अहाते बंद होने से हित होगा या अहित..., समय बताएगा

जगजीतसिंह भाटिया
प्रधान संपादक

प्रदेश में अहाते बंद की नीति कहां तक कारगर होगी, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। अभी तो इसका श्रेय लेने की होड़ लगी है। विदेशी मदिरा दुकानों में अहाता नीति 1997 में मप्र मदिरा एसोसिएशन के प्रेसीडेंट, देवेंद्र सिंह भाटिया जी द्वारा प्रदेश सरकार के संज्ञान में लाने के बाद इसे लागू किया गया था। इससे सरकार का राजस्व बहुत अधिक बढ़ा एवं अवैध शराब के अड्‌डों पर अंकुश लगा। देशी मदिरा की दुकानों पर तो शुरू से ही पीने की व्यवस्था चली आ रही है। गरीब आदमी जो पचास रुपए का पव्वा लेता है, वो 10-20 रुपए का खाने का सामान लेकर वहीं बैठकर खा-पीकर चला जाता है और कहीं हुड़दंग नहीं करता। लेकिन अब बिना सोचे-समझे इस नीति को लागू किया गया है। अहाते बंद होने के कारण अब प्रदेशभर में जो ठेलों पर अंडे-बिरयानी या चिकन-मछली और मूंगफली, चने आदि बेचते हैं, उन पर लोग शराब पीते नजर आएंगे। यह नजारा हर गली-नुक्कड़ पर दिखाई देगा, जिससे विवाद की स्थिति भी बनेगी और अवैध अड्‌डों की भरमार हो जाएगी। पूर्व की भांति बीयर बार माफिया सक्रिय हो जाएगा। सरकार का राजस्व कम से कम 2 हजार करोड़ रुपए कम होगा। नर्मदा नदी की परिक्रमा के दौरान दुकानंे बंद की गई, लेकिन शराब वहां पहले से ज्यादा बिक रही है। आबकारी एवं पुलिस विभाग का भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है, उसकी भी कोई सीमा नहीं रहेगी। आज इंदौर शहर में शराब के अलावा खतरनाक ड्रग्स एवं अन्य नशे आसानी से खुलेआम बेचे जा रहे हैं। पबों के सामने बाहर से आए लड़के-लड़कियां जो पढ़ने आए हैं, वो नशे में धुत होकर गिरे-पड़े रहते हैं, लेकिन इन घटनाओं पर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है।

जिन शराब दुकानों का विरोध हो रहा है और वह मंदिरों और स्कूलों के आसपास हो तो उसे बंद कर किसी दूसरी जगह शिफ्ट करना चाहिए और ऐसा होता भी आ रहा है। लेकिन अहाते बंद करने से उन 15 हजार परिवारों का क्या होगा, जिनका रोजगार ही अहाते से चलता है। एक तरफ सरकार रोजगार मध्यप्रदेश में रोजगार देने की बात करती है, दूसरी तरफ हजारों लोगों का रोजगार छीन रही है। वहीं, सर्वविदित है कि पुलिस तो सांठगांठ के मामलें में संलिप्त पाई जाती है तो अब यह मौका उन्हें भरपूर कमाई देने वाला रहेगा। जो अवैध अड्‌डे खुलेंगे, उनसे पुलिस और आबकारी वाले बंदी बांध लेंगे और खुलेआम ये अड्‌डे संचालित होंगे। अहातों को बंद करने का निर्णय करने वाले शायद यह भूल गए हैं कि गत वर्षों में मप्र में अवैध और जहरीली शराब पीने से इंदौर, उज्जैन और मुरैना सहित कई जगह लोगों की मौत हो चुकी हैं। इसी कारण से प्रदेश में आबकारी नीति में बदलाव कर कंपोजिट दुकानें बढ़ाई गई और ड्यूटी भी कम की गई थी, ताकि लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से ना हो। लेकिन अब ऐसा होगा, क्योंकि अवैध अड्डे खुलेंगे और अड्डा चलाने वाले जानते हैं कि पुलिस का मुंह कैसे बंद रखा जाता है। और इन अड्डों से अवैध शराब बिकने लगेगी। पीने वाले भी लायसेंसी दुकानों से शराब नहीं खरीदेंगे और सीधे इन अड्डों पर पहुंचेंगे, क्योंकि इन अड्डों पर अहाते जैसी व्यवस्था रहेगी। लायसेंसी दुकानदारों को भी अहाते बंद होने से नुकसान होगा।  प्रदेश सरकार को इस निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए। वहीं, जिस वोट की खातिर ये निर्णय लिया जा रहा है, कहीं ये दांव उल्टा न पड़ जाए, क्योंकि सालों से चली आ रही प्रथा को बंद करके आप  एक बहुत बड़े वर्ग को नाराज कर रहे हैं। 


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