नई दिल्ली | इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत में भी लोग बंटे हुए हैं। कुछ इजरायल के समर्थन में हैं तो कुछ भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के रुख का समर्थन कर रहे हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले संबोधन में फिलिस्तीन के बंटवारे का विरोध किया था। पंडित नेहरू ने धर्म के आधार पर दो राष्ट्र के सिद्धांत का विरोध किया था और दो टूक शब्दों में कहा था कि इससे दुनिया के कई हिस्सों में नफरत और हिंसा को बढ़ावा मिलेगा।
हालांकि, जब 1948 में इजरायल एक अलग देश बन गया, तब नेहरू ने 1950 में उसे एक अलग देश के रूप में मान्यता दे दी थी। इसे लेकर नेहरू का कहना था कि भले ही हम संयुक्त राष्ट्र में इजरायल गठन के प्रस्ताव के विरोध में थे, लेकिन सच्चाई को भी नकार नहीं सकते और आज का सच यही है कि इस दुनिया में इजरायल भी एक देश है। हमें उसे मान्यता देना ही होगा। नेहरू से पहले महात्मा गांधी ने भी फिलिस्तीन का समर्थन किया था। 1938 में महात्मा गांधी ने कहा था, " जैसे इंग्लैंड अंग्रेजों का या फ्रांस फ्रांसीसियों का है, वैसे ही और उसी अर्थ में फिलिस्तीन भी अरबों का है।"
संयुक्त राष्ट्र क्या हुआ
29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में रिजॉल्यूशन
नंबर 181 पारित किया गया था। इसके तहत फिलिस्तीन को यहूदी और अरब दो देशों (फिलिस्तीन
और इजरायल) में बांटने और यरूशलेम और बेथलेहम को एक अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र घोषित करने
का प्रस्ताव था। इस प्रस्ताव के तहत फिलिस्तीन के आधे से अधिक भू-भाग पर एक यहूदी देश
(इजरायल) का गठन होना था, जिसकी आबादी एक तिहाई
से भी कम थी और उनके पास 7 प्रतिशत से भी कम भूमि थी।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध
हुआ। भारत भी विरोध करने वालों में शामिल था। यूएन में भारतीय प्रतिनिधि और फिलिस्तीन
पर यूएन की स्पेशल कमिटी (UN Special Committee on Palestine) के सदस्य अब्दुर रहमान
ने तब कहा था, “फिलिस्तीन के लोग अब विकास के उस स्तर पर पहुंच गए हैं, जहां एक स्वतंत्र
राष्ट्र के रूप में उसकी मान्यता में अब देरी नहीं की जा सकती है। वे किसी भी तरह से
अन्य स्वतंत्र और स्वतंत्र एशियाई देशों के मुकाबले कम उन्नत नहीं हैं।” रहमान ने कहा
था कि फिलिस्तीन को बांटने से क्षेत्र में हिंसा जारी रहेगी।
13 देशों ने किया था बंटवारे के खिलाफ वोट
बावजूद इसके फिलिस्तीन बंटवारे का प्रस्ताव अंतत: यूएन
से पारित हो गया था। विभाजन के पक्ष में कुल 33 वोट पड़े, जबकि विरोध में भारत समेत 13 देशों ने वोट दिए। 10 सदस्य देशों ने वोटिंग
से खुद को अलग रखा। संयुक्त राष्ट्र द्वारा फिलिस्तीन के बंटवारे की मंजूरी की घोषणा
के बाद अरब मुस्लिम बहुल फिलिस्तीन में हड़ताल
और विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। यरूशलेम समेत कुछ अन्य जगहों पर भयानक दंगे भी हुए।
दूसरी तरफ देश को मान्यता मिलने से गदगद यहूदियों ने मुस्लिमों के खिलाफ मोर्चा खोल
दिया और कई गांवों पर हमला बोल दिया। इसके बाद फिलिस्तीन गृह युद्ध में जल उठा। इस
गृहयुद्ध का पहला चरण 15 मई 1948 को तब खत्म हुआ, जब इजरायल को एक अलग देश के रूप में
दर्जा दे दिया गया।
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