जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक
दो साल बाद फिर उत्सवी माहौल देखने को मिल रहा है..,, यह दीपावली एक उम्मीद लेकर आई है। दीपावली गहन अंधकार के बीच रोशनी का पर्व है। दीपावली का उिजयारा मन में उल्लास भर देता है। दीपमालिकाओं का ये उत्सव एक माध्यम है, जिसके जरिए एक नन्हा दीया अंधकार के समूचे सागर को पीने की चुनौती स्वीकार करता है। इस दीए की लौ में एक उम्मीद नाचती है। दीपावली के पहले बाजारों की रौनक इस का प्रतीक है कि अगला वर्ष उिजयारे से भरापूरा होगा। अंधेरा हमेशा से ही मनुष्यता का दुश्मन रहा है।
कोरोना रूपी अंधेरा भी हम सबके जीवन में दो साल से कायम था, जो इस उत्सवी माहौल में खोता जा रहा है। उम्मीद भी बंधी है कि आने वाले साल उिजयारे भरे होंगे। अब ये हमारी भी नैतिक जिम्मेदारी है कि इस उल्लासभरे माहौल में कोविड-19 के नियमों का पालन करें। हम जिस अंधकारमय समय को मात देकर आगे बढ़ें हैं, वह एक आशा और जीवटता का ही संदेश देती है। दीपोत्सव पर प्रज्ज्वलित होने वाले दीए की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका आलोक अपने लिए नही, बल्कि दूसरों के लिए होता है। अपने लिए तो केवल जलना होता है। यही दीए का दर्शन है। उसके प्रकाश की कोई सीमा नही होती। वह जहां तक पहुंचता है, आलोक बिखेरता है। प्रकाशित करता है।
दीपावली का अर्थ ही है, आलोक का विस्तार, एक नन्हा-सा दीप असंख्य दीपों को दीपशिखा प्रदान कर प्रकाश की अनंत शृंंखला स्थापित कर सकता है, प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है, शिक्षा का प्रतीक है। दीपावली प्रतीक है शस्य, श्यामल सम्पन्नता का, दान के, देय के उत्साह का। दूर-दूर से आने वाले पक्षियों के चहचहाने का। दीपावली आह्वान है नए वर्ष का। दीवाली का संदेश यही है कि हमें अपने जीवन के अंधेरे पहलुओं को दूर करते हुए उजाले की तरफ बढ़ना है।
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