जगजीतसिंह भाटिया

प्रधान संपादक

देश में तनाव की स्थिति बनने लगी है...साफ दिख रहा है कि घर में ही विवाद होने लगे हैं। कुछ दिनों पहले राजस्थान के करौली में चैत्र नवरात्रि पर हिंदुओं द्वारा निकली रैली पर मुस्लिमों ने हमला कर दिया। इसके बाद मध्यप्रदेश के खरगोन में भड़की हिंसा में भी मकान-दुकानें जला दी। 70 परिवारों को घर छोड़कर जाना पड़ा। रामनवमी के दिन ही जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी परिसर में रविवार को वामपंथी छात्र संगठन आइसा और एबीवीपी के छात्र छात्रावास की कैंटीन में कथित तौर पर मांसाहारी भोजन बनाने को लेकर भिड़ गए। इसी तरह रामनवमी पर ही झारखंड में लोहरदगा जिले के सदर थाना क्षेत्र के हिरही गांव में शोभायात्रा पर उपद्रवियों ने पथराव किया। इससे इलाके में तनाव का माहौल उत्पन्न हो गया है। इस दौरान आगजनी की घटना भी हुई और पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। इसी दिन गुजरात में दो जगह रैलियों पर पथराव हुआ...। इन घटनाओं में कई लोग घायल हुए हैं।  

देश का कानून सर्वोपरि होता है, लेकिन कानून को देश में रहने वाले लोग ही नहीं मान रहे हैं। नेता अपना काम कर रहे हैं और पुलिस प्रशासन अपना। पुलिस व्यवस्थाएं बनाने में लगी है और नेता सबक सीखाने जैसे बयान जारी कर रहे हैं। मसले का हल निकालने के लिए कोशिश नहीं की जा रही है। ऐसा नहीं है कि कोई कम पड़ रहा है, लेकिन हिंदू-मुस्लिम में जो मतभेद होता जा रहा है और स्थितियां बिगड़ती जा रही है, उन्हें संभालने और लोगों को समझाने की जरूरत है। एक-दूसरे के धर्म के प्रति जो नफरत भरी है, उसे दूर करने की जरूरत है। देशभर में कभी हिजाब पर बहस हो रही है तो कभी अजान को लेकर...।  शांति समितियां बनी हुई हैं, लेकिन इन समितियों में चर्चा सिर्फ त्योहारों पर होती है। भाईचारा तो सिर्फ शब्दों में दिखाई और पढ़ने में आता है, लेकिन असल में इसके मायने किसी को समझ में ही नहीं आ रहे हैं। ईश्वर ने इंसान बनाया, लेकिन जात-पात ने सभी को बांटकर रख दिया है। कोई समझने को तैयार नहीं है। खरगोन की घटना को लेकर नेताओं के बयान जारी हुए हैं कि जिन घरों से पथराव हुआ है, उन घरों को पत्थर का ढेर बनाएंगे। 

प्रदेश सरकार को स्थितियां न बिगड़े, इसके लिए लगातार सर्चिंग कर घरों की छतों पर ड्रोन द्वारा सर्चिंग कराना चाहिए कि कहां-कहां ईंट और पत्थर के ढेर पड़े हैं, क्योंकि खरगोन की घटना में भी दंगाइयों की छतों पर पत्थर जमा थे। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि 7 साल पहले हुए दंगे में भी इसी तरह से भारी संख्या में घरों की छतों पर पत्थर मिले थे। जुलूस के पहले पुलिस ने ड्रोन से सर्चिंग नहीं कराई। यदि सर्चिंग कराई होती तो छत पर जमा पत्थरों को हटवाया जा सकता था। अभी भी समय है कि प्रदेशभर में जो भी संवेदनशील क्षेत्र हैं और उपद्रव होने की आशंका है, वहां ड्रोन से सर्चिंग करानी चाहिए..., क्योंकि जो उपद्रव हो रहे हैं, वो तत्कालिक नहीं है, बल्कि प्लानिंग से हो रहे हैं, जिसमें सार्वजनिक संपत्ति के साथ-साथ निजी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाकर लोगों की जान लेने पर उतारू हो रहे हैं। राजस्थान के करौली में जब रैली निकली तो अचानक छतों पर काफी भीड़ जमा हो गई और पत्थर बरसाना शुरू हो गए..., इससे साफ नजर आता है कि एक सोची-समझी साजिश के तहत देशभर में अराजकता का माहौल पैदा किया जा रहा है। 


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