- प्रतापसिंह सोढ़ी
मो. 89302-35285

तीन माह बाद जब गुरुदयाल सिंह हार्ट की बायपास सर्जरी करवा के घर लौता तो सबसे पहले वह गुरुद्वारे गया । अकाल पुरुख के सामने उसने श्रध्दापूर्वक मस्तक झुकाया और आंखें बंद कर सच्चे पादशाह का लाख-लाख शुक्रिया अदा किया । प्रसाद ले गुरुद्वारे की सीढ़ियां उतरते हुए उसका सामना गुरुद्वारे प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष दिलावरसिंह से हुआ। उसकी भौहें तन गई और चहरे पर कठोर भाव छा गए। तीन माह पहले जब वह बाईपास सर्जरी के लिये दिल्ली जा रहा था, तब दिलवारसिंह ने व्यंग्य भरे लबजे में तीखा प्रहार करते हुए कहा था , “ अब तो तीन माह बाद ही मुलाकात हो पाएगी । बेहतर होगा कि तुम गुरुद्वारे प्रबंधक कमेटी के सचिव पद से इस्तीफा देकर ही जाओ । क्या पता तुम...।”

इसके आगे के शब्द उसके हलक में अटक गए थे । जहर सने उसके इन शब्दों ने उसे बुरी तरह आहत कर दिया था । खामोश रह वह सब कुछ सहन कर गया था, लेकिन आज वह अपने आप को रोक नहीं पाया। उसने अपनी पेंट की जेब से एक कागज निकाल उसके हाथ में पकड़ते हुए रोबदार आवाज़ में कहा, “ यह लो मेरा इस्तीफा।

बहुत चिंता थी तुम्हें मेरी इस्तीफे की। वाहे गुरुजी ने मुझे नया जीवन दे बहुत बड़ा पद दे दिया है, जिसके सामने सभी पद छोटे हैं । इतना कह वह गर्वपूर्ण गुद्रा में सीढ़ियां उतर गया । अवाक् दिलावरसिंह उसे देखता रहा। उसकी हथेली पर रखा इस्तीफा वाला कागज सर्द मौसम में भी भींग गया था ।

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