जवाबदेही.इंदौर

इन दिनों हर तरफ कालाबाजारी की खबरें सामने आ रही है। अफसरों को खुद के राजस्व की चिंता अधिक है, न कि देश के नुकसान की।  रही-सही नेताओं की बात तो ये लोग देश को लेकर कभी गंभीर नहीं रहे। पक्ष-विपक्ष देश हित की चिंता छोड़ एक-दूसरे को निपटाने में लगे हैं। पार्टियों में ऐसा द्वंद चल रहा है, मानो भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छीड़ी हो। कोरोनाकाल के दौरान जो नि:शुल्क अनाज देने या कम दामों में गरीबों को राशन उपलब्ध कराया जा रहा है, उससे काम करने की इच्छा लोगों में कम हो गई है। कोई आदमी काम करना नहीं चाहता। छोटे-छोटे कामों के लिए मजदूर की उपलब्धता आसान नहीं रही। वहीं, जिन फैक्टरियों में कुशल श्रमिक काम करते थे, वो भी अब काम करना नहीं चाहते। इस वजह से कई फैक्टरियों में कुशल कर्मचारियों की कमी बनी है और कई फैक्टरियों में उत्पादन तक कम हो गया है। 

कालाबाजारी पर नजर

वर्तमान में सरकार द्वारा गरीबो के हितों को लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही है, जिसके अंतर्गत गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यापन करने वाले लोगों को नि:शुल्क राशन सरकार दे रही है तो कुछ लोगों को 1 रुपए किलो में गेहूं और 2 रुपए किलो में चावल की उपलब्धता हो रही है। लेकिन, इस योजना को हकीकत में देखा जाए तो कारगर नहीं कहा जा सकता। क्योंकि इस योजना के पीछे कालाबाजारी करने वालों ने अपना हित साध लिया है और जमकर घोटाला किया जा रहा है। यहां तक कि कंट्रोल से जो चावल इन गरीबों तक पहुंचता है, वो ही चावल इन कालाबाजारियों के हाथों लग रहा है। दो किलो रुपए या नि:शुल्क मिलने वाला चावल राशन दुकानों से बाले-बाले मिल मालिकों तक 16 रुपए में बेचा जा रहा है। इसका उदाहरण कटनी और जबलपुर में देखने को मिला। सरकारी कोटे में मिलने वाले 100 किलो धान के बदले चावल वापस सरकार को बेच रहे हैं। ये कालाबाजारी करने वाले सरकार को 67 किलो चावल लौटाता है, जिसमें ये सरकारी चावल शामिल कर देते हैं। ये लोग सरकार की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। अभी गत दिनों इंदौर के चंदन नगर क्षेत्र की कंट्रोल दुकान और पालदा में इसे खरीदने वाली चावल मिल पर खाद्य विभाग ने छापा मारा था और 40 क्विंटल चावल बरामद किए।

लोगों में बढ़ी कामचोरी

नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में गरीबों का आकलन कर उन्हें राशन तो उपलब्ध करा दिया और अपने वोटों में वृद्धि कर ली। लेकिन हकीकत में लोगों में कामचोरी और आलस्य की भावना ज्यादा बढ़ गई है। दूसरा ये कि  नि:शुल्क अनाज ये लोग ब्लैकरों को बेचकर उस पैसों की शराब सहित अन्य नशा कर रहे हैं, क्योंकि गेहूं और चावल इतना मिल रहा है कि घरों में रखे-रखे इन्हें घून लग रहा है। ऐसे में ये लोग उसे बेचकर उसके बदले दूसरी वस्तुएं खरीद रहे हैं या फिर नशाखोरी करने में पैसा उड़ा रहे हैं। 

किसानों के बेटे खेती नहीं करना चाहते

हमारा देश कृषि प्रधान देश है। वर्तमान में आधुनिक तकनीक के चलते अब किसानी करने में ज्यादा श्रम नहीं लगता। फिर भी किसानों के बच्चे पढ़-लिखकर शहरों की ओर रुख करने लगे हैं, जिससे खेती पर भी विपरीत असर पड़ता जा रहा है। 

सरकार को समझना होगा


हमारे देश में वोटों की राजनीति ने सारा ढर्रा बिगाड़कर रख दिया है। जिस तरह देश में नि:शुल्क देने की योजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसके दुष्परिणाम आगामी वर्षों में सहजता से देखने को मिलेंगे। विदेशों में जिस तरह से छोटे-छोटे काम करने वाले लोग नहीं मिल रहे हैं और वहां लोगों को परेशान होना पड़ रहा है, ठीक उसी तरह के हालात हमारे देश में भी पैदा होना शुरू हो गए हैं। प्रशिक्षित प्लंबर नहीं मिल रहे, छोटे-छोटे इलेक्ट्रिक के काम करने वाले कुशलकर्मी नहीं मिल रहे हैं। इसी तरह के छोटे-छोटे कई काम है, जिनसे लोग जी चुरा रहे हैं। हमने कई बार पढ़ा भी है कि विदेशों में इन छोटे-छोटे काम करने वाले लोगों की कमी बनी हुई है। इसका प्रमुख कारण बस एक ही है कि वहां के लोग छोटा काम करना नहीं चाहते। ...और अब वैसे ही हालात हमारे देश में भी धीरे-धीरे बनते जा रहे हैं।    

20 हजार विदेशी ट्रक ड्राइवर देश छोड़ कर चले गए 

ब्रिटेन के हालातों पर नजर  

इन दिनों ब्रिटेन तेल संकट से जूझ रहा है। ऐसा नहीं है कि वहां तेल नहीं है, बल्कि वहां ड्राइवरों की कमी हो गई है, जो तेल भरे टैंकरों को पेट्रोल पंप तक पहुंचाते रहे हैं। ब्रिटेन में ईंधन संकट की बड़ी वजह देश में एचजीवी ड्राइवर की कमी है। सरकार की ओर से अधिकृत आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 संक्रमण काल में 40 हजार ट्रक ड्राइवरों को निलंबित किया गया है। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि ब्रेक्सिट समझौते के तहत लगभग 20 हजार विदेशी ट्रक ड्राइवर देश को छोड़ कर चले गए हैं। इस कारण भी ईंधन की कमी हुई है।

कहानी कुछ ऐसी भी है...

असल में ब्रिटेन को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना काल के दौरान यहां सरकार ने लोगों को घर बैठे तन्ख्वाह दी। प्रति व्यक्ति के हिसाब से उन्हें डॉलर मिलते रहे। इसके चलते इन लोगों की अतिरिक्त आय होने लगी और इन्होंने वह पैसा शेयर बाजार में लगा दिया, जिससे शेयर बाजार में भी बूम की स्थिति बन रही है। इन लोगों के पास पैसा आ गया तो इन लोगों ने भी काम करने से कन्नी काटना शुरू कर दी। यहां छोटे-छोेटे काम करने वालों का टोटा बना हुआ है। ड्राइवरों की कमी भी इसी से जोड़कर देखी जा रही है। 

काम करना जरूरी है

सरकार को योजनाओं को बनाते समय कुछ शर्तें भी रखना चाहिए।  (कोरोनाकाल को छोड़ दे)। जो लोग सरकारी अनाज मुफ्त में ले रहे हैं, उन्हें काम पर जाना होगा। जहां वह काम करते हैं, वहां से लिखित में जब तक नहीं मिलेगा, तब तक उन्हें राशन नहीं मिलेगा। इस तरह की योजनाओं पर सरकार को काम करना चाहिए। हो सकता है कि सब लोगों का लेखा-जोखा रखना संभव न हो, लेकिन जब हम राशन किट पर नेताओं के पोस्टर छापते हैं और गुणगान करते हैं तो इस राशन किट पर काम करना जरूरी है का स्लोगन भी छाप सकते हैं, जिससे कुछ तो लोगों को प्रेरणा मिले।

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