इंदौर में नगरीय निकाय चुनाव अब जोर पकड़ने लगा है, लेकिन ये जोर वाला शोर लोगों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। सुबह उठते ही लोगों को पहले नगर निगम की गाड़ी से इंदौर बनेगा नंबर वन सुनना पड़ता है... और इसके बाद भाई, भाभी, दीदी, बहन को लेकर अलते-भलते गाने सुनना पड़ रहे हैं। कानफाड़ू डीजे पर बजते गानों से लोगों की मानसिकता पर विपरीत असर पड़ रहा है। मुद्दों को लेकर प्रत्याशी भटके नजर आ रहे हैं, बस बहन-भाभीजी-बहू और भैया को जीताने का प्रचार किया जा रहा है। कोई ये नहीं कह रहा है कि नगर निगम से भ्रष्टाचार को हम बाहर करके दिखाएंगे। नगर निगम में अफसरशाही चलती है और चलती रहेगी...। जो प्रत्याशी जीतेंगे, उन्हें वो ही करना होगा, जो नगर निगम में बैठे अफसर तय करेंगे... और ऐसा होता आया है और होता रहेगा... न पार्षद कुछ कर सकेगा और न कोई महापौर...। नगर निगम में हो रहे भ्रष्टाचार के बारे पार्षद, विधायक, सांसद सभी को पता है.., क्या ये लोग भ्रष्टाचार रूपी राक्षक को नगर निगम के बाहर निकाल पाए...। नगर निगम में एक सिस्टम बन चुका है, जो कभी नहीं बदलेगा...! जनता भी जान चुकी है कि 6,250/- रुपए महीना प्राप्त करने के लिए कोई पार्षद पद के लिए लाखों रुपए प्रचार-प्रसारमें खर्च नहीं करेगा...। पार्षद पद पाने के लिए जो लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं, उसकी वसूली क्षेत्र के विकास कार्यों की फाइलें बनाकर कमिशन के रूप में वसूली की जाती है। निर्माण कार्य घटिया होता है, क्योंकि नगर निगम का काम करने वाले ठेकेदार है, वो निगम अफसरों के “अपने’ हैं, जिनसे काम कराना होता है... तो पार्षद महोदय को हां में हां मिलाना ही पड़ती है..., क्योंकि इसी में उसकी भलाई होती है ... और शहर बरसों से देखता आ रहा है कि किस तरह जनता के पैसों का दुरुपयोग नगर निगम की तरफ से होता आ रहा है...।
बिना स्वार्थ के राजनीति संभव ही नहीं है। वो दौर गया, जब नेता वार्ड को अपना घर समझते थे..., शहर को अपना परिवार.....।
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