जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक
होली पर्व क्या है, उसकी विशेषता क्या है, यह पर्व क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर आज युवाओं को कुछ नहीं पता। होली (धुलेंडी) आने के एक महीने पहले युवा पिकनिक मनाने का प्लान बनाते हैं। (शराब पार्टी)..., अब यह विकृति आई कहां से.. हकीकत यह है कि यह विकृति हमारे देश में फिल्मों से आई है। जब भी फिल्म में कोई होली को लेकर गीत बनाया जाता है, उसमें अश्लील शब्द (दो अर्थी) का उपयोग अधिक किया जाता रहा है। साथ ही होली खेलते समय फिल्मों में हीरोे-हिरोइन को अश्लील इशारे करते दिखाए जाने लगे। रंग लगाने के तरीके गलत बताने लगे। उन्हें एकांत में जाते दिखाया जाने लगा। अब हम फिल्म सिलसिला में रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे गीत में जितनी अश्लीलता वाले शब्द बोले गए हैं वो सुनकर ही लगता है कि क्या ऐसा ही सब कुछ होता है। इस गीत के अलावा भी कई होली के गीत है, जिसमें द्वीअर्थी शब्दों का उपयोग किया जाता रहा है। अब युवाओं को ये लगने लगा है कि होली का अर्थ है, नशा करना, रातभर नाचना, युवतियों से छेड़छाड़ करना। होली के दिन देशभर में कई विवाद होते हैं, सिर्फ छेड़छाड़ को लेकर।
मां-बाप बच्चों को ये बता ही नहीं रहे है कि आखिर होली क्यों मनाई जाती है। होली आने के पहले युवा सोशल मीडिया पर चुटकुले, गंदा साहित्य एक-दूसरे को भेज रहे हैं, साथ ही हैप्पी होली कहकर इस पर्व की खुशियां मनाते हैं, जबकि यह गलत है। हम सिर्फ पढ़ते हैं कि होली के दिन युवा बड़े-बुजुर्गों के पैर छूते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। दिन-ब-दिन होली जैसे पर्व का मजाक बनाया जा रहा है। कोई युवा यह नहीं बता सकता कि होली क्यों मनाई जाती है, हिरण्यकश्यप कौन था और भक्त प्रह्लाद कौन था और होलिका कौन थी?
आज के युवा वर्ग पर पश्चिम सभ्यता का अत्यधिक प्रभाव है। नमें अपनी सभ्यता,संस्कृति और मान्यताओं की कोई अहमियत नहीं रह गई है। युवा वर्ग का गलत रास्तों पर जाना भी पश्चिमी सभ्यता के बढ़ते परिणाम का ही फल है। भारतीय समाज और युवा वर्ग पर यदि पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव इसी प्रकार बढ़ता रहा तो भारतीय सभ्यता व संस्कृति खतरे में पड़ रही है। परिवार ही बच्चों की पहली पाठशाला है। यदि बच्चे अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं तो उन्हें बताना परिवार की जवाबदेही है। जब तक हम बच्चों को संस्कृति और हमारे त्योहार से जोड़ेंगे नहीं, तब तक एेसा ही चलता रहेगा। होली जलने के पहले ही लोग एक-दूसरे को रंग लगा रहे हैं। स्कूल-कॉलेजों में हफ्तेभर पहले आयोजन किया जा रहा है, जिसमें डीजे पर छात्र-छात्राएं होली खेल रहे हैं। आयोजक कहते हैं कि छुटि्टयां पड़ रही है, ऐसे में पहले ही होली मना रहे हैं। हमारे हर पर्व में एक संदेश है, जो एक-दूसरे से जोड़े रखता है, लेकिन आज की पीढ़ी पर्व को सिर्फ छुट्टी का दिन मानकर एंजॉय करना मान रही है। होली हो, दशहरा हो या दीपावली या अन्य कोई त्योहार युवाओं के लिए यह त्योहार बस एक छुट्टी बनकर रह गए हैं। मजाल है किसी युवा ने होली जलने से पहले और बाद में उसकी परिक्रमा की हो...। क्योंकि उन्हें बताया ही नहीं गया कि ये पर्व हमारे जीवन में कितना महत्व रखता है.....
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