जगजीतसिंह भाटिया

प्रधान संपादक

हमारे देश में एक भेड़चाल चल रही है, जिसके तहत हर विद्यार्थियों को आईटी सेक्टर में जाना है। लेकिन इसके लिए वह खुद तैयार नहीं है। वहीं, दूसरा कारण यह भी है कि प्रदेश में छोटे-छोटे कॉलेज जो खुल चुके हैं, उन्होंने खुद की यूनिवर्सिटी बना ली है और डिग्री जारी कर रहे हैं। सारा खेल पैसों को लेकर किया जा रहा है। विद्यार्थी पढ़ रहा है या नहीं, उससे इन कॉलेजों को कोई सरोकार नहीं है।  वर्तमान में इंदौर आईटी हब के रूप में जाने जाने लगा है, और इसी को ध्यान में रखते हुए कई निजी कॉलेज इंदौर में पनपने लगे हैं, जो सिर्फ पैसा बनाने के लिए काम कर रहे हैं। 

कंपनियों को खुद लेना पड़ा निर्णय : आईटी कंपनी टीसीएस और इन्फोसिस को करीब 20 हजार फ्रेशर्स की आवश्यकता है। ये जानकारी सामने आ रही है कि ये जो फ्रेशर्स है, वह कंपनियों कसौटी पर सही नहीं उतर रहे हैं, अर्थात कंपनियां जो चाहती है, उसमें छात्रों की योग्यता का आकलन नहीं हो पा रहा है। अब कंपनी खुद ही ऐसे विद्यार्थियों को तैयार कर रही है।

अब सवाल ये है कि आखिर क्यों नहीं विद्यार्थी आईटी कंपनियों की नजर में खरे उतर रहे हैं। असल में विद्यार्थी मेहनत नहीं कर रहे हैं।  इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि छोटे-छोटे कॉलेज मुंहमांगे दामों पर बच्चों को एडमिशन दे रहे हैं और पढ़ाई के नाम पर इन कॉलेजों में कुछ होता नहीं। मात्र डिग्री लेने और देने के लिए सब कुछ हो रहा है। अब ऐसे विद्यार्थियों को इंजीनियिरिंग की डिग्री तो मिल जाती है, लेकिन अनुभव के नाम पर इन्हें कुछ नहीं आता। अगर सिविल इंजीनियर की डिग्री हासिल किए विद्यार्थियों से पुल निर्माण सहित छोटे-छोटे इन्फ्रास्ट्रक्चर के कार्यों के बारे में पूछ लिया जाएगा, तो वह कुछ भी बताने में असमर्थ रहेगा, क्योंकि उसने सिर्फ डिग्री हासिल की है, अनुभव नहीं।

देश का भविष्य भी होगा खराब :  बच्चों को मात्र डिग्री हासिल करने के लिए जो मां-बाप कॉलेज पढ़ने के लिए भेज रहे हैं, वह खुद के साथ-साथ देश का भविष्य भी खराब कर रहे हैं। 

आरक्षण के कारण बिगड़ रहे हालात : एक और समस्या हमारे देश में आरक्षण की है। आरक्षण के कारण जिन बच्चों को कुछ आता नहीं है, वह कम अंकों की बदौलत अच्छे कॉलेज में प्रवेश कर लेते हैं, वहां भी कम नंबरों पर वह डिग्री हासिल कर लेते हैं और सरकारी नौकरी में अफसर बन जाते हैं, लेकिन उन्हें जब मैदानी काम करना होता है तो उसमें वह असमर्थ रहते हैं, सही निर्णय लेने की क्षमता उनमें नहीं होती। ऐसे में इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में घटिया निर्माण इनकी नाक के नीचे होता रहता है और भ्रष्टाचारियों की हां में हां मिलाकर काम करते हैं, ताकि नौकरी भी सुरक्षित रहे और सब काम चलता रहे। ऐसे कामों से देश का ही नुकसान हो रहा है। गत वर्षों में हम देख चुके हैं कि किस तरह पुल-पुलियाएं क्षतिग्रस्त हुए हैं। 

 निर्णय लेने की क्षमता नहीं रहती : एक और कारण भी है कि जिन छात्रों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता और वह अच्छे अंक भी लाते हैं और योग्यता भी रखते हैं, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिल पाते, इस वजह से भी देश को योग्य इंजीनियर, डॉक्टर आदि नहीं मिल पाते। आरक्षण के बल पर कई विद्यार्थी डॉक्टर बन गए हैं, लेकिन निर्णय लेने की क्षमता नहीं होने और अनुभव नहीं होने के कारण इनके हाथों से कई लोगों की जिंदगियां दांव पर लगी होती है.., और आरक्षण की बदौलत बने डॉक्टर अपने सीनियर और जूनियर की तरफ आस लगाए बैठे रहते हैं। 


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ऐसे हो चुके हालात : सिर्फ नौकरी की खातिर

पुलिस भर्ती में नकल...!

इंदौर में प्राेफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड  की पुलिस भर्ती परीक्षा शनिवार से शुरू हुई। परीक्षा के दौरान पलासिया स्थित आईके कॉलेज सेंटर पर एक अभ्यर्थी नकल करते पकड़ा गया। वह मोबाइल के माध्यम से कंटेट लिख रहा था। सवाल उठ रहा है कि आखिर वह सेंटर तक मोबाइल लेकर कैसे पहुंचा? पुलिस भर्ती में अगर ऐसे नकलची पहुंचेंगे और कामयाब भी हो जाएंगे तो समझ सकते हैं कि देश को कैसा सिस्टम मिलेगा। 

पढ़ाई के लिए मिली छूट का 

नाजायज इस्तेमाल 

बच्चों को पढ़ाई के लिए जो छूट मिल रही है, उसका नाजायज इस्तेमाल हो रहा है। गांव से पढ़ने के लिए बच्चे शहर में आ रहे हैं और शहर के बच्चे विदेशों में पढ़ने जा रहे हैं। गांव के बच्चे शहरी चकाचौंध में बिगड़ रहे हैं। विदेश जाने वाले बच्चे शौक-मौज और घूमने-फिरने के चक्कर में पढ़ाई के नाम पर समय ही गंवा रहे हैं। गांव से आकर चाहे वह युवक हो या युवतियां सब बिगड़ रहे हैं। शहरों में उन्हें कोई बोलने वाला या टोकने वाला नहीं रहता। शाम होते ही विद्यार्थी नशा करने लग गए हैं। खुलेआम लड़कियां शराब और सिगरेट पी रही हैं। पढ़ाई के लिए आकर गलत काम कर रहे हैं। कई लड़कियां अनैतिक कामों में लिप्त हो चुकी हैं और समय-समय पर इन लड़कियों को पुलिस पकड़ भी रही है। कई लड़कियां रात में शराब पीते हुए पकड़ाई, जिनके परिजन को पुलिस ने बताया, लेकिन हालात सुधर नहीं रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि विद्यार्थियों की कोई जिम्मेदारी ही नहीं बची कि उन्हें क्या करना है। उनकी दुनिया मोबाइल, फेसबुक, इंस्टाग्राम तक सिमटकर रह गई है। कुछेक ही विद्यार्थी है, जो ये समझते हैं कि पढ़ाई कर के कुछ हासिल किया जाए, जिससे उनका जीवन बेहतर हो सके।


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