संघ प्रमुख के भाषणों की पड़ताल, जिसमें छिपी है ‘बड़े भाई’ से ‘जुड़वा भाई’ बनने की कहानी


नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र में चल रही एनडीए की सरकार के मद्देनजर दशहरे के मौके पर दिए जाने वाले संघ प्रमुख के भाषण को केंद्र सरकार के लिए रोडमैप माना जाता है। तो संघ के कार्यकर्ताओं के लिए एक निजी दस्तावेज की तरह होता है।

कल देश भर में विजयादशमी या दशहरे का त्योहार मनाया जाएगा। विजयादशमी को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना दिवस भी होता है। इस मौके पर संघ प्रमुख के शस्त्र पूजा करने की परंपरा रही है। उसके बाद संघ के मुखिया यानी सरसंघचालक हर साल दशहरा के मौके पर अपने मुख्यालय नागपुर में एक व्याख्यान देते हैं। इस मौके पर दिए जाने वाला उनका भाषण मीडिया की सुर्खियां भी खूब बटोरता है।  

इस भाषण की अहमियत क्या 

हर साल विजय दशमी के मौके पर संघ प्रमुख स्वंयसेवकों को संबोधित करते हैं जिसमें वो संगठन की नीतियों और विचारों पर चर्चा करते हैं। 1925 में विजयदशमी के दिन ही डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने आरएसएस की स्थापना की थी। 

संघ को समझने वाले एक जानकार बताते हैं कि संघ प्रमुख के भाषण में प्रमुखता से वही बात उठाई जाती है जो वह केंद्र सरकार से अपेक्षा रखते हैं। 2014 से मोहन भागवत के भाषणों पर गौर करें तो पाएंगे कि सरकार ने धीरे-धीरे प्रमुखता से उन सभी मुद्दों को छूने की कोशिश की है या छू रही है जिसका जिक्र भागवत ने अपने भाषणों में किया है, जैसे आर्टिकल 370 की बात हो या राम मंदिर के निर्माण की या रोहिंग्या मुसलमान की। वे कहते हैं कि संघ प्रमुख हमेशा संकेत में सरकार के लिए एजेंडा तय कर देते हैं और फिर सरकार उस पर आगे बढ़ती है।

क्या पहले भी रहा ऐसा तालमेल

पहली बार संघ और केंद्र में भाजपा की सरकार के बीच ऐसा तालमेल देखा गया है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ में साथ-साथ काम किया है और वे हमउम्र भी हैं। इसलिए दोनों के बीच अच्छा सामांजस्य है जिसकी झलक संघ और सरकार के कामकाज में भी दिखाई देती है। 

 दोनों की सीमाएं तय

संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि संघ और केंद्र सरकार दोनों ने अपनी अलग सीमाएं बना रखी हैं। संघ संचालक सरकार के काम में दखल नहीं देते हैं और सरकार इस बात का ध्यान रखती है कि संघ के सांस्कृतिक एजेंडे को कैसे पूरा किया जाए। पहले कहा जाता था कि संघ बड़ा भाई है और वह रिमोट कंट्रोल है। लेकिन अब संघ और केंद्र सरकार को जुड़वा भाई कहा जाता है, इसलिए दोनों के बीच बने बेहतर तालमेल की अब चर्चा अक्सर होती है।

वाजपेयी-सुदर्शन से अलग है भागवत-मोदी का रिश्ता 

लेकिन संघ और भाजपा के बीच इस तरह का रिश्ता सुदर्शन और वाजपेयी के दौर में नहीं था। राजनीति के जानकार बताते हैं कि संघ के पूर्व सरसंघचालक केएस सुदर्शन और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अक्सर तनाव रहता था। कहा जाता है कि 1998 में सुदर्शन के दबाव में ही वाजपेयी प्रमोद महाजन और जसवंत सिंह को मंत्री नहीं बना पाए थे।

2004 में भाजपा की हार के पीछे स्वदेशी जागरण मंच, संघ से जुड़े किसान और मजदूर संगठनों के लगातार सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध करने को भी एक बड़ी वजह माना जाता है। 2005 में अपने एक इंटरव्यू में सुदर्शन ने कांग्रेसी नेताओं की तारीफ की थी। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के बजाय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत का सबसे बड़ा राजनीतिज्ञ बता दिया था। वहीं एक बार संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा था कि वाजपेयी सरकार हारे या जीते यह संघ के लिए चिंता का विषय नहीं है। लेकिन 2013 में वही संघ अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीताने के लिए सीधे तौर पर मैदान में उतर आया था। 

मोदी के पीछे संघ एकजुट

एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक 2014 के चुनाव में मोदी के चेहरे के पीछे संघ परिवार एकजुट खड़ा था और आज भी है। इसलिए जीत आसान हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में और बंपर जीत के पीछे संघ के कुशल सांगठनिक नेतृत्व का बड़ा योगदान रहा है। इसलिए भागवत और मोदी के बीच अभी तक किसी भी तरह की न तो व्यक्तिगत और न संगठनात्मक मुद्दों पर टकराव की कोई नौबत आई है। जब भी कोई मुद्दा आया भी है समन्वय बैठक में बातचीत करके उसका हल निकाल लिया गया है और किसी भी तरह की कोई बयानबाजी नहीं हुई है। जबकि अटल बिहारी वाजपेयी और सुदर्शन के दौर में संघ के पदाधिकारी सार्वजनिक बयानबाजी करने से भी नहीं चूकते थे।

2014 से 2020 तक दशहरे के मौके पर मोहन भागवत के दिए भाषणों पर एक नजर डालते हैं जिससे संघ और सरकार के बीच बेहतर तालमेल की झलक मिल जाएगी

2020 के मौके पर ‘वोकल फॉर लोकल’  का दिया नारा

पिछले साल अपने दशहरा भाषण में मोहन भागवत ने राम मंदिर, नागरिकता संशोधन कानून,  कोरोना संकट, चीन के साथ विवाद, नई शिक्षा नीति, नए कृषि कानून, पारिवारिक चर्चा के महत्व पर बात की। उन्होंने स्वदेशी नीति के तहत ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा भी दिया। 

2019- मॉब लिंचिंग पर दिया बड़ा बयान

इस साल उन्होंने भीड़ द्वारा ‘लिंचिंग’ के मसले को उठाया। संघ प्रमुख ने कहा कि बाहर से आए शब्द (लिंचिंग) का इस्तेमाल कर भारत को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। आलोचकों ने इन दोनों मुद्दों पर उनके विचार को विवादास्पद माना और उस पर काफी तर्क-वितर्क हुए, वहीं समर्थकों ने तारीफों के पुल बांधे। इस साल मोहन भागवत के विजयादशमी का भाषण नई सरकार, 370, मॉब लिंचिंग, चंद्रयान, अर्थव्यवस्था और महिला शक्तिकरण के इर्द-गिर्द था।

(साभार)


 

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