जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक
हमारे देश के वैज्ञानिकों की सफलता को देखकर बड़ा आश्चर्य होता है...। वहीं, दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भी दाद तो देनी ही चाहिए...कि वह मंगल ग्रह पर इंसानों को बसाने की सोच रहे हैं। ऐसा नहीं है कि अकेले इन वैज्ञानिकों के भरोसे ही मंगल पर जीवन की लौ प्रकाशमान होगी, बल्कि मंगल पर जीवन की तलाश में सरकारों का भी अहम योगदान रहेगा!
अभी एक खबर आई कि मंगल ग्रह पर इंसानी बस्तियां बसाने लाल ग्रह पर निर्माण की संभावना तलाशी जा रही है, इसके लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक जुटे हैं। वहीं, हमारे भारतीय वैज्ञानिकों को इसमें ेक नई सफलता मिली है। उन्होंने मंगल ग्र पर बस्तियां बसाने में उपयोगी अंतरिक्ष ईंट बनाने के लिए बैक्टीरिया आधारित एक वििशष्ट तकनीक विकसित की है, जिसका उपयोग ईंट बनाने में हो सकता है।
है न कमाल की बात.... कमाल की बात इसलिए कि हमारे देश में कई ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां आज तक पेयजल के लिए ग्रामीणों को भटकना पड़ता है। महिलाएं तीन-चार किलोमीटर दूरी से सिर पर 10-20 लीटर का वजन ढोकर परिजन की प्यास बुझाने के लिए सुबह से ही घर छोड़ देती है। मंगल ग्रह पर क्या हो रहा है, वहां कौन-सीन गतिविधि चल रही है, उसे जानने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा है और विडंबना देखिए कि धरती पर रहने वाले लोगों के लिए एक घड़े पानी की व्यवस्था के लिए कोशिश नहीं की जा रही है। जिस धरती पर रहने वाले लोगों को पेयजल जैसी मूलभूत व्यवस्था सरकारों द्वारा नहीं की जा रही है, वह मंगल ग्रह पर जीवन तलाश रहे हैं। पहले धरती पर रहने वाले लोगों की सुध तो ले लो...।
यहां जीवन है : धरती पर जीवन है, उसे बचाने की आवश्यकता है। वर्तमान के हालातों पर नजर डालें तो कौन इस धरती की फिक्र कर रहा है। 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस था, जिसे लेकर अखबारों में कई चिंतनकारों ने अपनी पीड़ा व्यक्त की, लेकिन कितने लोग हैं जो पृथ्वी की चिंता कर रहे हैं। जगह-जगह पृथ्वी को छलनी किया जा रहा है, लेकिन इसकी पूर्ति नहीं की जा रही है। पानी के परंपरागत स्रोत सूख रहे हैं, वायुमंडल दूषित हो रहा है, मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही है, जो अनाज धरती से पैदा हो रहा है, उसमें पोषक तत्वों की कमी है, नदियां सूख रही हैं?
इंसानी लालच सबसे बड़ा कारण : इंसान पूरी तरह से प्रकृति पर ही निर्भर है, लेकिन इंसान की रुपयों की लालसा प्रकृति को विनाश की ओर ले जा रही है। आज जितना खर्च मंगल ग्रह पर पर जीवन तलाश के लिए किया जा रहा है, उतना खर्च यदि धरती को संवारने और संभालने की दिशा में ईमानदारी से खर्च किया जाए तो कभी पानी का संकट नहीं हो सकता। आज हालात ये हो गए हैं कि यदि पेयजल के लिए यदि कोई अच्छी पहल की जाती है तो उसमें सेंध लगाने के लिए अफसर पहले गलियां ढूंढता है कि इसमें कमाई कैसे की जाए। शहर, गांव और कस्बों में पेयजल को लेकर काफी मारामारी है। लोग बड़ा तकलीफ में जीवन गुजार रहे हैं।
इंदौर के लोग सिर्फ एक कल्पना बिना नर्मदा नदी के करके देख ले, तो पैरों तले से धरती खिसक जाएगी। नर्मदा नदी भी कई जगह सूखती जा रही है। पूरे प्रदेश की प्यास बुझाने का मुख्य स्रोत है नर्मदा नदी। यह हमेशा जीवित रहे, इसके लिए प्रयास लगातार होने चाहिए। नदी किनारों पर सघन रूप से वृक्षारोपण लगातार होने चाहिए, जिससे बारिश भी अच्छी होगी और प्रदेश की नदियां भी जीवित रहेगी। होता उल्टा है, जब सघन पौधारोपण की योजना बनती है तो पता चलता है पौधे लगे ही नहीं, पौधे लग गए तो पानी के अभाव में जल गए... ये लापरवाही संबंधित अधिकारियों या कर्मचारियों द्वारा की जाती है। इंसान को अपना लालच छोड़ना होगा, क्योंकि प्रकृति से ही सभी का जीवन है, यदि रुपयों के लालच में पर्यावरण से खिलवाड़ किया गया तो इसके परिणाम काफी घातक होंगे। वहीं, सबसे पहले धरती पर रहने वाले लोगों के जीवन के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि मंगल पर जीवन की तलाश करना व्यर्थ और बेमानी होगा...।
Post a Comment