जवाबदेही @ इंदौर

भ्रष्टाचार अब एक रंगमंच बन गया है और इस पर जो खेल खेला जाता है उसे लुुका-छिपी का खेल भी कह सकते हैं। अफसर, नेता और सत्ता एक-दूसरे के पीछे कहो या आसपास या सहारे चलते रहते हैं। कब कौन पकड़ा जाए कह नहीं सकते और पकड़ा भी गया तो येन-केन प्रकारेण वह छूट ही जाता है, चाहे फिर घोटाला छोटा हो या बड़ा।

इन भ्रष्टाचारियों के लिए कितने भी कड़वे शब्द लिख दो, इन पर कोई असर नहीं पड़ता...। एक इज्जतदार आदमी के दरवाजे अगर पुलिस किसी अन्य का पता भी पूछने पहुंच जाए तो वह पसीना-पसीना हो जाता है और गली-मोहल्ले वाले क्या सोचेंगें उसके परिवार के बारे में इस चिंता में रहता है और बिना पूछे ही लोगों को बेचारा बोलते फिरता है कि फलाने-फलाने का पता पूछ रही थी पुलिस..., क्योंकि उसे अपने साथ-साथ परिवार की इज्जत की भी चिंता है...। लेकिन भ्रष्टाचार रूपी यह दानव का जिन्न जो अफसरों के शरीर में निवास करने लगा है, इससे ऐसे अफसरों को इज्जतदार होने की अनुभूति ही नहीं होती। बात हम मध्यप्रदेश की ही करें तो भ्रष्टाचारियों की ही तूती बोल रही है। बता दे कि ईओडब्ल्यू ने 1 जनवरी 2021 से 31 मार्च 2022 तक करीब 126 एफआईआर दर्ज की। ऐसी स्थिति है है सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की।

15 माह में लोकायुक्त पुलिस ने 268 भ्रष्टों को रंगेहाथों पकड़ा

लोकायुक्त पुलिस ने 15 महीनों (जनवरी 2021 से मार्च 2022) में 268 भ्रष्टों को रिश्वत लेते रंगेहाथों गिरफ्तार किया। इनसे 58 लाख रु. रिश्वत के जब्त किए। ईओडब्ल्यू में 2021 में घोटाले और धोखाधड़ी की 276 शिकायतें पहुंची थी, जिसमें से 91 एफआईआर दर्ज की गई। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि कोई रिश्वत मांगे तो मुझे कहना। जिस तरह मध्यप्रदेश शासन गुंडों के खिलाफ सख्त है, तो फिर रिश्वतखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती। क्यों इन्हें छोड़ दिया जाता है, निलंबन या इस विभाग से उस विभाग में भ्रष्टाचारियों को पहुंचाया जाता है। ऐसा अफसर जहां जाता है, वहां फिर गंदगी फैलाता है...।

जनता को बिना शुल्क दिए मिल रहा मनोरंजन!

भ्रष्टाचार की ये भी कहानी है गजब की

मध्यप्रदेश में 20 साल पहले उद्योग घोटाला हुआ था, जिसमें 810 करोड़ रुपयों की लूट की गई थी। इस घोटाले को दबाया ही जा रहा है। सरकारों की जैसे अदला-बदली होती.... इस घोटाले का जिन्न बाहर आ जाता...फिर कुछ दबाव बनता या फिर लेन-देन होता तो ये जिन्न फिर वापस बोतल में बंद हो जाता। 20 सालों से इस घोटाले में लुकाछिपी का खेल खेला जा रहा है।इस घोटाले में  कुछ उद्योगपतियों के साथ मिलीभगत कर जनता का पैसा लुटाया गया था। घोटाले में एक तरफ कुछ उद्योगपति थे तो दूसरी तरफ राज्य उद्योग विकास निगम के एमडी के रूप में एसआर मोहंती की भूमिका थी। उद्योग घोटाले की जांच भले ही 20 साल तक रेंगती रही हो, लेकिन मोहंती शासन में सरपट दौड़ते रहे।

मजेदार तो ये बात भी है आपने कभी सुना है कि घोटाले के आरोपी को सरकार सशर्त प्रमोशन देती है। नहीं सुना है तो सुन लीजिए, मध्यप्रदेश में एसआर मोहंती ने सशर्त पदोन्नति, एक पद पर नहीं, तीन-तीन पद पर हासिल की है। सचिव से प्रमुख सचिव और प्रमुख सचिव से अपर मुख्य सचिव की पदोन्नति मोहंती को सशर्त दी गई थी। न्यायिक प्रक्रिया के साथ खेलते हुए मोहंती ने राजनेताओं को साधा और सशर्त प्रमोशन हासिल किए। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की 15 महीने की सरकार ने तो शायद मोहंती को ही  प्रशासन का मुखिया बनने के योग्य पाया और भ्रष्टाचार के आरोपी को मुख्य सचिव बना दिया गया| तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुख्य सचिव बनाने के लिए जांच के जिन आदेशों को खारिज किया था उन्हीं आदेशों को अस्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने जांच के निर्देश दिए| एक अफसर ने इतने बड़े घोटाले में आरोपी होने के बावजूद किन-किन तरीकों से राजनेताओं को खुश करते हुए प्रशासन का सिरमौर बनने में सफलता हासिल की। यह कहानी सुनकर ऐसा लगता है कि ओटीटी पर कोई वेब सीरीज चल रही है।

जनता तो भोली-भाली है, उसे अपनी धाड़की से ही फुर्सत नहीं मिल रही है और वह  विश्वास के साथ अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है और जनप्रतिनिधि ब्यूरोक्रेसी के हाथ की कठपुतलियां बन जाते हैं। मोहंती का मामला इसका सबसे प्रबल उदाहरण है। प्रदेश की जनता के लिए यह जानना जरूरी है कि जिस मोहंती ने मुख्य सचिव के रूप में राज्य के प्रशासन  को लीड किया उसकी रिटायरमेंट के बाद न्यायालय के आदेश पर जांच  कैसे हो रही है। स्थान बदलने से व्यक्ति नहीं बदल जाता। शासन-प्रशासन की पवित्रता पर उठने वाले सवालों की भले ही आवाज आज बुलंद ना हो, लेकिन बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है। इसी मध्यप्रदेश में मतदाताओं ने गुस्से में किन्नर जनप्रतिनिधियों का भी चुनाव किया था। ऐसा गुस्सा अभी भी है, ऐसा जनता के बीच जाने पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है।


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