कई जिलों से वारी (यात्रा) (दिंडी यात्रा) भी कह सकते हैं,  हर साल निकलती है और पंढरपुर स्थित भगवान पंढरीनाथ के दर्शन करने जाते हैं। बड़ी एकादश आषाढ़ के महीने में आती है, इस दिन को महाराष्ट्र में पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। वारी संप्रदाय में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं, बच्चे, युवक-युवतियां, महिला-पुरुष, वृद्ध..., सभी हाथों में भगवा झंडा और ढोलक, मृदंग और झांझ-मंझीरे पर भजन गाते चलते हैं। दूर-दराज जिलों के छोटे-छोटे गांवों से ये वारी निकलती है... और श्री क्षेत्र पंढरपुर पहुंचती है। कहीं कोई पुलिस प्रशासन की व्यवस्था नहीं रहती है, जिस जगह से यात्रा निकलती है समाजजन स्वागत सत्कार और उनके खाने-पीने और ठहरने की व्यवस्था करते हैं। पूरी यात्रा में सिर्फ भजन, सत्संग और अभंग होते रहते हैं। मजाल है कोई एक व्यक्ति भी नशे में मिल जाए...। पढ़े-लिखे युवा इसमें शामिल होते है। नशा करना, हुड़दंग करना आदि इस वारी में बिल्कुल नहीं होता। वारी निकालने की परंपरा बरसों से चली आ रही है, लेकिन आज तक वारकरियों की ओर से कभी कोई घटना सुनाई नहीं दी कि वारकरों ने राह चलते लोगों को परेशान किया, होटल पर हंगामा किया या फिर डीजे पर नाच रहे हैं या फिर हथियार लेकर शामिल हुए। एक भी घटना महाराष्ट्र की आज तक सामने नहीं आई।

वारी में भजन गाते चलते हैं...

कांवड़ यात्रा का काला सच

कांवड़ यात्रा का काला सच ये है कि इसमें धर्म के नाम पर असामाजिक तत्व गैर कानूनी काम  करते है । भगवा कपड़े पहनकर सरेआम गांजा पीते हैं। गांजा पीना और रखना गैरकानूनी है। कांवड़ियों के अनुसार वो गांजा का एक कश मारते हैं तो 10 किलोमीटर मस्ती में आराम से चले जाते हैं। जबकि गांजे के मामले में NDPA एक्ट के अंतर्गत 6 महीने की जेल की सजा और 10 हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। वहीं, रास्तेभर समाजजन इनका आत्मीय स्वागत करते हैं, अभिनंदन करते हैं और इन पर फूल बरसाते हैं. लेकिन ये लोग धर्म की आड़ में भगवान को भी बदनाम कर रहे हैं। मुजफ्फर नगर में तो एक शिविर में कांवड़ियों के मनोरंजन के लिए किन्नरों का नाच तक कराया गया, क्या ये उचित है। 

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