इंदौर। जिस राम चरित मानस की एक-एक चौपाई भारतीय समाज की आचार संहिता मानी जाती है, उस मानस में आग लगाने की बात कही जा रही है। उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नवरात्रि के उपलक्ष्य में मानस के नवान्ह पारायण का कार्यक्रम बनाकर इसका जवाब दे दिया है। सरस्वती के नग्न चित्र बनाकर पद्मश्री हासिल करने के दिन अब लद गए। अयोध्या में रामलला का मंदिर तो बन ही जाएगा लेकिन संस्कृति का मंदिर बचाने के लिए हिन्दुत्व की दीपशिखा को बुझने नहीं देना चाहिए।
ये दिव्य विचार
हैं बजरंग दल के तत्कालीन राष्ट्रीय संयोजक और राज्य के पूर्व मंत्री जयभानसिंह पवैया
के, जो उन्होंने संस्था ब्रह्म चेतना के तत्वावधान में रणजीत मंदिर परिसर में आयोजित
राम मंदिर संकल्प सिद्धि सुंदरकांड के पाठ एवं वर्ष 1992 में अयोध्या पहुंचे कार सेवकों
के सम्मान हेतु आयोजित राम काज करिबे को आतुर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में
व्यक्त किए। विहिप के प्रांतीय संगठन मंत्री नंदरामदास दंडोतिया, राजेश आजाद आदि ने
भी अयोध्या यात्रा से जुड़े अपने प्रेरक संस्मरण सुनाए। प्रारंभ में संस्था ब्रह्म
चेतना के प्रमुख एवं एमआईसी सदस्य अभिषेक बबलू शर्मा ने पवैया एवं सभी अतिथियों का
स्वागत किया। पवैया को हनुमानजी की गदा भी भेंट की गई। यह आयोजन श्रीराम जन्म भूमि
मुक्ति आंदोलन से जुड़े कारसेवकों के सम्मान की श्रृंखला के शुभारंभ और नई पीढ़ी को
रामलला के मंदिर के निर्माण में कारसेवकों के त्याग और बलिदान से अवगत कराने के उद्देश्य
से पूरे वर्षभर हर दूसरे शनिवार को आयोजित होगा और इसमें क्षेत्र के कारसेवकों का सम्मान
किया जाएगा।
रणजीत हनुमान
मंदिर पर आयोजित इस पहले दिव्य आयोजन में बड़ी संख्या में राष्ट्रवादी संगठनों के पदाधिकारी
और कार्यकर्ता शामिल हुए। संगीतमय सुंदरकांड पाठ गौरव तिवारी एवं उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत
किया गया। शहर के लगभग सभी प्रमुख धर्मस्थलों के संत भी उपस्थित थे। आयुषी देशमुख एवं
मालासिंह ठाकुर सहित मातृशक्ति भी बड़ी संख्या में शामिल हुई।
मुख्य अतिथि पवैया ने कहा कि
मैंने सीबीआई की तलाश के दौरान 90 दिन इंदौर की रोटी खाई है। बहुत से घरों का नमक,
पानी भी मेरे शरीर में है। मालवा में गांव-गांव और घर-घर से हजारों लोग अयोध्या गए
थे। जिस दिन पीएम मोदी ने अयोध्या में मंदिर के समक्ष दंडवत प्रणाम किया था, लगा कि
अब धर्म सत्ता के आगे राजसत्ता दंडवत कर रही है। हम अभी यहां बधाई गीत गा रहे हैं।
अब लोग मथुरा-काशी की ओर भी देख रहे हैं। मेरा मन कहता है कि हमें खून बहाने की जरूरत
नहीं पड़ेगी और ज्ञानवापी और मथुरा पर लगा लांछन जमुना में बहते नजर आएगा। इंदौर में
अभिषेक बबलू शर्मा ने यह आयोजन कर एक अभिनंदनीय प्रयास किया है। निश्चित ही देश के
अन्य नगरों-कस्बों में भी इस तरह के प्रेरक आयोजन होंगे।
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