जवाबदेही @ इंदौर

भ्रष्टाचार को खत्म करने की बातें तो बहुत की जाती है, लेकिन उस पर अमल कितने अफसर और नेता करते हैं, ये वो खुद जानते हैं। 30 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में कहा कि देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को खोखला करता है। लेकिन उससे मुक्ति के लिए इंतजार क्यों करें। यह काम हम सभी देशवासियों को आज की युवा पीढ़ी को मिलकर करना है जल्द से जल्द करना है। उन्होंने कहा कि इसके लिए बहुत जरूरी है कि हम अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दें। जहां कर्तव्य निभाने का एहसास होता है, कर्तव्य सर्वोपरि होता है, वहां भ्रष्टाचार भी नहीं रह सकता। उन्होंने ये भी कहा कि हमें अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि जहां कर्तव्य सर्वोपरि होता है वहां भ्रष्टाचार नहीं रह सकता।

जवाबदेही इसी विषय पर अपनी बात रख रहा है कि सरकारी कार्यालयों में दीवारों पर जागरूकता से संबंधित पोस्टर चस्पा रहते हैं, जिस पर लिखा होता है कि किसी भी काम के लिए कोई रिश्वत मांगे तो शिकायत करें। या किसी भी काम करने को लेकर रिश्वत न दे। इसका सीधा सा अर्थ यह भी है कि इन कार्यालयों में रिश्वत मांगी जाती है, तभी तो लोगों को जागरूक करने के लिए संदेश चस्पा किया है। लेकिन क्या बिना लिए-दिए कार्य हो रहा है। ये सवाल हर उस अफसर से हैं, जो सरकारी नौकर है और उसकी जिम्मेदारी है कि वो इस भ्रष्टाचार के खिलाफ हो। लेकिन ऐसा होते दिखता नहीं।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अिभयान चलाया कि देश में सफाई होनी चाहिए और इस अभियान में हर शहर के नागरिकों ने अपनी महती भूमिका निभाई। 

सबसे बड़ा उदाहरण

लाल बहादुर शास्त्री



जिनकी एक आवाज पर लाखों भारतीयों ने छोड़ दिया था एक वक्त का खाना। ...तो बात ऐसी है कि 1965 की लड़ाई के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन ने लालबहादुर शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको पीएल 480 के तहत जो लाल गेहूं भेजते हैं, उसे बंद कर देंगे। उस समय भारत गेहूं के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था। शास्त्री को ये बात बहुत चुभी, क्योंकि वो स्वाभिमानी व्यक्ति थे। इस पर लाल बहादुर शास्त्री ने ने देशवासियों से कहा कि हम हफ्ते में एक वक्त भोजन नहीं करेंगे। उसकी वजह से अमेरिका से आने वाले गेहूं की आपूर्ति हो जाएगी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस अपील से पहले लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी पत्नी ललिता शास्त्री से कहा कि क्या आप ऐसा कर सकती हैं कि आज शाम हमारे यहां खाना न बने। मैं कल देशवासियों से एक वक्त का खाना नहीं खाने की अपील करने जा रहा हूं। मैं देखना चाहता हूं कि मेरे बच्चे भूखे रह सकते हैं या नहीं। जब उन्होंने देख लिया कि पूरा परिवार एक वक्त बिना खाने के रह सकता हैं तो उन्होंने देशवासियों से भी ऐसा करने के लिए कहा।
मन में देशप्रेम होना चाहिए
सरकारी कार का उपयोग नहीं किया
लाल बहादुर शास्त्री के दूसरे बेटे सुनील शास्त्री के अनुसार उनसे जुड़ी एक घटना
“जब शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो  उन्हें एक सरकारी शेवरोले इंपाला कार दी गई। एक दिन मैंने बाबूजी के निजी सचिव से कहा कि वो ड्राइवर को कार के साथ घर भेज दें। हमने ड्राइवर से कार की चाबी ली और दोस्तों के साथ ड्राइव पर निकल गए। देर रात घर लौटे और कार गेट पर ही छोड़ दी। मैं जाकर अपने कमरे में सो गया। अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने सोचा कि कोई नौकर दरवाजा खटखटा रहा है। मैंने चिल्लाकर कहा कि अभी मुझे तंग न करे, क्योंकि मैं रात देर से सोया हूँ। दरवाजे पर फिर दस्तक हुई और मैंने देखा कि बाबूजी सामने खड़े हैं। उन्होंने मुझे मेज तक आने के लिए कहा, जहां सब लोग चाय पी रहे थे। वहां अम्मा ने मुझसे पूछा कि कल रात तुम कहां गए थे और इतनी देर में क्यों लौटे? बाबूजी ने पूछा कि तुम गए कैसे थे? जब मैं लौटा तो हमारी फिएट कार तो पेड़ के नीचे खड़ी थी। मुझे सच बताना पड़ा कि हम उनकी सरकारी इंपाला कार से घूमने निकले थे। बाबूजी इस कार का तभी इस्तेमाल करते थे जब कोई विदेशी मेहमान दिल्ली आता था। चाय पीने के बाद उन्होंने मुझसे कार के ड्राइवर को बुलाने के लिए कहा। उन्होंने उससे पूछा क्या आप अपनी कार में कोई लॉग बुक रखते हैं? जब उसने हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने पूछा कि कल इंपाला कार कुल कितने किलोमीटर चली है? जब ड्राइवर ने कहा कि 14 किलोमीटर तो उन्होंने कहा कइसे निजी इस्तेमाल की मद में लिखा जाए और अम्मा को निर्देश दिया कि प्रति किलोमीटर के हिसाब से 14 किलोमीटर के लिए जितना पैसा बनता है, उनके निजी सचिव को दे दें ताकि उसे सरकारी खाते में जमा कराया जा सके। तब से लेकर आज तक मैंने और मेरे भाई ने कभी भी निजी काम के लिए सरकारी कार का उपयोग नहीं किया।

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