जवाबदेही @ इंदौर

हर बात पर सरकार के भरोसे रहने वाली जनता  के लिए यह खबर चौकाने वाली है कि मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारी के कारण दुनिया की आधी आबादी खतरे में है। सरकारी कर्मचारियों के भरोसे रहने वाले लोगों को जागरूक होना बहुत जरूरी हो गया है। इसके पीछे की वजह यह है कि सरकारी अस्पतालों के हालातों से लोग वाकिफ है कि वहां कैसी सुविधाएं मिलती हैं और किस तरह से लोगों की चिंता की जाती है। तो इसलिए जरूरी हो गया है कि लोग अपनी खुद की चिंता करें और प्रयास करे कि अपने घर में और घर के आसपास और जहां हमारे बच्चे खेलने जाते हैं, वहां पर थोड़ी-सी जागरूकता रखें  जिससे कि मच्छरों के प्रकोप के हम शिकार न हो। इस विषय पर हम आगे चर्चा करेंगे....।

असल में हमारे शहर की नगर पालिका की महती जिम्मेदारी होती है कि वह नागरिकों के हितों की रक्षा करें, लेकिन ऐसा होता नहीं है। मच्छरों को मारने वाली दवाइयां कागजों में खरीदी जाती है और कागजों में ही क्षेत्रवार डाल दी जाती है। ऐसा ही धुआं उड़ाने वाली फॉगिंग मशीनों का है। कागजों में ही क्षेत्रवार धुआं उड़ा दिया जाता है। मच्छरों को लेकर हालात वैसे ही है। नगर निगम के पास इतने संसाधन होते हुए भी लोगों को मच्छरों से जूझना पड़ रहा है। नगर निगम ने ठाना और सफाई के प्रति लोग जागरूक हुए और आज नतीजे सभी के सामने हैं, तो फिर मच्छरों को मारने के प्रति नगर निगम क्यों नहीं जागरूकता अिभयान चलाता। बीच शहर में बहती खान नदी और जो नाले है, उससे भी मच्छर अधिक पैदा होते हैं। 

नगर निगम और सामाजिक संस्थाओं को मच्छर मारने के लिए भी जागरूकता अिभयान चलाना चाहिए। लोगों को यह हास्यास्पद लगेगा, लेकिन यह कदम भी कारगर है। जिस तरह खेल मैदान में बच्चे रैकेट लेकर बेडमिंटन खेलते हैं तो क्यों नहीं शहर के अलग-अलग हिस्सों में मैदानों और उसके आसपास खेल-खेल के बहाने बच्चों के हाथ में मच्छर मारने वाले रैकेट दिए जाते, और इसके बदले में उन्हें चॉकलेट या जो भी गिफ्ट देना हो दिया जाए।  इसका परिणाम बेहतर ही निकलकर आएगा। जो बच्चे आज घर में बैठकर मोबाइल पर लगे रहते हैं, उनमें मैदानों में जाने की लालसा बढ़ेगी और वह इस बहाने खेल-खेल में शारीरिक रूप से फिट भी रहेंगे। 

नगर निगम के भरोसे रहने की भी जरूरत नहीं

हमारे शहर की कई ऐसी सामाजिक संस्थाएं हैं, जो शहर में कई सामाजिक कार्य करती आ रही है, जिसमें नगर निगम से या जिला प्रशासन से एक धेले की मदद नहीं लेती है। इन संस्थाओं को आगे आना चाहिए। मच्छर ज्यादा मारने की प्रतियोगिता भी रखी जा सकती है, जिससे बच्चों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। ये बातें लोगों को अजीब-सी लगेगी, लेकिन इसके व्यापक असर दिखाई देंगे।

कोरोना काल की त्रासदी को न भूले

आपको ये नहीं भूलना चाहिए कि बीते दो सालों में कोरोना की महामारी की चपेट में आकर हमने अपनों को खोया है। कुछेक को छोड़ दे तो किसी भी डॉक्टर ने मानवीयता नहीं बरती है। जिन्होंने नोटों की गड्‌डी हाथ में रखी उसे ही बिस्तर और तमाम सुविधाएं दी गई। गरीब को तो अस्पताल की चौखट भी नसीब नहीं हुई है। इसलिए लोगों को ही इस बात के प्रति जागरूक होना होगा।

सरकारी अस्पतालों को साफ रखना हमारी जिम्मेदारी

जो लोग प्राइवेट अस्पताल में जाकर इलाज नहीं कर सकते, उनकी यह महती जिम्मेदारी बन जाती है कि वह सरकारी अस्पतालों को साफ-सुथरा बनाए रखें। वहीं इन अस्पतालों में लगी संपत्ति को भी नुकसान न पहुंचाएं, क्योंकि ये सुविधा हमारे लिए ही हैं। लोगों की आदत रहती है कि नल की टोटी उखाड़ना, बिजली के स्वीच को वाहनों की चाबी से कूरेदकर तोड़ देना। शौचालय को खराब करना...,पानी का उपयोग नहीं करना। अस्पताल के बाहर बने बगीजों में खाना खाकर जूठन वहीं फेंक देना जैसी हरकत लोग करते हैं। आपकी इस छोटी-छोटी लापरवाही और गलतियों के कारण अस्पताल के हालात खराब होते हैं।



निजी अस्पताल में ईमानदारी...

सरकारी अस्पतालों में जाने वाले मरीज और उनके परिजन स्वास्थ्य ठीक होने की दिशा में तो ध्यान देते हैं, डॉक्टरों के आगे-पीछे दौड़ लगाते हैं, लेकिन वहां की व्यवस्थाओं को बिगाड़ते हैं। प्राइवेट अस्पतालों में तो कैमरे लगे होते हैं, जगह-जगह गार्ड होते हैं, जिनकी डर की वजह से न तो वहां नलों की टोंटियां तोड़ी जाती और न ही किसी संसाधन को नुकसान पहुंचाया जाता है। इन पर जो मेंटेनेंस में खर्चा लगता है, वो मरीजों से ही वसूला जाता है। हमीदिया अस्पताल का कांड ही भूल जाएंगे

गत सप्ताह भोपाल के सरकारी हमीदिया अस्पताल में आग से झुलसने की वजह से 12 बच्चों की मौत हो गई। मामले में उच्चस्तरीय जांच होगी, कुछ लोगों को निलंबित किया जाएगा। आगे से ऐसी कोई गलती नहीं होगी इस पर समिति बनाई जाएगी। थोड़े दिनों तक बैठकों की नौटंकी की जाएगी, जैसा कि पहले भी होता आया है। कुछ दिनों बाद जिन लोगों को इधर-उधर किया है, घूम-फिरकर आ जाएंगे। इन लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, दुख तो जिंदगीभर उसे होगा, जिसने यहां अपने लाड़लों को खोया है। यह दर्द वह कभी नहीं भूल पाएंगे। इसलिए हमें ही अपनी और अपनों के लिए सावधानी रखनी है।

क्यों नहीं रखा जाता ध्यान

अस्पतालों में मेंटेनेंस को लेकर सालभर का बजट रहता है। लेकिन बजट गोल करने में सरकारी अस्पताल के कर्ताधर्ता माहिर है। आप सरकारी अस्पतालों के वार्डों में घूम लो... कहीं स्वीच गायब है तो कहीं तारों को हेकड़ी बनाकर जोड़ रखा है तो कहीं कटआउट ही गायब है...टोटल लापरवाही। हर अस्पताल में एक विभाग रहता है, जिसकी जिम्मेदारी रहती है कि वह अव्यवस्था नहीं होने दे। लेकिन काम के प्रति लापरवाही ही इन बातों को बढ़ावा देती आ रही है।

प्रतिदिन देख-रेख हो

सरकारी अस्पतालों ने मेंटेनेंस के लिए निजी कंपनियों को ठेके दे दिए गए हैं। करोड़ों रुपयों के वारे-न्यारे हो रहे हैं, लेकिन काम नहीं होता। उसके पीछे ईमादारी से काम करने की मंशा नहीं है। सरकारी अस्पतालों में भी एक आदमी की नियुिक्त होनी चाहिए, जो प्रतिदिन पूरे अस्पताल के हर वार्ड का राउंड ले और बिजली, पानी आदि जैसी मूलभूत सुविधा कहां बाधित हो रही है, उसका रिकॉर्ड रखें और संबंधित ठेकेदार कंपनी से काम करवाएं।

संसाधनों की देखरेख नहीं

सरकारी विभागों में लापरवाही को लेकर अस्पताल ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि लगभग सभी सरकारी विभाग के अफसर और कर्मचारी लापरवाह हो चुके हैं। हम बात करते हैं अग्निशमन विभाग की। इस विभाग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, लोगों की जानमाल की सुरक्षा करने की। इस विभाग की सबसे बड़ी लापरवाही यह है कि जनता से करोड़ों रुपए संसाधनों के लिए तो ले लेता है और संसाधन भी आ जाते हैं, लेकिन वह संसाधन पड़े-पड़े बेकार हो जाते हैं। इसका उदाहरण यह है कि 10-11 साल पहले जब बॉम्बे अस्पताल, होटल रेडिसन, सायाजी होटल, मॉल आदि विकसित हो रहे थे, तब इनसे 11-11 लाख रुपए के चेक लिए गए थे करोड़ों रुपए खर्च हाईराइज बिल्डिंगों में आग बुझाने के लिए दो आधुनिक फायर फाइटर खरीदे थे, जो आज की तारीख में कंडम हो चुके हैं, क्योंकि इनकी देखरेख ही नहीं की गई। इन वाहनों को महीने में एक-दो बार बाहर निकालकर डेमो किया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। शहर में कई जगह हाईराइज बिल्डिंग बन रही हैं। वहीं जाकर उस बिल्डिंग पर पानी फेंका जा सकता है, जिससे उस बिल्डिंग की तरी भी हो जाएगी और कुछ इस विभाग की कमाई भी हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं किया जाकर उक फायर फाइटरों को पड़े-पड़े खराब कर दिया गया। जानकार तो यह भी कहते हैं कि इन फायर फाइटरों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित लोग ही विभाग के पास नहीं है।


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